ये तकनीक बदल सकती है थार की तस्वीर, बेमौसम सब्जियों की खेती से हो रहा फायदा
थार के क्षेत्र में खेती हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही है, खासकर सर्दियों में जब तापमान कम हो जाता है और पाला पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। इन परिस्थितियों में लो टनल तकनीक किसानों के लिए आशा की किरण बनकर उभरी है। यह आधुनिक कृषि तकनीक फसलों को प्रतिकूल मौसम से बचाने और उनकी उपज बढ़ाने में मदद करती है।

कृषि विज्ञान केंद्र, पोकरण जैसलमेर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ. दशरथ प्रसाद ने कृषि टाइम्स के साथ बातचीत में लो टनल तकनीक की उपयोगिता और महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह लो टनल टेक्नोलॉजी एक आधुनिक कृषि तकनीक है, जिसका उपयोग पौधों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से बचाने और उनकी उपज बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसमें खेतों में उगाए गए पौधों को प्लास्टिक या अन्य हल्के ढांचे के जरिए ढक दिया जाता है। यह तकनीक विशेष रूप से सब्जियों और फसलों को ठंड, ओस, या तेज़ हवा से बचाने के लिए उपयोगी है। विशेष रूप से थार जैसे क्षेत्रों के किसानों के लिए लाभकारी है, जहां सर्दियों के दौरान कम तापमान और पाले की समस्या खेती के लिए एक बड़ी चुनौती बनती है।
फसलों को ठंड से बचाने में मददगार
कृषि विज्ञान केंद्र, पोकरण के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. दशरथ प्रसाद ने बताया कि लो टनल तकनीक विशेष रूप से ठंडे और प्रतिकूल जलवायु वाले इलाकों में उपयोगी है। इस तकनीक के तहत फसल को प्लास्टिक कवर से ढक दिया जाता है, जिससे अंदर का तापमान बाहरी वातावरण की तुलना में 10 डिग्री सेल्सियस अधिक रहता है। यह फसलों को ठंड, ओस और तेज़ हवा से बचाने में कारगर है।
केंद्र पर तैयार की गई प्रदर्शन इकाई
डॉ. प्रसाद ने बताया कि केंद्र पर लो टनल तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। किसानों के लिए बंदगोभी, मिर्ची, टमाटर, प्याज और बैंगन की प्रदर्शन इकाई लगाई गई है। इस तकनीक को अपनाकर किसान सर्दियों में भी इन फसलों की खेती कर सकते हैं। लो टनल संरचना को पतले बांस, जी.आई. पाइप और प्लास्टिक की शीट से तैयार किया जाता है, जिससे यह किफायती और टिकाऊ है।
कम लागत, अधिक लाभ
लो टनल तकनीक के तहत संरचना बनाने में बहुत कम खर्च आता है। जी.आई. पाइपों को अर्धगोलाकार मोड़कर तथा उन्हें सरिया के टुकड़ों के सहारे खेत में खड़ा करके व प्लास्टिक से ढंककर बनाई जाने वाली संरक्षित संरचना हैं।
पानी और खाद की खपत में भी कमी आती है, जिससे खेती और अधिक फायदेमंद हो जाती है। इसके अलावा, इस तकनीक से खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी के तापमान को स्थिर रखने में भी मदद मिलती है।
बेमौसम सब्जियों की खेती बनी आसान
पोकरण कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल से सर्दियों में खरबूजा, तरबूज, खीरा और अन्य कद्दूवर्गीय सब्जियां उगाना आसान हो गया है। लो टनल तकनीक के तहत पौधों की रोपाई के बाद प्लास्टिक कवर के जरिए उन्हें संरक्षित किया जाता है, जिससे फसलों को पाले और कम तापमान के नुकसान से बचाया जा सके।
किसानों के लिए वरदान साबित हो रही तकनीक
डॉ. दशरथ प्रसाद का कहना है कि थार के क्षेत्र में खेती की तस्वीर बदल सकती है। यह किसानों को नई फसलों की संभावनाएं देगा और बेमौसम खेती से उनकी आय में वृद्धि करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि इस तकनीक को अपनाने के लिए आवश्यक संसाधन कम लागत में उपलब्ध हैं। सर्दियों के मौसम में जब तापमान न्यूनतम स्तर पर होता है, तब यह तकनीक फसलों के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है।
निष्कर्ष
अगर लो टनल तकनीक को व्यापक स्तर पर अपनाया जाए, तो यह थार के रेगिस्तानी इलाकों की कृषि व्यवस्था को बदल सकती है। बेमौसम सब्जियों की खेती से किसानों की आय बढ़ेगी और क्षेत्र में फसलों की उपलब्धता में सुधार होगा।
कम लागत और आसान रखरखाव के कारण यह तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्र, पोकरण की यह पहल थार की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है।