मधुबनी के कृषि विज्ञान केंद्र में उर्वरक लाइसेंस के लिए जरूरी ट्रेनिंग

कृषि विज्ञान केंद्र सुखेत में उर्वरक लाइसेंस हेतु प्रशिक्षण जारी, डॉ. मनोज कुमार ने दिए दो तकनीकी व्याख्यान

मधुबनी, बिहार। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) सुखेत, मधुबनी द्वारा 15 दिवसीय समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Nutrient Management – INM) पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया.. इस ट्रेनिंग का उद्देश्य जिला कृषि कार्यालय के माध्यम से उर्वरक विक्रय लाइसेंस प्राप्त करने के इच्छुक प्रतिभागियों को वैज्ञानिक जानकारी और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करना है।

इस क्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार ने विशेषज्ञ वक्ता के रूप में भाग लिया और प्रतिभागियों को दो अलग-अलग विषयों पर तकनीकी व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों का मुख्य फोकस था—मृदा स्वास्थ्य, पोषक तत्वों की संतुलित आपूर्ति, जैविक एवं रासायनिक उर्वरकों का समुचित उपयोग, और पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखकर खेती को लाभदायक बनाना।

सत्र में डॉ. मनोज कुमार व्याख्यान देते हुए

डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि,

“खेती में केवल अधिक उत्पादन नहीं, बल्कि टिकाऊ और पोषक तत्वों से भरपूर उत्पादन की आवश्यकता है। इसके लिए किसानों को उर्वरकों के वैज्ञानिक और समन्वित उपयोग की जानकारी होना जरूरी है।”

उन्होंने प्रतिभागियों को मृदा परीक्षण की प्रक्रिया, परिणामों की व्याख्या, और उसके आधार पर उर्वरकों के उपयोग की रणनीति के बारे में विस्तार से समझाया। साथ ही, जैव उर्वरकों की भूमिका, उपयोग विधि, और उसकी उपलब्धता जैसे मुद्दों पर भी जानकारी दी।

प्रशिक्षण में मधुबनी के अलावा दरभंगा, सहरसा और सुपौल जिलों से आए लगभग 40 प्रतिभागी शामिल हुए हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान उन्हें उर्वरक प्रबंधन, खेतों की उर्वरता बनाए रखने की तकनीक, और सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप लाइसेंस प्रक्रिया से अवगत कराया जा रहा है।

कृषि विज्ञान केंद्र, सुखेत के वैज्ञानिकों ने बताया कि प्रशिक्षण के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिया जाएगा, जो उर्वरक विक्रय लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया में आवश्यक होता है।

कार्यक्रम समन्वयक ने कहा कि,

“यह प्रशिक्षण किसानों और ग्रामीण युवाओं के लिए स्वरोजगार और कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक रूप से जुड़ने का एक सुनहरा अवसर है। हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग इससे लाभ उठाएं।”

यह प्रशिक्षण न केवल उर्वरक व्यवसाय में उतरने वालों के लिए उपयोगी है, बल्कि कृषि की गुणवत्ता सुधारने, लागत घटाने और पर्यावरण की रक्षा करने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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