आम पर हमला: एन्थ्रेक्नोज से कैसे बचाएं अपनी फसल?

फल पकने से पहले करें यह काम, नहीं तो हो सकता है नुकसान

प्रोफेसर (डॉ) एस.के.सिंह

समस्तीपुर। आम के फलों पर चॉकलेटी रंग के धंसे हुए निशान, आंसू जैसे गिरते धब्बे और काले धब्बे जैसे लक्षण यदि दिखाई दें, तो किसान सतर्क हो जाएं। विशेषज्ञ प्रोफेसर (डॉ) एस.के.सिंह  का कहना है कि ये लक्षण एन्थ्रेक्नोज रोग के हैं, जो आम की सबसे विनाशकारी बीमारियों में गिना जाता है। अगर समय रहते इसकी पहचान और रोकथाम नहीं की गई तो किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। ये लक्षण आम की सबसे गंभीर बीमारियों में से एक हैं। यह बीमारी विशेष रूप से उन क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान पहुंचाती है जहां आम के फूलने और फल लगने के समय बारिश होती है।

कवक संक्रमण है प्रमुख कारण

एन्थ्रेक्नोज रोग कोलेटोट्रिचम ग्लियोस्पोरियोइड्स नामक कवक के कारण होता है, जिसे उसके परिपक्व अवस्था में ग्लोमेरेला सिंगुलता के नाम से जाना जाता है। यह फंगस नमी वाले मौसम में तेजी से फैलता है और इसके बीजाणु हवा और बारिश के माध्यम से पास के पौधों तक पहुंच जाते हैं। रोग फैलने की संभावना सबसे अधिक तब होती है जब पुष्पन और फलन काल के दौरान अधिक वर्षा होती है।

पुष्पक्रम और फलों पर पड़ता है सीधा असर

यह रोग पुष्पक्रम को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे टिकोलों का गिरना बढ़ जाता है। इससे उत्पादन में भारी गिरावट देखी जाती है। कभी-कभी हरे फलों पर भी इसके घाव दिखते हैं, लेकिन आमतौर पर यह रोग पकते हुए फलों में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। यह कवक फल के भीतर छिपा हुआ भी रह सकता है और फल पकने के दौरान सक्रिय होकर घाव उत्पन्न करता है।

लक्षणों की पहचान जरूरी

पत्तियों पर भूरे या गहरे भूरे रंग के धब्बे, जिनके किनारे गहरे रंग के होते हैं, एन्थ्रेक्नोज की पहचान का पहला संकेत हो सकते हैं। युवा पत्तियों के किनारों पर अर्धगोलाकार घाव दिखाई देते हैं। अधिक आर्द्रता वाले मौसम में नई टहनियों का रंग बदलना और सिरे से कालेपन का उभरना भी इस रोग का संकेत हो सकता है।

फलों पर यह रोग चमकदार काले, धंसे हुए घावों के रूप में दिखाई देता है। समय के साथ इन घावों पर गुलाबी या नारंगी रंग के बीजाणु द्रव्यमान (एसरवुली) बनते हैं, जिससे फल जल्द ही गिर जाते हैं।

क्या करें किसान? रोग से बचाव के उपाय

कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए प्रमुख प्रबंधन उपाय निम्नलिखित हैं:

  1. साफ-सफाई और छंटाई: हर वर्ष आम के पेड़ों की छंटाई करें और रोगग्रस्त टहनियों एवं जमीन पर गिरे हुए संक्रमित पत्तों और फलों को एकत्र कर जला दें। इससे रोग का प्रसार कम होगा।

  2. उचित दूरी बनाए रखें: पेड़ से पेड़ और पौधे से पौधे के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि हवा का संचार बना रहे और संक्रमण का दायरा सीमित रहे।

  3. समय पर फफूंदनाशी का छिड़काव करें:

    • जैसे ही पुष्पगुच्छ (बौर) दिखाई दें, छिड़काव की प्रक्रिया शुरू कर दें।

    • कार्बेन्डाजिम (50 डब्ल्यूपी) की 1 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें।

    • या फिर मिथाइल थायोफेनेट (70%) की 1 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर 14 से 20 दिन के अंतराल पर मौसम के अनुसार छिड़काव करें। यह प्रक्रिया तब तक जारी रखें जब तक कि फल 1.5 से 2 इंच लंबे न हो जाएं।

सारांश– आम भारत की प्रमुख फसलों में से एक है, जिसकी गुणवत्ता और उत्पादन पर एन्थ्रेक्नोज जैसी बीमारियां गंभीर प्रभाव डाल सकती हैं। जरूरत है कि किसान समय रहते सतर्कता बरतें और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार उचित प्रबंधन अपनाएं। क्योंकि अगर यह रोग एक बार फैल गया, तो आम की मिठास फीकी पड़ सकती है और आय का मुख्य स्रोत भी प्रभावित हो सकता है।

प्रोफेसर (डॉ) एस.के.सिंह ,
सह मुख्य वैज्ञानिक (पौधा रोग)
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवम् सह निदेशक अनुसंधान
डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
पूसा, समस्तीपुर – 848 125
sksraupusa@gmail.com/

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