समुद्री शैवाल की खेती: किसानों के लिए आय का नया स्रोत और पर्यावरण का साथी
भारत में समुद्री शैवाल की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। समुद्री तटीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के लिए यह एक नई दिशा और आय का स्थायी स्रोत प्रदान कर रही है।
इस खेती के जरिए न केवल आर्थिक लाभ मिल रहा है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी इसका बड़ा योगदान है। समुद्री शैवाल का उपयोग खाद्य पदार्थों, औषधियों, जैव-उर्वरकों, और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। भारत में इसे बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी और निजी प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत, केंद्रीय नमक और मरीन केमिकल्स अनुसंधान संस्थान (CSIR-CSMCRI), केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (ICAR-CMFRI), और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) के सहयोग से समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इन संस्थानों ने निजी उद्यमियों और स्थानीय ग्रामीण समुदायों के साथ मिलकर समुद्री शैवाल की खेती, प्रशिक्षण और प्रदर्शन परियोजनाएँ शुरू की हैं।

समुद्री शैवाल की खेती कैसे करें ..
- स्थान चयन
- समुद्र के पास के क्षेत्रों, खासकर उथले पानी वाले इलाकों में यह खेती बेहतर होती है।
- ऐसे स्थान चुनें जहाँ पानी का बहाव कम हो और प्रदूषण न हो।
- प्रकार का चयन
- भारत में आमतौर पर उगाए जाने वाले समुद्री शैवाल के प्रकारों में कप्पाफिकस, ग्रासिलेरिया, और सारगस्सम प्रमुख हैं।
- किस्म का चयन स्थानीय मांग और जलवायु के आधार पर करें।
- खेती की विधियां
- रूप विधि (Raft Method): लकड़ी या बांस के ढांचे पर रस्सी बांधकर समुद्री शैवाल उगाया जाता है।
- लाइन विधि (Long Line Method): रस्सियों को पानी के अंदर लंबवत लटकाया जाता है।
- जाल विधि (Net Method): जाल के ढांचे का उपयोग किया जाता है।
- बीज प्राप्त करना
- समुद्री शैवाल के बीज स्थानीय मत्स्य पालन केंद्रों या अनुसंधान संस्थानों से प्राप्त किए जा सकते हैं।
- बीज को रस्सी या जाल पर बांधकर पानी में रखा जाता है।
- देखभाल और रखरखाव
- नियमित रूप से पानी के बहाव, लवणता, और तापमान की जांच करें।
- जलीय जीवों से बचाव के लिए जालों की सफाई करें।
- उचित पोषण और प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित करें।
- कटाई और प्रसंस्करण
- शैवाल को 45-60 दिनों में काटा जा सकता है।
- कटाई के बाद इसे धूप में सुखाकर या प्रसंस्करण केंद्रों पर भेजा जाता है।
आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ..
- आय का नया स्रोत: कम लागत में अधिक मुनाफा।
- पर्यावरण संरक्षण: यह समुद्री जैव विविधता को बढ़ाता है।
- कार्बन अवशोषण: समुद्री शैवाल वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है।
- वैश्विक मांग: समुद्री शैवाल का उपयोग खाद्य पदार्थों, जैव-उर्वरकों, सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों में होता है, जिससे इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
- प्रसंस्करण उद्योग का समर्थन: कटाई के बाद इसे स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों को बेचा जा सकता है।
पर्यावरणीय लाभ..
- कार्बन अवशोषण: समुद्री शैवाल वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर पर्यावरण को शुद्ध करता है।
- समुद्री पारिस्थितिकी में सुधार.. यह समुद्री जीवों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करता है।
- जल प्रदूषण कम करना: समुद्री शैवाल नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को अवशोषित कर जल को स्वच्छ करता है।
सरकार की मदद और प्रोत्साहन..
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा भारत में जीवित समुद्री शैवाल के आयात के लिए दिशा-निर्देशों की अधिसूचना एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका मुख्य उद्देश्य समुद्री शैवाल उद्यमों को बढ़ावा देकर तटीय ग्रामों की स्थायी आजीविका और मछुआरा समुदाय का सामाजिक-आर्थिक उत्थान सुनिश्चित करना है।
दिशा-निर्देशों का महत्व..
- उच्च गुणवत्ता वाले बीज स्टॉक तक पहुँच:
इन दिशा-निर्देशों से विदेशों से उच्च गुणवत्ता वाली बीज सामग्री या जर्मप्लाज्म का आयात संभव होगा, जो किसानों को बेहतर बीज स्टॉक उपलब्ध कराने में सहायक होगा। - समस्याओं का समाधान..
भारत में वर्तमान में समुद्री शैवाल उत्पादन में गुणवत्ता और मात्रा की चुनौतियाँ हैं। विशेष रूप से कप्पाफाइकस जैसी प्रजातियों के बीज की गुणवत्ता एक बड़ी समस्या है। दिशा-निर्देश इन समस्याओं को हल करने में मदद करेंगे। - प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई)
इसी वर्ष यानी 2025 में भारत में समुद्री शैवाल उत्पादन को 12 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है। - महत्वपूर्ण निवेश..
तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क की स्थापना जैसे प्रयासों से इस क्षेत्र में क्रांति लाने का प्रयास किया जा रहा है।
भविष्य की संभावनाएं..
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में समुद्री शैवाल उद्योग 2030 तक अरबों रुपये का हो सकता है। अगर सही प्रशिक्षण, बीज उपलब्धता और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया जाए, तो यह खेती तटीय क्षेत्रों में किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
समुद्री शैवाल की खेती न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभा रही है। भारत में इसकी बढ़ती मांग और सरकारी प्रोत्साहन इसे खेती के नए युग की ओर ले जा रहे हैं।