अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जल प्रबंधन में महिलाओं के सशक्तिकरण पर कार्यशाला
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जल प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका और उनके सशक्तिकरण पर एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य महिला किसानों द्वारा जल प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करना और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में जल संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए नवीन तकनीकों व नीतियों को अपनाने पर जोर देना था।
इस कार्यशाला का आयोजन जल प्रौद्योगिकी केंद्र (WTC), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RPCAU), बिहार द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इसमें देशभर से कृषि और जल प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, शोधकर्ता और महिला किसान शामिल हुए।
महिलाओं की भागीदारी क्यों है महत्वपूर्ण?
कृषि और जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं खेती और जल संसाधनों के प्रबंधन में अहम भूमिका निभाती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण जल की उपलब्धता में कमी, बाढ़, सूखा और खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे महिला किसानों को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
इस कार्यशाला में विशेषज्ञों ने इस बात पर चर्चा की कि कैसे जल संसाधनों का वैज्ञानिक और पारंपरिक तरीकों से प्रबंधन किया जाए, ताकि महिलाओं को लाभ मिल सके और वे आत्मनिर्भर बन सकें।
विशेषज्ञों ने साझा किए विचार
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कई प्रमुख वैज्ञानिक और शोधकर्ता शामिल हुए। इस दौरान डॉ. जया एन. सूर्य (एनबीएसएसएलयूपी, नई दिल्ली), डॉ. सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डॉ. पी. एस. ब्रह्मानंद (परियोजना निदेशक, डब्ल्यूटीसी) और डॉ. ए. के. सिंह (अनुसंधान निदेशक, आरपीसीएयू) ने जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी और पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों के महत्व पर जोर दिया।
उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को जल प्रबंधन से जुड़ी नवीनतम तकनीकों की जानकारी देकर और नीति-निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर कृषि क्षेत्र को अधिक सशक्त बनाया जा सकता है।
तकनीकी सत्र में जल प्रबंधन पर चर्चा
कार्यशाला के तकनीकी सत्र में “जलवायु सहनशील जल प्रबंधन और जल निकायों के पुनरुद्धार” जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रस्तुतियाँ दी गईं। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. सीमा जग्गी (एडीजी, एचआरडी, आईसीएआर) ने की, जबकि डॉ. डी. एस. गुर्जर (वरिष्ठ वैज्ञानिक, डब्ल्यूटीसी, आईएआरआई) ने सह-अध्यक्षता की।
इस सत्र में महिलाओं की जल संसाधन प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ाने और उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण देने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
महिला सशक्तिकरण के लिए पैनल चर्चा
तकनीकी सत्र के बाद “जलवायु सहनशील जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और नीतियों का महिला सशक्तिकरण में एकीकरण” विषय पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। इस चर्चा का संचालन डॉ. एन. सुभाष (प्रमुख, कृषि भौतिकी विभाग, आईएआरआई) ने किया।
पैनल में डॉ. आर. एन. पड़ारिया (संयुक्त निदेशक, प्रसार, आईएआरआई), डॉ. के. नरसैया (एडीजी, प्रक्रिया अभियांत्रिकी), डॉ. जया एन. सूर्य (आईसीएआर-एनबीएसएसएलयूपी, नई दिल्ली), डॉ. अमरेश चंद्र (डीन, कॉलेज ऑफ बेसिक साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज, आरपीसीएयू), डॉ. पी. पी. श्रीवास्तव (डीन, कॉलेज ऑफ फिशरीज, आरपीसीएयू) और डॉ. यू. के. बेहरा (शिक्षा निदेशक, आरपीसीएयू) ने भाग लिया।
इस पैनल में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की गई:
✔ जल प्रबंधन की सिद्ध तकनीकों को अपनाने हेतु प्रभावी विस्तार विधियाँ
✔ महिला किसानों के लिए अनुकूल उपकरणों का विकास
✔ कम लागत वाली वर्षा जल संचयन तकनीकों का उपयोग
✔ एकीकृत कृषि प्रणाली के माध्यम से जल संसाधनों का संरक्षण
✔ अमृत सरोवर योजना और जल जीवन मिशन को अधिक प्रभावी बनाना
इस चर्चा का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को जल प्रबंधन में आत्मनिर्भर बनाना और कृषि क्षेत्र में उनकी भूमिका को मजबूत करना था।
इस कार्यशाला में करीब 70 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें आईसीएआर-आईएआरआई, आईसीएआर मुख्यालय, एनबीपीजीआर और अन्य संस्थानों के शोधकर्ता, शिक्षक, कर्मचारी और छात्र शामिल थे।
कार्यशाला के अंत में “जलवायु सहनशील जल प्रबंधन द्वारा महिला सशक्तिकरण” पर एक नीति पत्र तैयार करने की घोषणा की गई। यह नीति पत्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG-6: स्वच्छ जल एवं स्वच्छता, SDG-5: लैंगिक समानता और SDG-13: जलवायु परिवर्तन की रोकथाम) को प्राप्त करने में सहायक होगा।
सारांश
यह कार्यशाला इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर न केवल कृषि क्षेत्र को मजबूत किया जा सकता है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बनाया जा सकता है।
महिला किसानों को जल प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों और पारंपरिक ज्ञान के संतुलन से सशक्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और किसानों के बीच समन्वय बेहद जरूरी है।
इस कार्यशाला ने जल प्रबंधन और महिला सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत मंच तैयार किया, जिससे भविष्य में कई सकारात्मक बदलाव आने की उम्मीद है।