कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, जो समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को सम्मानित करने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में महिलाओं की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। भारतीय कृषि का आधार महिलाओं के श्रम पर टिका हुआ है, फिर भी उनकी मेहनत को अपेक्षित पहचान नहीं मिल पाती।
कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका
महिलाएं कृषि क्षेत्र में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य करती हैं—वे खेतों में काम करती हैं, बीज बोती हैं, निराई-गुड़ाई करती हैं, फसल काटती हैं और कृषि उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने में सहायता करती हैं। ग्रामीण भारत में लगभग 75% महिलाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी हुई हैं। वे पारंपरिक खेती से लेकर जैविक और व्यावसायिक खेती तक में योगदान दे रही हैं।
-
फसल उत्पादन एवं देखभाल
महिलाएं खेतों में श्रम करके फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। वे खेत की जुताई, बीज बोने, सिंचाई, निराई-गुड़ाई और कटाई के कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होती हैं। इसके अलावा, वे खाद और कीटनाशकों के प्रयोग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। -
पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र
भारत में पशुपालन और डेयरी उद्योग में महिलाओं की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ग्रामीण महिलाओं का डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन, बकरी पालन और मत्स्य पालन में बड़ा योगदान है। कई महिलाएं अपने पशुपालन व्यवसाय से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं। -
बागवानी और जैविक खेती
आजकल महिलाएं पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी, फूलों की खेती और जैविक खेती की ओर भी आकर्षित हो रही हैं। वे औषधीय पौधों और जैविक खाद्य उत्पादन में रुचि लेकर अपने परिवार और समुदाय को पोषण के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता भी प्रदान कर रही हैं। -
बीज संरक्षण और खाद्य सुरक्षा
महिलाएं पारंपरिक ज्ञान के आधार पर बीजों के संरक्षण और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे वर्षों से परंपरागत बीजों को संरक्षित करने, घरेलू उद्यानों में सब्जियों की खेती करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगी हुई हैं। -
कृषि सहकारिता और महिला स्व-सहायता समूह (SHGs)
महिलाओं द्वारा गठित स्व-सहायता समूह (SHGs) और सहकारी समितियां कृषि क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान दे रही हैं। इन समूहों के माध्यम से महिलाएं लघु ऋण प्राप्त करके अपनी कृषि आधारित आजीविका को मजबूत कर रही हैं।
कृषि में महिलाओं की चुनौतियाँ
हालांकि कृषि में महिलाओं का योगदान बहुत अधिक है, फिर भी वे कई समस्याओं का सामना करती हैं—
- भूमि स्वामित्व का अभाव: भारत में कृषि भूमि का स्वामित्व ज्यादातर पुरुषों के पास होता है, जिससे महिलाएं कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पातीं।
- तकनीकी ज्ञान और संसाधनों की कमी: महिलाओं को आधुनिक कृषि तकनीकों, उन्नत बीजों और वित्तीय सहायता की कम जानकारी होती है।
- सामाजिक बाधाएँ: महिलाओं को पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर कई प्रकार की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल खेतों में श्रम करती हैं बल्कि परिवार की आर्थिक रीढ़ भी बनती हैं। महिला किसानों को उनके अधिकार और संसाधन प्रदान करके न केवल कृषि उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त किया जा सकता है। महिला दिवस के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि कृषि क्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर और सम्मान दिया जाए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें और देश की आर्थिक प्रगति में अपनी भूमिका को और मजबूत कर सकें।