भारत वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश

मत्स्य पालन क्षेत्र में नई ऊंचाइयां: 2025-26 के केंद्रीय बजट में ऐतिहासिक आवंटन

नई दिल्ली: भारत, जो वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, ने पिछले दो दशकों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। 2004 से 2024 की अवधि में तकनीकी नवाचारों और नीतिगत सुधारों के कारण भारत ने वैश्विक मत्स्य पालन और जलीय कृषि में अपनी स्थिति को मजबूत किया है।

केंद्रीय बजट 2025-26 में ऐतिहासिक प्रावधान

केंद्र सरकार ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए 2,703.67 करोड़ रुपये के अब तक के सबसे बड़े वार्षिक बजटीय समर्थन की घोषणा की है। यह निर्णय भारत को जलीय कृषि और समुद्री खाद्य निर्यात में वैश्विक नेतृत्व बनाए रखने में मदद करेगा।

बजट 2025-26 में विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) और खुले समुद्र से सतत मत्स्य उत्पादन को प्रोत्साहित करने की रणनीति को प्राथमिकता दी गई है। लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के जलक्षेत्रों में मत्स्य संसाधनों के सतत दोहन की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

मत्स्यपालकों के लिए नई ऋण योजनाएँ

मछुआरों और मत्स्य किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की ऋण सीमा को 3 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है। इस पहल का उद्देश्य कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने में वित्तीय संसाधनों की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करना है।

मत्स्य उत्पादन में दो दशकों की उपलब्धियां

2003-04 में 63.99 लाख टन और 2013-14 में 95.79 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 184.02 लाख टन तक पहुंच गया।
2004-14 के दौरान कुल वृद्धि 31.80 लाख टन थी, जबकि 2014-24 में यह 88.23 लाख टन रही।
अंतर्देशीय और जलीय कृषि मछली उत्पादन में 2014-24 के दौरान 77.71 लाख टन की जबरदस्त वृद्धि देखी गई।
समुद्री मछली उत्पादन 2004-14 में 5.02 लाख टन से दोगुना होकर 2014-24 में 10.52 लाख टन हो गया।
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत ने 60,523.89 करोड़ रुपये मूल्य के 17,81,602 मीट्रिक टन समुद्री खाद्य पदार्थों का निर्यात किया।

महत्वपूर्ण नीतिगत पहल और योजनाएँ


1. नीली क्रांति (2015-16)
3,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू हुई इस योजना ने मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि की आधारशिला रखी।
2. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (2020)
20,050 करोड़ रुपये के निवेश के साथ पांच वर्षों (2020-25) के लिए लागू यह योजना अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलकृषि को बढ़ावा देने में सहायक है।
अब तक 2,195 मत्स्यपालक उत्पादक संगठन (एफएफपीओ) स्थापित किए गए हैं।
3. मत्स्यपालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ) (2018-19)
7,522.48 करोड़ रुपये की निधि के तहत 136 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं, जिससे मत्स्य अवसंरचना के विकास को बढ़ावा मिला है।
4. प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) (2024-27)
6,000 करोड़ रुपये की लागत से यह योजना मछुआरों की वित्तीय और तकनीकी जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित है।
5. एकीकृत जल पार्क और कृत्रिम चट्टानों की स्थापना..

11 जल पार्कों की स्थापना हेतु 682.6 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
तटीय मत्स्य संसाधनों की रक्षा और बढ़ाने के लिए 291.37 करोड़ रुपये की लागत से कृत्रिम चट्टानों की स्थापना की जा रही है।
तकनीकी उन्नति और सतत विकास
उपग्रह प्रौद्योगिकी एकीकरण:

ओशनसैट और संभावित मत्स्य क्षेत्र (PFZ) प्रणाली के माध्यम से मत्स्य उद्योग को उन्नत किया जा रहा है।
GIS-आधारित संसाधन मानचित्रण: समुद्री मछली लैंडिंग केंद्रों और मछली पकड़ने के क्षेत्रों का डिजिटलीकरण किया गया है।
राष्ट्रीय नीति (NPMF, 2017): समुद्री मत्स्य संसाधनों के सतत विकास और संरक्षण पर बल दिया गया है।

संरक्षण एवं विनियमन उपाय
मानसून के दौरान 61 दिनों के मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लागू किया गया।
विनाशकारी मछली पकड़ने के तरीकों पर प्रतिबंध लगाया गया, जिसमें जोड़ी मछली पकड़ना, बुल ट्रॉलिंग और एलईडी लाइट्स का उपयोग शामिल है।
मछली पकड़ने के क्षेत्रों का जॉनिंग और न्यूनतम कानूनी आकार (MLS) निर्धारित किया गया।

निष्कर्ष
भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र 2004 से 2024 तक बड़े बदलावों से गुजरा है। नीतिगत सुधारों, तकनीकी प्रगति और संरचनात्मक निवेशों के कारण भारत ने न केवल मछली उत्पादन बढ़ाया है, बल्कि मछुआरों और मत्स्य पालन उद्योग के हितधारकों को भी सशक्त बनाया है। सतत विकास और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करके, भारत वैश्विक मत्स्य उद्योग में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखने के लिए तैयार है।

(स्रोत सौजन्य, पी्आईबी)

Leave a Comment