IFPRI और ICAR-IARI के सहयोग से CGE मॉडलिंग कार्यशाला
नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI), साउथ एशियन नेटवर्क ऑन इकोनॉमिक मॉडलिंग (SANEM) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI) के सहयोग से CGIAR समर्थित एक सप्ताह का कम्प्यूटेबल जनरल इक्विलिब्रियम (CGE) मॉडलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम आज से नई दिल्ली में शुरू हो गया। इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को IFPRI के मानक CGE मॉडल का व्यावहारिक ज्ञान मिलेगा, जिससे वे विभिन्न आर्थिक नीतियों का विश्लेषण कर सकेंगे।
दक्षिण एशिया, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, कई नीतिगत चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें व्यापार, श्रम बाजार, गरीबी उन्मूलन और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। इन मुद्दों से निपटने के लिए CGE मॉडलिंग एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है, क्योंकि यह नीति निर्माण में डेटा-संचालित निर्णय लेने में सहायता करता है।
शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की भागीदारी
ICAR-IARI के कृषि अर्थशास्त्र विभाग की प्रमुख, प्रोफेसर डॉ. अल्का सिंह ने उद्घाटन सत्र में प्रतिभागियों का स्वागत किया और इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “यह कार्यक्रम प्रतिभागियों के लिए न केवल ज्ञान अर्जित करने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि विभिन्न देशों के विशेषज्ञों से सीखने का मंच भी उपलब्ध कराता है।
IFPRI के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक, डॉ. शाहिदुर राशिद ने कहा, “दक्षिण एशिया तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन नई चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। इस क्षेत्र में प्रभावी नीतियाँ बनाने के लिए CGE मॉडलिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।” SANEM के कार्यकारी निदेशक, डॉ. सलीम रहमान ने बताया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.
नीति निर्माण में CGE मॉडलिंग की भूमिका
CGE मॉडलिंग आर्थिक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने और विभिन्न नीति सुधारों के प्रभाव का आकलन करने का एक सशक्त माध्यम है। उद्घाटन सत्र में 2024 के प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता को चिह्नित करने के लिए दो नीति सारांश (पॉलिसी ब्रीफ) भी जारी किए गए, जो CGE मॉडलिंग के प्रभावी उपयोग को उजागर करते हैं।
ICAR-IARI के निदेशक और कुलपति, डॉ.श्रीनिवास राव ने कहा, “आर्थिक नीतियाँ विकास की दिशा तय करती हैं, और CGE मॉडलिंग के माध्यम से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि विभिन्न परिस्थितियों में नीतियाँ कैसे कार्य करेंगी।”
ICAR के कृषि शिक्षा विभाग के उप-महानिदेशक, डॉ. आर. सी. अग्रवाल ने कहा, “IFPRI और ICAR के बीच साझेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू क्षमता निर्माण है, जिससे शोधकर्ताओं को बेहतर नीति विश्लेषण करने में सहायता मिलती है।”
भविष्य की संभावनाएं
कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान संघ (AERA) के अध्यक्ष, डॉ. पी. के. जोशी ने विभिन्न देशों के प्रतिभागियों की भागीदारी को सराहा और कहा कि “डेटा विश्लेषण के साथ-साथ नीति निर्माण के लिए कल्पनाशक्ति और दीर्घकालिक दृष्टिकोण भी आवश्यक हैं।” उन्होंने इस प्रशिक्षण मॉडल को अन्य कार्यक्रमों में दोहराने की भी सिफारिश की।
2001 से IFPRI ने CGE मॉडलिंग में क्षमता निर्माण के लिए 30 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिससे 30 देशों के 500 से अधिक शोधकर्ता लाभान्वित हुए हैं। दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्थाओं, जलवायु परिवर्तन और व्यापार नीतियों में आ रहे परिवर्तनों के मद्देनजर CGE मॉडलिंग की भूमिका पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।