जामुन की खेती: स्वास्थ्य लाभ भी, आर्थिक मुनाफा भी!

मधुमेह का प्राकृतिक इलाज: जामुन की वैज्ञानिक किस्में

आधुनिक जीवनशैली, असंतुलित आहार और मानसिक तनाव के कारण मधुमेह बीमारी अब युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर होती जा रही है।

डॉ. एस.के. सिंह, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक,

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक व प्रमुख फल रोग विशेषज्ञ डॉ. एस.के. सिंह, राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर का कहना है कि इस स्थिति में जामुन (Syzygium cumini) एक प्राकृतिक समाधान के रूप में उभर कर सामने आया है। इसके फल, बीज और छाल सभी मधुमेह नियंत्रण में उपयोगी सिद्ध हुए हैं। आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों में भी जामुन को कारगर माना गया है

वैज्ञानिकों ने विकसित की जामुन की उन्नत किस्में

बढ़ती मांग और औषधीय गुणों को देखते हुए देश के विभिन्न कृषि वैज्ञानिक संस्थानों ने जामुन की कई उन्नत किस्मों का विकास किया है। ये किस्में बेहतर गुणवत्ता, स्वाद, पोषण और व्यावसायिक दृष्टिकोण से किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही हैं।

🔸 राजा जामुन

यह किस्म देशभर में लोकप्रिय है। इसके फल बड़े, गहरे बैंगनी रंग के और आयताकार होते हैं। गुठली छोटी होने के कारण गूदेदार हिस्सा अधिक प्राप्त होता है। इसके रसदार फल बाजार में अच्छे दाम दिलाते हैं।

🔸 CISH-J-45 (बीजहीन जामुन):

सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर (CISH), लखनऊ द्वारा विकसित यह किस्म विशेष रूप से बीजहीन होती है। फल अंडाकार, मीठे और अत्यंत रसदार होते हैं। गुजरात और उत्तर प्रदेश में इसकी खेती बड़े स्तर पर हो रही है।

🔸 CISH-J-37

इसी संस्थान द्वारा विकसित यह किस्म गहरे काले रंग के मध्यम आकार के फलों से युक्त होती है। फल वर्षा ऋतु में पकते हैं और गूदा अत्यधिक रसदार होता है। यह किस्म घरेलू उपयोग और स्थानीय बाजार के लिए उपयुक्त है।

🔸 जामवंत

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ द्वारा दो दशक के अनुसंधान के बाद विकसित यह किस्म जामुन की बौनी और घनी शाखाओं वाली प्रजाति है। इसमें फल बड़े और आकर्षक बैंगनी रंग के होते हैं। फल में 90% से अधिक गूदा होता है और कसैलापन बहुत ही कम होता है। इसकी गुठली अत्यंत छोटी होती है तथा औसतन वजन 24 ग्राम होता है। इसमें विटामिन C भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

🔸 काथा

इस किस्म के फल छोटे, गोल और बेर जैसे होते हैं। स्वाद में हल्की खटास पाई जाती है। यह स्वाद प्रेमियों के लिए एक उपयुक्त विकल्प मानी जाती है।

🔸 गोमा प्रियंका

केन्द्रीय बागवानी अनुसंधान केन्द्र, गोधरा (गुजरात) द्वारा विकसित यह किस्म मीठे स्वाद और उच्च गूदेदारता के लिए जानी जाती है। इसमें हल्का कसैलापन भी पाया जाता है। वर्षा ऋतु में फल तैयार होते हैं और बाजार में अच्छी कीमत दिलाते हैं।

🔸 भादो (पछेती किस्म)

अगस्त माह में पकने वाली यह किस्म मध्यम आकार के फलों से युक्त होती है। खटास और मिठास का संतुलित स्वाद इस किस्म की विशेषता है। यह पछेती फसल के रूप में काफी उपयोगी है।

क्षेत्रीय किस्में भी दे रही अच्छा उत्पादन

इन राष्ट्रीय किस्मों के अलावा कुछ स्थानीय किस्में भी किसानों के बीच लोकप्रिय हैं, जैसे – नरेंद्र-6, कोंकण भादोली, बादाम, जत्थी और राजेन्द्र-1। ये किस्में भी विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अनुकूल पाई गई हैं और बेहतर उत्पादन दे रही हैं।

स्वास्थ्य के साथ-साथ आय का भी साधन बनी जामुन की खेती

डॉ. एस.के. सिंह ने कहा कि जामुन की खेती न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि यह किसानों के लिए एक सतत और मुनाफेदार फसल के रूप में उभर रही है। इसके पौधे जलवायु सहनशील, कम देखभाल वाले और लंबे समय तक फल देने वाले होते हैं। मधुमेह रोगियों में जामुन की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे इसके बाजार मूल्य में निरंतर वृद्धि हो रही है।

उन्होंने किसानों से अपील की कि वे जामुन की उन्नत किस्मों को अपनाएं और इसकी वैज्ञानिक खेती करें ताकि वे न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनें, बल्कि समाज को स्वस्थ रखने में भी योगदान दे सकें।

📌 संदेश:
जामुन की खेती अपनाएं – स्वास्थ्य लाभ भी, आर्थिक लाभ भी।
(डॉ. एस.के. सिंह, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, पूसा, समस्तीपुर)

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