“विकसित भारत @2047: खेत से नीति तक एक सोच”

“IARI में डॉ. बी. पी. पाल स्मृति व्याख्यान, जानिए क्या रहा खास”

नई दिल्ली— भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईएआरआई), नई दिल्ली के जेनेटिक्स क्लब और ग्रेजुएट स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में 32वें डॉ. बी. पी. पाल स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम देश के प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिक, पद्म विभूषण डॉ. बी. पी. पाल की स्मृति और उनके बहुआयामी योगदान को समर्पित था, जिन्होंने भारतीय कृषि की आधारशिला को सुदृढ़ करने में केंद्रीय भूमिका निभाई।

यह स्मृति व्याख्यान संस्थान के एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग डिवीजन के सभागार में संपन्न हुआ, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. एम. एल. जाट, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) एवं महानिदेशक, आईसीएआर उपस्थित रहे। उन्होंने “विकसित भारत @2047 के लिए विषयवस्तु-केंद्रित कृषि से समग्र कृषि-खाद्य प्रणाली की ओर परिवर्तन” विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. आर. एस. परोदा, अध्यक्ष, टीएएएस, एवं पूर्व सचिव, DARE तथा पूर्व महानिदेशक, आईसीएआर ने की।

🙏 समारोह की शुरुआत श्रद्धा और परंपरा से

कार्यक्रम की शुरुआत ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना से हुई, जिसे आईएआरआई की सांस्कृतिक इकाई टीजीएस कोयर द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसके उपरांत दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ हुआ। डॉ. बी. पी. पाल की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

संस्थान की संयुक्त निदेशक (शिक्षा) एवं डीन, डॉ. अनुपमा सिंह ने सभी आगंतुकों, अतिथियों और वक्ताओं का हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने इस व्याख्यान की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह कार्यक्रम न केवल डॉ. पाल के योगदान को स्मरण करता है, बल्कि युवा वैज्ञानिकों को प्रेरणा देने का माध्यम भी है।

डॉ. पाल की विरासत पर प्रकाश

आईसीएआर-आईएआरआई के निदेशक एवं कुलपति डॉ. सी. एच. श्रीनिवास राव ने डॉ. पाल के जीवन और कार्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उन्होंने भारत की हरित क्रांति को साकार करने में अग्रणी भूमिका निभाई। उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और संस्थागत निर्माण की क्षमता आज भी भारतीय कृषि अनुसंधान प्रणाली की प्रेरणा स्रोत है।

मुख्य व्याख्यान: भविष्य की कृषि का खाका

अपने व्याख्यान में डॉ. एम. एल. जाट ने स्पष्ट किया कि विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें कृषि को एक समग्र, विज्ञान-आधारित और समावेशी प्रणाली के रूप में विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन केवल उत्पादन बढ़ाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि पोषण, पर्यावरण, जलवायु अनुकूलन और आर्थिक समावेशन को भी समान महत्व देना होगा।

डॉ. जाट ने कहा कि भारत की कृषि प्रणाली को स्थानीय खाद्य प्रणालियों के सशक्तिकरण, जलवायु-लचीले और पुनरुत्पादक परिदृश्यों के निर्माण, मांग एवं बाजार-आधारित अनुसंधान, और बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने “वन हेल्थ” फ्रेमवर्क, गुणवत्तापूर्ण विज्ञान, एआई/एमएल का समावेश, और सुदृढ़ डेटा पारिस्थितिकी तंत्र पर बल दिया।

उन्होंने विशेष रूप से युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों को केंद्र में रखकर विज्ञान और नवाचार को राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ने की बात कही।

🎓 अध्यक्षीय संबोधन में क्या कहा गया?

डॉ. आर. एस. परोदा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमें कृषि के क्षेत्र में प्रणालीगत सोच के साथ तत्काल क्रियान्वयन की दिशा में बढ़ना होगा। उन्होंने अनुसंधान संस्थानों, नीति निर्माताओं, शिक्षा जगत और किसानों के बीच सहयोग को अनिवार्य बताया। साथ ही, कृषि शिक्षा प्रणाली को आधुनिक, सशक्त और व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

विविध सहभागिता और धन्यवाद ज्ञापन

इस अवसर पर आईसीएआर-आईएआरआई के वैज्ञानिकों, छात्रों, शिक्षकों के साथ-साथ राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR), राष्ट्रीय कृषि बौद्धिक संपदा प्रबंधन संस्थान (NIIPM), राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान संस्थान (NIAP), और राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (NIPB) के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. हर्ष कुमार दीक्षित, अध्यक्ष, जेनेटिक्स क्लब, आईसीएआर-आईएआरआई ने प्रस्तुत किया।

यह व्याख्यान न केवल डॉ. पाल की स्मृति को सम्मानित करता है, बल्कि विज्ञान-आधारित, समावेशी एवं सतत कृषि रूपांतरण के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता को भी प्रकट करता है, जो “विकसित भारत @2047” की राष्ट्रीय परिकल्पना से पूर्णतः जुड़ा हुआ है।

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