कम लागत, ज़्यादा मुनाफा! – अब झींगा पालन आसान

 झींगा पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार की नई पहल – किसानों से सीधी बातचीत

मुंबई: मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत आने वाले मत्स्य विभाग (DoF) के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने आज एक अहम समीक्षा बैठक की। इस बैठक में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में खारे पानी (सलाइन वाटर) में झींगा पालन की स्थिति और संभावनाओं पर चर्चा की गई।

डॉ. लिखी ने मुंबई में स्थित ICAR-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन (CIFE) का दौरा किया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इन चार राज्यों के किसानों और अधिकारियों से बातचीत की। बैठक का उद्देश्य था – खारे पानी की अनुपयोगी जमीन का इस्तेमाल कर झींगा पालन को बढ़ावा देना, जिससे रोजगार और आजीविका के नए अवसर पैदा किए जा सकें।

किसानों से सीधी बातचीत, अनुभव और समस्याएं

डॉ. लिखी ने किसानों से सीधे बातचीत कर उनके अनुभव, समस्याएं और जरूरतों को सुना। उन्होंने CIFE की एक्वाकल्चर सुविधाएं और सजावटी मछली पालन इकाई का भी निरीक्षण किया।

प्रतीकात्मक चित्र
चार राज्यों की स्थिति – कहां कितना काम हुआ?
  1. उत्तर प्रदेश:
    मथुरा, आगरा, हाथरस और रायबरेली जिलों में 1.37 लाख हेक्टेयर जमीन में खारे पानी की खेती की संभावनाएं हैं।

  2. राजस्थान:
    चूरू और गंगानगर जिलों में झींगा, मिल्कफिश और पर्ल स्पॉट की खेती की जा रही है।
    लगभग 500 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगा पालन चल रहा है।

  3. पंजाब:
    श्री मुक्तसर साहिब और फाजिल्का जिलों में झींगा पालन का विस्तार हो रहा है।

  4. हरियाणा:
    अब तक 13,914 टन उत्पादन और करीब ₹57.09 करोड़ का निवेश हुआ है, जो PMMSY योजना के तहत किया गया।

अब भी 55,000 हेक्टेयर जमीन खाली

चारों राज्यों में लगभग 58,000 हेक्टेयर खारी भूमि की पहचान की गई है, लेकिन अभी केवल 2,608 हेक्टेयर का ही उपयोग हो रहा है। ऐसी जमीन, जो परंपरागत खेती के लिए अनुपयुक्त है, उसे झींगा पालन के ज़रिए ‘कमाई वाली जमीन’ में बदला जा सकता है।

भारत, जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा झींगा उत्पादक देश है, समुद्री उत्पाद निर्यात से होने वाली कुल कमाई का 65% सिर्फ झींगा से ही कमाता है।

किसानों की मुख्य समस्याएं

बैठक में किसानों ने कई चुनौतियाँ सामने रखीं:

  • प्रतीकात्मक चित्र

    शुरुआत में लागत ज़्यादा आती है, सब्सिडी कम मिलती है

  • सिर्फ 2 हेक्टेयर तक की ही सीमा तय है

  • पानी की लवणता में बदलाव परेशानी देता है

  • ज़मीन पट्टे पर लेने की दरें बहुत ज़्यादा हैं

  • अच्छी क्वालिटी का बीज नहीं मिलता

  • कोल्ड स्टोरेज और मार्केटिंग की सुविधाएं नहीं हैं

  • लागत बढ़ रही है, लेकिन बाजार में दाम नहीं मिलते

राज्यों के सुझाव – क्या हो सकता है समाधान?

राज्यों ने कई ठोस सुझाव दिए:

  • यूनिट लागत ₹25 लाख तक की जाए

  • ज़मीन की सीमा 2 हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 हेक्टेयर की जाए

  • पॉलीथिन लाइनिंग पर ज़्यादा सब्सिडी मिले

  • हरियाणा के सिरसा में एकीकृत एक्वा पार्क बनाया जाए

  • बेहतर मार्केटिंग चैनल तैयार हों और किसानों को सही दाम मिले

इसके अलावा, ICAR, राज्यों के मत्स्य विभाग और दूसरी एजेंसियों के साथ मिलकर एक मजबूत रणनीति बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया।

राष्ट्रीय समिति और भविष्य की योजना

बैठक में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति बनाई जाए जो खारे पानी और इनलैंड झींगा पालन के दिशा-निर्देश तैयार करे।
राज्यों से कहा गया कि वे लाभार्थी-केंद्रित योजनाएं बनाएं और केंद्र सरकार को अपनी ज़रूरतें बताएं ताकि उन्हें लक्ष्यित सहायता दी जा सके।

इस तरह की पहल से न केवल झींगा उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि देश के लाखों किसानों को नई आय के स्रोत और बेहतर जीवन स्तर मिलने की उम्मीद है।

Leave a Comment