बिहार कृषि अधिकारियों के लिए IARI ओरिएंटेशन कार्यक्रम

पूसा नई दिल्ली में उन्नत कृषि तकनीक पर कार्यशाला

नई दिल्ली– भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI), नई दिल्ली के कृषि प्रौद्योगिकी मूल्यांकन एवं स्थानांतरण केंद्र (CATAT) द्वारा 6 मई 2025 को बिहार सरकार के 98 सहायक निदेशकों (सस्य विज्ञान, कीट एवं रोग प्रबंधन, और कृषि अभियांत्रिकी) के लिए एक दिवसीय ओरिएंटेशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों को आधुनिक कृषि अनुसंधान, एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) और तकनीकी विस्तार की नवीनतम विधियों से अवगत कराना था, जिससे वे राज्य स्तर पर कृषि क्षेत्र में नवाचारों को प्रभावी ढंग से लागू कर सकें।

एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल का व्यावहारिक अवलोकन

कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान परिसर में विकसित विभिन्न एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडलों के भ्रमण से हुई। इनमें जलाशय आधारित समन्वित कृषि प्रणाली, बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मॉडल, मशरूम उत्पादन इकाई, और संरक्षित खेती केंद्र (CPCT) जैसे प्रदर्शन शामिल थे। इन मॉडलों के माध्यम से विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को बताया कि कैसे सीमित संसाधनों के साथ भी किसानों की आय को दोगुना किया जा सकता है। विशेष रूप से जलाशय आधारित मॉडल ने जल प्रबंधन और मत्स्य पालन को कृषि के साथ एकीकृत कर टिकाऊ आय के नए विकल्प प्रस्तुत किए।

कृषि यंत्रीकरण पर विशेष सत्र

इसके बाद प्रतिभागियों ने कृषि अभियांत्रिकी प्रभाग की कार्यशाला का दौरा किया, जहाँ उन्हें खेतों में उपयोग होने वाले आधुनिक कृषि यंत्रों की जानकारी दी गई। वैज्ञानिकों के साथ संवाद के दौरान अधिकारियों ने राज्य में यंत्रीकरण की वर्तमान स्थिति और संभावनाओं पर चर्चा की। यह सत्र इस दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा कि बिहार जैसे राज्य में कृषि यंत्रों की पहुंच और कुशल उपयोग अब भी एक बड़ी चुनौती है।

औपचारिक सत्र में विशेषज्ञों के विचार

कार्यक्रम का औपचारिक शैक्षणिक सत्र अपराह्न में जल प्रौद्योगिकी केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया, जिसमें ICAR-IARI के निदेशक डॉ. सी.एच. श्रीनिवास राव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजक और संस्थान के संयुक्त निदेशक (प्रसार) डॉ. आर. एन. पडारिया ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।

अपने संबोधन में डॉ. श्रीनिवास राव ने कहा, “आज कृषि क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। जलवायु परिवर्तन, घटते जलस्तर, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और किसानों की आय में असमानता जैसी चुनौतियों का समाधान केवल अनुसंधान आधारित नवाचारों और तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से संभव है। बिहार जैसे राज्य में जहां कृषि जनसंख्या का प्रमुख आधार है, वहां अधिकारियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।”

तकनीकी सत्र में उन्नत विषयों पर व्याख्यान

तकनीकी सत्र में कृषि विशेषज्ञों द्वारा विविध विषयों पर विस्तृत व्याख्यान दिए गए। डॉ. पी.एस. ब्रह्मानंद (परियोजना निदेशक, जल प्रौद्योगिकी केंद्र) ने जल प्रबंधन की उन्नत तकनीकों और माइक्रो-इरिगेशन प्रणाली पर चर्चा की। डॉ. एस.एस. राठौर (अध्यक्ष, सस्य विज्ञान संभाग) ने फसल विविधीकरण और पोषण आधारित कृषि पर व्याख्यान दिया।

वहीं, कीट एवं रोग प्रबंधन पर केंद्रित सत्रों में डॉ. एस. सुब्रमणियन (प्राध्यापक, कीटविज्ञान संभाग), डॉ. विष्णु माया (वरिष्ठ वैज्ञानिक, पादप रोगविज्ञान संभाग) और डॉ. अनिल सिरोही (प्राध्यापक, सूत्रकृमि संभाग) ने जैविक नियंत्रण विधियों, समेकित कीट प्रबंधन (IPM) और रोग पूर्वानुमान प्रणालियों की विस्तार से जानकारी दी। इन सत्रों में सहभागियों ने राज्य में लागू की जा सकने वाली तकनीकों के बारे में जिज्ञासाएं भी साझा कीं।

समापन: बीज उत्पादन इकाई और “पूसा कृषि हाट” का भ्रमण

कार्यक्रम के अंतिम चरण में प्रतिभागियों ने संस्थान की बीज उत्पादन इकाई (SPU) और “पूसा कृषि हाट” का दौरा किया। इस दौरान उन्हें कृषि आधारित उद्यमिता, बीज प्रसंस्करण, पैकेजिंग, विपणन और प्रौद्योगिकी व्यवसायीकरण के व्यावहारिक पहलुओं से अवगत कराया गया। यह भ्रमण इस दृष्टि से उल्लेखनीय रहा कि अधिकारियों ने राज्य में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देने की संभावनाएं देखीं।

कार्यक्रम की उपलब्धि

यह ओरिएंटेशन कार्यक्रम अनुसंधान एवं विस्तार के बीच एक सशक्त सेतु के रूप में सफल रहा। बिहार राज्य के कृषि अधिकारियों को न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रशिक्षित किया गया, बल्कि उन्हें व्यवहारिक उदाहरणों और प्रदर्शन इकाइयों के माध्यम से यह दिखाया गया कि उन्नत तकनीकों को किस प्रकार स्थानीय परिस्थितियों में अनुकूलित किया जा सकता है।

संस्थान का यह प्रयास दर्शाता है कि यदि नीति निर्माता, वैज्ञानिक और विस्तार अधिकारी एक मंच पर आकर कार्य करें, तो भारत की कृषि प्रणाली को और अधिक उत्पादक, समावेशी और टिकाऊ बनाया जा सकता है।

Leave a Comment