“लोरैंथस” परजीवी से बहुमूल्य फलों के वृक्षों को कैसे बचाएं? जानिए वैज्ञानिक उपाय

परजीवी पौधा बना बागों के लिए खतरा!

आम, कटहल, नींबू और सपोटा जैसे फलों के वृक्षों पर परजीवी पौधे लोरैंथस (Loranthus) का बढ़ता संक्रमण किसानों और बागवानों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह अर्ध-परजीवी पौधा धीरे-धीरे पूरे वृक्ष को कमजोर कर देता है, जिससे उपज में भारी गिरावट आती है और अंततः वृक्ष के सूखने की स्थिति भी बन जाती है।

प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह
🌿 मुख्य बिंदु:
  • लोरैंथस एक अर्ध-परजीवी पौधा है जो आम, कटहल, नींबू और सपोटा जैसे बहुवर्षीय पेड़ों की शाखाओं पर उगता है।

  • यह मेज़बान वृक्ष के जाइलम ऊतक से जल व पोषक तत्व चूसता है।

  • यदि समय रहते प्रबंधन न किया जाए तो यह वृक्ष को पूरी तरह कमजोर कर सकता है।

  • इसका जीवन चक्र पक्षियों के माध्यम से फल से बीज फैलाव पर निर्भर करता है।

  • वैज्ञानिक प्रबंधन और नियमित निगरानी से इसके प्रसार को रोका जा सकता है।

🌱 क्या है लोरैंथस?

लोरैंथस एक ऐसा अर्ध-परजीवी पौधा है जो लकड़ी वाले बहुवर्षीय वृक्षों की शाखाओं पर उगता है। इसमें पूरी जड़ प्रणाली नहीं होती, इसलिए यह अपने जीवन के लिए मेज़बान वृक्ष के जल और पोषक तत्वों पर निर्भर करता है। यह पौधा पत्तियों के ज़रिए सीमित प्रकाश संश्लेषण तो कर लेता है, लेकिन पूरी तरह जीवित रहने के लिए यह मेज़बान वृक्ष की शाखाओं में प्रवेश कर वहां से पोषण चूसता है।

कैसे फैलता है यह परजीवी?
प्रतीकात्मक चित्र

लोरैंथस के फल बेर जैसे होते हैं, जो गर्मियों में पकते हैं। ये फल पक्षियों को आकर्षित करते हैं, और जब पक्षी इन्हें खाते हैं तो बीज उनके मल के साथ अन्य वृक्षों की शाखाओं पर गिरते हैं। मानसून के आरंभ में ये बीज अंकुरित होते हैं और “हस्टोरियम” नामक संरचना के माध्यम से मेज़बान की शाखा में प्रवेश कर जाते हैं। यहीं से इसकी परजीवी यात्रा शुरू होती है।

🔄 जीवन चक्र और प्रसार
  • गर्मियों में लोरैंथस में बेर जैसे फल लगते हैं।

  • ये फल पक्षियों को आकर्षित करते हैं, और पक्षियों द्वारा खाए जाने के बाद बीज उनकी बीट के साथ अन्य वृक्षों की शाखाओं पर गिर जाते हैं।

  • मानसून में ये बीज अंकुरित होकर मेज़बान शाखा में हस्टोरियम (haustorium) के माध्यम से प्रवेश कर पोषण लेना शुरू करते हैं।

  • बाद में यह संरचना गाँठ जैसी हो जाती है और पूरा झाड़ी जैसा रूप ले लेती है।

📍 संक्रमण अधिक कहाँ होता है?

पुराने, कम देखभाल वाले और अधिक घने बागों में इसका संक्रमण अधिक देखा गया है। खासकर ऐसे स्थान जहां आर्द्रता ज्यादा हो और पक्षियों की आवाजाही बनी रहती हो, वहां इसका फैलाव बहुत तेज़ होता है।

🔍 लक्षणों की पहचान
प्रतीकात्मक चित्र
  • शाखाओं पर गाँठ या झाड़ी जैसी संरचना

  • पत्तियाँ सामान्य वृक्ष की पत्तियों से अलग दिखती हैं

  • वृक्ष की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं

  • शाखाओं का धीरे-धीरे सूखना

  • फलों की मात्रा व गुणवत्ता में गिरावट

दुष्प्रभाव

संक्रमित वृक्षों में शक्ति, वृद्धि और उपज में स्पष्ट कमी देखी जाती है। समय रहते ध्यान न देने पर वृक्ष पूरी तरह सूख भी सकता है। यह संक्रमण सिर्फ उपज को नहीं, बल्कि किसानों की आय और श्रम को भी प्रभावित करता है।

🔧 वैज्ञानिक प्रबंधन के उपाय

1. प्रारंभिक पहचान और त्वरित कार्रवाई
संक्रमण की शुरुआत में ही झाड़ी जैसी संरचनाएं देखकर कार्रवाई करें।

2. छंटाई
संक्रमित शाखा को नीचे से काटें और उसे नष्ट करें।

3. स्क्रैपिंग तकनीक
यदि परजीवी भीतर तक घुस चुका हो, तो उस भाग को खुरच कर साफ करें।

4. रासायनिक उपाय
0.5% ग्लाइफोसेट या डीज़ल को सावधानीपूर्वक संक्रमित भाग पर लगाएँ।
⚠ सावधानी: यह रसायन मेज़बान पौधे के अन्य हिस्सों पर न लगने दें।

5. नियमित निरीक्षण
हर तीन महीने पर बाग का निरीक्षण करें, विशेषकर पक्षियों की आवाजाही वाले हिस्सों में।

कृषि विशेषज्ञों की सलाह

विशेषज्ञों का मानना है कि लोरैंथस एक धीमे प्रसार वाला परजीवी है, लेकिन यदि इसकी अनदेखी की जाए तो यह गंभीर रूप ले सकता है। समय रहते नियंत्रण ही इसका सबसे प्रभावी इलाज है।

बागवानों से अपील:

कृषि विभाग और विशेषज्ञों ने किसानों और बागवानों से अपील की है कि वे अपने बागों का नियमित निरीक्षण करें। यदि कहीं लोरैंथस की उपस्थिति दिखाई दे, तो वैज्ञानिक तरीकों से उसका प्रबंधन करें। इससे न केवल पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि वृक्षों की दीर्घायु भी सुनिश्चित की जा सकेगी।

📌 सारांश

समय रहते नियंत्रण ही सबसे प्रभावी उपाय है।
लोरैंथस धीमे प्रसार वाला, लेकिन अत्यंत हानिकारक परजीवी है। अगर शुरुआती चरण में ही इसे पहचानकर वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन किया जाए तो इससे बागों की रक्षा संभव है।

सौजन्य:

प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह
विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी
पूर्व प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-समस्तीपुर
ईमेल: sksraupusa@gmail.com

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