पराली जलाना मिट्टी की सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन!

पराली जलाने से मिट्टी हो जाती है निर्जीव : मिट्टी की सजीवता पहचानने के वैज्ञानिक संकेत बताए डॉ. एस. के. सिंह

समस्तीपुर – डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पोस्ट ग्रेजुएट विभागाध्यक्ष (प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी) एवं सह-निदेशक (अनुसंधान) प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह ने कहा है कि पराली जलाना न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है बल्कि यह मिट्टी के जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने चेतावनी दी कि लगातार पराली जलाने से मिट्टी के अंदर की जैविक गतिविधियाँ समाप्त हो जाती हैं और वह धीरे-धीरे निर्जीव बन जाती है।

प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह

डॉ. सिंह ने बताया कि मिट्टी सिर्फ धूल या कणों का ढेर नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत प्रणाली (Living System) है जिसमें असंख्य सूक्ष्मजीव, केंचुए, कवक, प्रोटोजोआ और अन्य अदृश्य जीव सक्रिय रहते हैं। यही जीव मिट्टी को उर्वर बनाते हैं, पोषक तत्वों का चक्र चलाते हैं और पौधों की सेहत बनाए रखते हैं।

उन्होंने कहा कि “जब किसान धान की पराली जलाता है, तो खेत की ऊपरी सतह पर अत्यधिक तापमान उत्पन्न होता है जिससे ये सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की जैविक कार्बन मात्रा घटती है, उर्वरता कम होती है और मिट्टी की संरचना कमजोर पड़ जाती है।”

🔸 मिट्टी के सजीव होने के संकेत

1. जैविक संकेतक — मिट्टी का असली जीवन
डॉ. सिंह के अनुसार यदि मिट्टी सजीव है तो उसमें अदृश्य लेकिन अत्यंत सक्रिय सूक्ष्मजीवों की बहुतायत होती है।

  • बैक्टीरिया पोषक तत्वों को स्थिर और उपलब्ध कराते हैं।

  • कवक जैविक पदार्थों को तोड़कर मिट्टी में पोषकता बढ़ाते हैं।

  • नेमाटोड और प्रोटोजोआ खाद्य श्रृंखला का संतुलन बनाए रखते हैं।

उन्होंने कहा कि सूक्ष्मजीवों की सक्रियता मिट्टी की उत्पादकता का सबसे बड़ा संकेत है। पराली जलाने से सबसे पहले यही जीव नष्ट होते हैं।

केंचुए मिट्टी के चिकित्सक हैं। जहाँ केंचुओं की संख्या अधिक होती है, वहाँ मिट्टी में जैविक पदार्थ की मात्रा और वायुसंचार बेहतर होता है। केंचुओं का लुप्त होना मिट्टी की जीवंतता के ह्रास का स्पष्ट संकेत है।

2. रासायनिक संकेतक — मिट्टी का आंतरिक संतुलन
डॉ. सिंह के अनुसार सजीव मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients) संतुलित मात्रा में पाए जाते हैं। पराली जलाने से नाइट्रोजन और जैविक कार्बन का तीव्र ह्रास होता है। इससे मिट्टी की उर्वरता तेजी से गिरती है।

उन्होंने बताया कि जैविक पदार्थ (Organic Matter) मिट्टी की आत्मा के समान होता है। यह मिट्टी की संरचना सुधारता है, जलधारण क्षमता बढ़ाता है और सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन का कार्य करता है। यदि किसान पराली को जलाने की बजाय खेत में पलट दें या डीकंपोजर का उपयोग करें तो मिट्टी का ऑर्गेनिक मैटर बढ़ता है, जिससे मिट्टी लंबे समय तक सजीव बनी रहती है।

3. भौतिक संकेतक — मिट्टी की बनावट और संरचना
स्वस्थ मिट्टी दानेदार, मुलायम और समुच्चययुक्त (aggregated) होती है। ऐसी मिट्टी में पानी का प्रवाह सुचारू रूप से होता है, जड़ें आसानी से फैलती हैं और ऑक्सीजन का संचार बना रहता है।

पराली जलाने से मिट्टी की संरचना टूट जाती है, ढेले बनने लगते हैं और सतह पर कठोर परत जम जाती है। जीवंत मिट्टी में रेत, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलन बना रहता है, जबकि निर्जीव मिट्टी में यह संतुलन बिगड़ जाता है।

4. पौधों का स्वास्थ्य — मिट्टी का आईना
डॉ. सिंह ने कहा कि पौधे अपनी भाषा में मिट्टी की कहानी बताते हैं। यदि मिट्टी सजीव है तो पौधे गहरे हरे, मजबूत और रोगमुक्त रहते हैं। वहीं निर्जीव मिट्टी में पौधे पीले पड़ जाते हैं, कमजोर हो जाते हैं और अक्सर रोगों की चपेट में आते हैं।

उन्होंने बताया कि माइकोराइजा नामक फफूंद पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाती है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाती है। इसका होना मिट्टी की सक्रियता का स्पष्ट प्रमाण है।

5. मृदा श्वसन — मिट्टी की सांस
सजीव मिट्टी ‘सांस’ लेती है। यह सांस कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के रूप में मापी जाती है।

  • अधिक मृदा श्वसन दर का अर्थ है कि मिट्टी में सूक्ष्मजीव सक्रिय हैं।

  • कम श्वसन दर मिट्टी की निर्जीव स्थिति को दर्शाती है।

🔸 पराली जलाना मिट्टी की सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा

डॉ. सिंह ने कहा कि पराली जलाना मिट्टी की जैविकता को पूरी तरह नष्ट कर देता है। इससे खेतों की उर्वरता घटती है, फसल उत्पादन प्रभावित होता है और मिट्टी की दीर्घकालिक उत्पादकता पर गहरा असर पड़ता है।

उन्होंने कहा कि “किसान अपनी मिट्टी को जानबूझकर बंजर नहीं बनाता, लेकिन जानकारी के अभाव में वह अपने खेत की जीवन-रेखा को स्वयं कमजोर कर देता है।”

🔹 किसान क्या करें?

मिट्टी को सजीव बनाए रखने के लिए डॉ. सिंह ने किसानों को निम्न सुझाव दिए —
✅ पराली जलाने से पूर्णतः बचें।
✅ जैविक खाद, गोबर की सड़ी खाद और कम्पोस्ट का प्रयोग बढ़ाएं।
✅ फसल अवशेषों को खेत में ही पलट दें या डीकंपोजर का उपयोग करें।
✅ मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाएं।
✅ फसल चक्र अपनाएं ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहे।

🔸 “मिट्टी का जीवन ही किसान की पूंजी है”

अंत में डॉ. सिंह ने कहा —

“मिट्टी का जीवन ही किसान की असली पूँजी है। इसे जीवित रखना हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने जैसा है। पराली जलाकर हम अपनी भूमि की आत्मा को ही जला देते हैं। यदि मिट्टी सजीव रहेगी, तो आने वाली पीढ़ियों का अन्न भी सुरक्षित रहेगा।”

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