विज्ञापन चमके, फसलें मुरझाईं – बायोस्टिमुलेंट की असलियत!

बायोस्टिमुलेंट और नैनो यूरिया पर किसानों की नाराजगी!

भारतीय कृषि अब एक नई टकराहट के केंद्र में है—जहां खेतों की ज़रूरतों और बाजार की आपूर्तियों के बीच सामंजस्य नहीं, बल्कि संघर्ष पनप रहा है। उत्पादन में सुधार के नाम पर प्रचारित किए जा रहे उत्प्रेरक उत्पाद जैसे बायोस्टिमुलेंट, नैनो यूरिया और अन्य कृषि इनपुट्स की सच्चाई अब किसानों की ज़मीनी शिकायतों, वैज्ञानिक प्रमाण की कमी और संस्थागत उदासीनता के बीच जांच के घेरे में है।

किसानों का भरोसा टूटा, वैज्ञानिक आधार नदारद!

हालिया विकसित कृषि संकल्प अभियान के दौरान जब किसानों की शिकायतों को सुना गया, तब यह स्पष्ट हुआ कि प्रचारित उत्पादों की प्रभावशीलता को लेकर जमीन पर गहरी निराशा फैली हुई है। किसान बताते हैं कि बायोस्टिमुलेंट्स के प्रयोग से उत्पादन में कोई उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं हुई। कई बार तो मिट्टी की संरचना बिगड़ी और फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। यह विरोधाभास तब और गंभीर हो जाता है जब उत्पादों को “जैविक वृद्धि प्रोत्साहक” कहकर विज्ञापित किया जाए, लेकिन उनके प्रभाव का कोई वैज्ञानिक आधार न हो।

बायोस्टिमुलेंट को वर्ष 2021 में उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO) की अनुसूची VI में शामिल किया गया था। इसके तहत किसी भी उत्पादक को पंजीकरण और वैज्ञानिक परीक्षण करवाना अनिवार्य है। बावजूद इसके, एक समय पर करीब 30,000 उत्पाद बाज़ार में बिक रहे थे—जिनमें से अधिकतर बिना वैज्ञानिक प्रमाण के ही किसानों तक पहुँच गए। सख्ती के बाद यह संख्या घटकर लगभग 650 रह गई है, जो इस बात का संकेत है कि पूर्ववर्ती स्वीकृति व्यवस्था बेहद लचर रही।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने उठाए सख्त सवाल?

प्रशासनिक चुप्पी और वैज्ञानिक संस्थानों की निष्क्रियता पर सवाल उठते ही एक केंद्रीय बिंदु उभरता है—क्या किसानों की जरूरतें बाज़ार की रणनीति में शामिल ही नहीं हैं? केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समीक्षा बैठक में अधिकारियों से पूछा था: “क्या हमारे पास ऐसा कोई वैज्ञानिक डेटा है जिससे यह सिद्ध हो सके कि बायोस्टिमुलेंट से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है?” यह प्रश्न सिर्फ एक मंत्रालय के लिए नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के लिए चुनौती है। यदि उत्तर नहीं है, तो स्वीकृत उत्पादों की भूमिका किस आधार पर तय की गई?

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में ICAR जैसी वैज्ञानिक संस्थाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। केंद्रीय कृषि मंत्री की चेतावनी भी यही थी कि “ICAR किसानों के लिए है, कंपनियों के लिए नहीं।” लेकिन यदि इन संस्थानों से जुड़ी परीक्षण प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है, और उत्पादन से पहले कोई विश्वसनीय परीक्षण रिपोर्ट सामने नहीं आती, तो यह संदेह बढ़ता है कि कहीं न कहीं संस्थागत स्वीकृति बाज़ार के दबाव में दी जा रही है।

नैनो यूरिया और घटिया बीजों की समस्या

नैनो यूरिया और नकली खाद-बीज की बिक्री भी इस संकट को और गहरा करती है। किसानों ने शिकायत की है कि नैनो यूरिया पारंपरिक यूरिया की तरह प्रभावकारी नहीं है। वहीं घटिया बीजों की बिक्री ने उत्पादन को प्रभावित किया और किसानों को आर्थिक नुकसान पहुँचाया। ऐसे मामलों में उत्पादों को “सरकारी मान्यता प्राप्त” बताकर बेचना किसानों की भरोसेमंद प्रणाली पर गहरा आघात है।

राजस्थान के बीकानेर में घटिया उत्पादों के गोदामों की सीलिंग और अधिकारियों के निलंबन जैसी घटनाएं यह सिद्ध करती हैं कि इस संकट की जड़ें केवल नीति में नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी फैली हुई हैं। यदि निगरानी और स्वीकृति प्रणाली अपने उद्देश्य से भटकती है, तो किसान केवल उपभोक्ता नहीं, प्रयोगशाला के विषय बन जाते हैं।

अब ज़रूरत है कि वैज्ञानिक परीक्षण को पंजीकरण से पहले अनिवार्य किया जाए। सैंपल टेस्टिंग की प्रक्रिया पारदर्शी और सार्वजनिक हो, और उसकी रिपोर्ट सुलभ तरीके से किसान समुदाय को उपलब्ध कराई जाए। साथ ही, यदि कोई उत्पाद मानकों पर खरा नहीं उतरता है तो उसकी बिक्री पर पूर्ण रोक लगाई जाए। दोषी अधिकारियों और कंपनियों पर एफआईआर दर्ज हो, लाइसेंस रद्द किए जाएं, और किसानों को मुआवज़ा देने की विधिक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

नैतिक और संस्थागत जवाबदेही

यह प्रश्न अब केवल तकनीकी नहीं रह गया है, बल्कि नैतिक और संस्थागत जवाबदेही का बन चुका है। जब वैज्ञानिक संस्थाएं कंपनियों के दबाव में आकर कार्य करें, और नियामक संस्थाएं उत्पादन की कसौटी को दरकिनार करें, तो किसान के पास कोई विकल्प नहीं बचता। यह स्थिति उस सामाजिक और नीति संकट की ओर इशारा करती है, जिसकी अनदेखी अब संभव नहीं।

भारतीय कृषि को नई नैतिक दिशा की आवश्यकता है—जहां किसानों की आवाज़ केवल खेत तक सीमित न रह जाए, बल्कि नीति निर्माण की नींव बन सके। उत्प्रेरकों के नाम पर चल रहा यह बाज़ारीकरण अब वैज्ञानिक कसौटी पर परखा जाना चाहिए। तभी किसान, विज्ञान और नीति एक साझा उद्देश्य के तहत जुड़ सकेंगे।

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