भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने किसानों को अधिक वित्तीय सहायता देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उसने कृषि ऋणों की सीमा 1.6 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी है। यह निर्णय कृषि क्षेत्र की बढ़ती लागतों और मुद्रास्फीति के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इसका उद्देश्य किसानों को अधिक वित्तीय पहुँच प्रदान करना और उन्हें बिना अतिरिक्त प्रतिभूति की आवश्यकता के अपने परिचालन और विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन देना है।
1 जनवरी, 2025 से यह नई सीमा प्रभावी होगी, और बैंकों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रति उधारकर्ता 2 लाख रुपये तक कृषि ऋणों को प्रदान करें, जिसमें कृषि संबंधी सहायक कार्य भी शामिल होंगे। इसके साथ ही, किसानों के लिए अतिरिक्त प्रतिभूति और मार्जिन आवश्यकताओं को माफ कर दिया जाएगा।
यह कदम विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभकारी है, क्योंकि इससे उनकी ऋण तक पहुँच में सुधार होगा और उन्हें कम ब्याज दर पर ऋण मिल सकेगा। इसके अलावा, इस पहल से किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋणों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है, जिससे किसानों को कृषि कार्यों में निवेश करने और अपनी आजीविका में सुधार करने में मदद मिलेगी।
संशोधित ब्याज अनुदान योजना के तहत 4% ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक के ऋण की पेशकश की जाएगी, जो वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है और कृषि क्षेत्र के विकास में सहायक होगी। यह नीति सरकार के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो सतत कृषि के लिए समर्थन प्रदान करती है।
इस नीति का उद्देश्य न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है, बल्कि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता और स्थिरता में सुधार करना भी है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए दीर्घकालिक रूप से फायदेमंद होगा और कृषि-आधारित आर्थिक विकास को मजबूत करेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कृषि ऋण सीमा बढ़ाने का यह निर्णय वास्तव में सराहनीय है। यह कदम छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मददगार साबित होगा। कृषि क्षेत्र में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने से उत्पादकता और स्थिरता भी बढ़ेगी। यह पहल सरकार के सतत कृषि के दृष्टिकोण को भी मजबूती प्रदान करती है। क्या इस नीति का कृषि उत्पादकता पर तत्काल प्रभाव दिखाई देगा?