🟢 CIAE का कमाल – ट्रैक्टर से होगा मल्चिंग और बुवाई एक साथ!
भोपाल — केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज आईसीएआर-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (सीआईएई), भोपाल का दौरा किया। इस अवसर पर उन्होंने संस्थान द्वारा विकसित ‘ट्रैक्टर चालित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर’ जैसे अत्याधुनिक कृषि यंत्रों का अवलोकन किया और वैज्ञानिकों, छात्रों एवं कर्मचारियों को संबोधित किया।
चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि देश के कृषि विकास में तकनीकी संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण है, और यह आवश्यक है कि इन संस्थानों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों का लाभ विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों तक शीघ्रता से पहुंचे। उन्होंने कृषि के मशीनीकरण की दिशा में संस्थान के कार्यों की समीक्षा करते हुए आगामी दस वर्षों की योजना बनाने का आह्वान किया ताकि “विकसित भारत” अभियान को गति मिल सके।
🚜ट्रैक्टर चालित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर: कृषि यंत्रीकरण में नई क्रांति
सीआईएई द्वारा हाल ही में विकसित यह यंत्र एक मल्टी-फंक्शनल मशीन है, जो एक साथ ऊँचे क्यारियों का निर्माण, ड्रिप लेटरल बिछाना, प्लास्टिक मल्च लगाना, और बीज रोपण जैसे कार्यों को अंजाम देता है। आमतौर पर इन कार्यों को मैन्युअल रूप से करने में करीब 29 मानव-दिन/हेक्टेयर लगते हैं, जबकि यह यंत्र इस कार्य को न केवल कम समय में करता है बल्कि श्रम और लागत में भी भारी बचत करता है।
मुख्य तकनीकी विशेषताएं⚙️
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हाइड्रोलिक मोटर (385 न्यूटन मीटर) और चेन-स्प्रोकेट ट्रांसमिशन सिस्टम के माध्यम से यंत्र संचालित होता है।
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एक्सेंट्रिक स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म के ज़रिए बीज बोने की प्रक्रिया होती है, जिससे बीज को प्लास्टिक मल्च के नीचे सटीकता से डाला जाता है।
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बीज मापने की इकाई में वैक्यूम आधारित सिस्टम का प्रयोग किया गया है, जो ट्रैक्टर के PTO द्वारा चलने वाले एस्पिरेटर ब्लोअर से संचालित होता है।
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मशीन की प्रभावी कार्य क्षमता 0.2 हेक्टेयर/घंटा है तथा कार्य कुशलता 74% है।
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यंत्र की कुल लागत ₹3 लाख और संचालन लागत ₹1500/घंटा है।
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पेबैक पीरियड मात्र 1.9 वर्ष और ब्रेक-ईवन पॉइंट 70 घंटे/वर्ष पर आधारित है।
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कतार और पौधे की दूरी को यांत्रिक रूप से 0.5-0.9 मीटर (कतार से कतार) और 0.2-0.6 मीटर (पौधे से पौधे) तक समायोजित किया जा सकता है।
🌾🎋उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए उपयुक्त
यह यंत्र विशेष रूप से खरबूजा, ककड़ी, स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न, हरी मटर, भिंडी और फलियाँ जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की बुवाई के लिए उपयुक्त है। मौजूदा मशीनों की तुलना में यह यंत्र 26 मानव-दिन/हेक्टेयर (89%) और ₹6600/हेक्टेयर (43%) की बचत सुनिश्चित करता है।
🗓️ अगले दशक की तैयारी: समावेशी मशीनीकरण का आह्वान
चौहान ने वैज्ञानिकों से कहा कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से संचालित और सेंसर-आधारित यंत्रों को विकसित किया जाए, जिससे सभी वर्गों के किसानों को लाभ मिल सके। उन्होंने किसान मेलों और हितधारकों के साथ परामर्श सत्रों के आयोजन की भी आवश्यकता जताई ताकि देश में मशीनीकरण की व्यापक रणनीति बनाई जा सके।
इस अवसर पर आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एम.एल. जाट, उप महानिदेशक (इंजीनियरिंग) डॉ. एस.एन. झा, उप महानिदेशक (विस्तार) डॉ. ए.के. नायक, सीआईएई के निदेशक डॉ. सी.आर. मेहता और आईआईएसएस के निदेशक डॉ. एम. मोहंती भी उपस्थित रहे।
📌सारांश
शिवराज सिंह चौहान का यह दौरा न केवल कृषि वैज्ञानिकों और संस्थान के लिए उत्साहवर्धक रहा, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भारत अब खेती को केवल पारंपरिक कर्म नहीं, बल्कि तकनीक और नवाचार से सुसज्जित व्यवसाय के रूप में देख रहा है। इस दिशा में आईसीएआर-सीआईएई की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। 🍉🫛🌽