GI टैग लीची और शहद की मिठास पूसा से ग्लोबल मंच तक

लीची शहद बना ब्रांड: पूसा संगोष्ठी में 300 से अधिक प्रतिभागी शामिल

राष्ट्रीय संगोष्ठी में लीची की विविधता और जीआई आधारित लीची शहद के महत्व पर विशेषज्ञों ने डाला प्रकाश
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में हुआ भव्य आयोजन

पूसा (समस्तीपुर), डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में लीची की विविधता एवं भौगोलिक संकेतक (GI) आधारित लीची शहद पर केंद्रित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन भव्य रूप से किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर के सहयोग से और राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (NBHM) के मिनी मिशन-III के तहत नेशनल बी बोर्ड द्वारा प्रायोजित था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) पी.एस. पांडेय ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के बागवानी आयुक्त डॉ. प्रभात कुमार मौजूद रहे। इस अवसर पर ICAR–NRC लीची के निदेशक डॉ. बिकाश दास समेत कई अन्य विशिष्ट वैज्ञानिक, शिक्षाविद, उद्यमी, किसान प्रतिनिधि और छात्रगण उपस्थित रहे।

प्रदर्शनी से शुरू हुआ कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी के अवलोकन से हुई, जिसमें लीची की विभिन्न किस्मों के साथ-साथ विभिन्न संस्थानों एवं किसान समूहों द्वारा तैयार किए गए शहद उत्पाद प्रदर्शित किए गए थे। यह प्रदर्शनी लीची की जैव विविधता और उससे जुड़े मूल्य संवर्धन उत्पादों की जानकारी देने का एक प्रभावी मंच बनी।

उद्घाटन सत्र में कुलपति का संबोधन

उद्घाटन सत्र में कुलपति डॉ. पी.एस. पांडेय ने कहा कि लीची आधारित शहद न केवल स्वास्थ्य के लिहाज से अत्यंत लाभकारी है, बल्कि यह किसानों की आय बढ़ाने का एक सशक्त साधन भी बन सकता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि लीची उत्पादों के व्यवसायीकरण और स्थानीय स्तर पर नवाचारों को बढ़ावा देने की दिशा में वैज्ञानिक समुदाय और नीति-निर्माताओं को मिलकर कार्य करना होगा।

मुख्य अतिथि ने की GI टैग उत्पादों की वैश्विक पहचान की सराहना

मुख्य अतिथि डॉ. प्रभात कुमार ने बिहार की लीची को मिली GI पहचान को एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों से भारत के बागवानी उत्पादों की वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा बढ़ती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि “लीची महोत्सव” जैसे आयोजनों के माध्यम से इस फल और इससे जुड़े उत्पादों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में और अधिक पहचान दिलाई जा सकती है।

तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञों का मार्गदर्शन

दिनभर चले संगोष्ठी में विविध तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें देशभर से आए कृषि वैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया। इन सत्रों में लीची उत्पादन की उन्नत तकनीकें, शहद उत्पादन की प्रक्रिया, मूल्य संवर्धन, प्रसंस्करण, फसल के बाद प्रबंधन और निर्यात की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई।

विशेषज्ञों ने बताया कि लीची के फूलों से प्राप्त शहद स्वाद और औषधीय गुणों में विशिष्ट होता है और इसकी वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है। उन्होंने किसानों को लीची आधारित शहद उत्पादन अपनाने और समूहों में कार्य कर उत्पाद की ब्रांडिंग पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।

तीन सौ से अधिक प्रतिभागियों की सहभागिता

इस संगोष्ठी में 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें कृषि छात्र, शोधार्थी, युवा वैज्ञानिक, किसान प्रतिनिधि और उद्यमी शामिल थे।

छात्रों के लिए आयोजित हुई रोचक प्रतियोगिता

कार्यक्रम के समापन पर छात्रों के लिए एक विशेष “लीची खाने की प्रतियोगिता” का आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस प्रतियोगिता ने कार्यक्रम में एक मनोरंजक और जीवंत माहौल उत्पन्न किया।

सारांश

यह संगोष्ठी लीची उत्पादन और उससे जुड़े उत्पादों के वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को उजागर करने में सफल रही। विशेषज्ञों की राय, किसानों की भागीदारी और युवा पीढ़ी की रुचि ने यह संकेत दिया कि आने वाले समय में बिहार की लीची और उससे उत्पादित शहद वैश्विक मानचित्र पर अपनी मजबूत पहचान बना सकते हैं।

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