कम पानी, ज्यादा उपज: अब धान की खेती और आसान
नई दिल्ली। भारत ने कृषि क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर स्थापित करते हुए विश्व की पहली दो जीनोम-संपादित धान की किस्में विकसित की हैं। शनिवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नई दिल्ली स्थित एनएएससी कॉम्प्लेक्स में आयोजित समारोह में इन दोनों किस्मों — डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी धान 1 — का औपचारिक लोकार्पण किया।
इस अवसर पर चौहान ने कहा, “यह उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत के संकल्प की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। आज का दिन देश के विज्ञान, अनुसंधान और कृषि क्षेत्र के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जाएगा।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि ये किस्में न केवल धान के पैदावार को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगी, बल्कि जलवायु संकट, जल संकट और पर्यावरणीय दबावों से निपटने में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाएंगी।
उत्कृष्ट वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित
इस कार्यक्रम में धान की इन किस्मों के विकास में योगदान देने वाले अग्रणी वैज्ञानिकों को केंद्रीय मंत्री ने सम्मानित किया। डीआरआर धान 100 के लिए डॉ. सत्येंद्र मंगरौठिया, डॉ. आर.एम. सुंदरम, डॉ. अब्दुल फियाज, डॉ. नीरजा और डॉ. एस.वी. साई प्रसाद, जबकि पूसा डीएसटी धान 1 के लिए डॉ. विश्वनाथन सी., डॉ. गोपाल कृष्णन एस., डॉ. संतोष कुमार, डॉ. शिवानी नागर, डॉ. अर्चना वत्स, डॉ. सोहम रे सहित कई वैज्ञानिकों को सम्मान प्रदान किया गया।
कृषि अनुसंधान की नई दिशा
शिवराज सिंह ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिए गए नारे ‘जय जवान, जय किसान‘ में अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय विज्ञान’ जोड़ा और प्रधानमंत्री मोदी ने इसमें ‘जय अनुसंधान‘ का आह्वान कर देश को नई शोध क्रांति की ओर अग्रसर किया।
उन्होंने बताया कि “कृषि अनुसंधान का यह नवाचार किसानों की आय को बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और भारत को खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।”
जीनोम एडिटिंग से विकसित किस्मों की विशेषताएं
आईसीएआर द्वारा विकसित की गई दोनों किस्में सीआरआईएसपीआर-कैस तकनीक पर आधारित हैं, जिसमें जीवों के मूल जीन में सूक्ष्म परिवर्तन किए जाते हैं और किसी भी प्रकार का विदेशी डीएनए नहीं जोड़ा जाता। ये किस्में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित एसडीएन-1 और एसडीएन-2 श्रेणी के अंतर्गत आती हैं।
प्रमुख लाभ:
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उपज में 19% तक वृद्धि
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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% तक कमी
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सिंचाई जल की 7500 मिलियन घन मीटर तक बचत
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सूखा, लवणता व जलवायु दबाव के प्रति बेहतर सहनशीलता
देश के विभिन्न राज्यों के लिए अनुकूल
इन किस्मों को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के लिए विकसित किया गया है। यह किस्में न केवल उच्च उपज देती हैं बल्कि कम अवधि में पकने वाली होने के कारण जल और उर्वरक की भी बचत करती हैं।
डीआरआर धान 100 (कमला) को आईसीएआर–आईआईआरआर, हैदराबाद द्वारा सांबा महसूरी किस्म के आधार पर विकसित किया गया है, जो लगभग 130 दिनों में पकती है और प्रति हेक्टेयर 9 टन तक उपज देने की क्षमता रखती है।
पूसा डीएसटी धान 1 को आईसीएआर–आईएआरआई, नई दिल्ली ने विकसित किया है, जो खारी और क्षारीय मिट्टी में भी उपज में 30.4% तक की वृद्धि करने में सक्षम है।
भविष्य की रणनीति: माइनस 5, प्लस 10 फॉर्मूला
चौहान ने कहा कि सरकार एक नई रणनीति पर काम कर रही है जिसे “माइनस 5, प्लस 10” कहा गया है। इसके तहत 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती को घटाकर, उसी क्षेत्र में उपज 1 करोड़ टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। इससे बचे क्षेत्र में तिलहन और दलहन जैसी फसलों को बढ़ावा दिया जाएगा।
किसानों से वैज्ञानिकों के साथ जुड़ने का आह्वान
केंद्रीय मंत्री ने विशेष रूप से युवा किसानों से आग्रह किया कि वे उन्नत तकनीकों को अपनाएं और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर खेती को नवाचार की दिशा में आगे बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि “जब वैज्ञानिक और किसान एक हो जाएंगे, तो चमत्कार अवश्य होगा।”
अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी रहे उपस्थित
इस अवसर पर कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम में भाग लिया और वैज्ञानिकों को शुभकामनाएं दीं। साथ ही कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. मांगीलाल जाट, उप महानिदेशक डॉ. देवेन्द्र यादव, आईआईआरआर के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम, और अन्य प्रमुख वैज्ञानिक भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
सरकार ने बढ़ाया अनुसंधान के लिए बजट
भारत सरकार ने वर्ष 2023-24 के बजट में जीनोम संपादन अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। आईसीएआर द्वारा तिलहन और दलहन की किस्मों में भी जीनोम संपादन से संबंधित अनुसंधान तेज़ी से जारी है।
यह उपलब्धि भारत को कृषि नवाचार के ग्लोबल मंच पर एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करती है, और आने वाले वर्षों में इससे भारतीय कृषि की तस्वीर बदलने की पूरी संभावना है।