आम में जिंक की कमी: लक्षण, कारण और प्रभावी इलाज
आम के पेड़ की पत्तियां हो रही पीली, विकास में रुकावट – कारण और वैज्ञानिक समाधान पर विशेषज्ञ की सलाह✍️ प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह
पूर्व सह-निदेशक अनुसंधान एवं विभागाध्यक्ष, पौध रोग एवं सूत्रकृमि विभाग, एवं
पूर्व प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
समस्तीपुर, बिहार। भारत में आम का वृक्ष न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश की सांस्कृतिक और आहार परंपरा से भी गहराई से जुड़ा है। आम के बागानों से जुड़े लाखों किसान हर वर्ष अच्छे उत्पादन की उम्मीद करते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में एक सामान्य और गंभीर समस्या आम उत्पादकों को परेशान कर रही है – आम के पेड़ की पत्तियों का पीला पड़ना, पौधे के विकास में रुकावट और फल-फूल में गिरावट। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समस्या जिंक (Zinc) की कमी के कारण हो रही है, जो पौधों के समुचित विकास के लिए एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्व है।
‘फलों के राजा’ के सामने पोषण संकट
आम (Mangifera indica) को ‘फलों का राजा’ यूं ही नहीं कहा जाता। इसकी मिठास, सुगंध, स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक गुण इसे विशेष बनाते हैं। लेकिन अच्छी गुणवत्ता और मात्रा में फल उत्पादन के लिए पौधे को सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार जिंक की कमी के कारण आम के पौधों में न केवल वृद्धि रुक जाती है, बल्कि पत्तियां छोटी, पीली और बेडौल हो जाती हैं, और फलों की संख्या और गुणवत्ता में भी गिरावट आती है।
जिंक की कमी से जुड़ी मुख्य समस्याएं – लक्षण स्पष्ट हैं
जिंक की कमी से सबसे पहले पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है, जिसे तकनीकी रूप से “क्लोरोसिस” कहा जाता है। यह पीलापन नसों के बीच स्पष्ट दिखाई देता है। इसके अलावा, नई पत्तियां बहुत छोटी, मोटी और मुड़ी हुई होती हैं। पौधों की ऊँचाई बढ़नी बंद हो जाती है, टहनियां कमजोर होकर सूखने लगती हैं, और अंततः फूल और फल लगना भी प्रभावित होता है।
क्यों होती है जिंक की कमी? जानिए इसके कारण
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जिंक की कमी कई कारणों से हो सकती है:
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मिट्टी का अत्यधिक पीएच (क्षारीयता): ऐसी मिट्टी में जिंक उपलब्ध नहीं होता।
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फॉस्फोरस की अधिकता: जब अत्यधिक पी-युक्त उर्वरक डाले जाते हैं, तो वे जिंक के अवशोषण को रोकते हैं।
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जड़ों की क्षति: फफूंद या अन्य कारणों से जड़ें कमजोर हों, तो पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है।
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लोहा, तांबा, मैंगनीज की अधिकता: इन तत्वों का असंतुलन जिंक को अनुपलब्ध बना देता है।
क्या है इलाज? – वैज्ञानिक समाधान अपनाएं
किसान भाइयों के लिए राहत की बात यह है कि यदि समय पर पहचान हो जाए, तो जिंक की कमी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है। विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए समाधान निम्नलिखित हैं:
🧪 1. मृदा परीक्षण करें
किसी भी सुधारात्मक कदम से पहले खेत की मिट्टी की जांच अनिवार्य है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कौन से पोषक तत्व की कमी है।
🌾 2. जिंक सल्फेट का प्रयोग करें:
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मिट्टी में: ZnSO₄ @ 10 किग्रा/हेक्टेयर
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पत्तियों पर छिड़काव के लिए:
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ZnSO₄ 0.5% (5 ग्राम प्रति लीटर पानी)
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नाइट्रोजिंक 1.5 मिली/लीटर पानी
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🧂 3. मिट्टी का पीएच नियंत्रित करें
अत्यधिक क्षारीय मिट्टी में सल्फर या जैविक अम्लों का प्रयोग करें, जिससे जिंक घुलनशील रूप में उपलब्ध हो सके।
🧃 4. फॉस्फोरस का संतुलन बनाए रखें
अत्यधिक फॉस्फेट उर्वरकों का प्रयोग करने से बचें।
🍂 5. जैविक मल्चिंग करें
पेड़ों के चारों ओर जैविक मल्च लगाने से नमी बनी रहती है और सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
✂️ 6. नियमित कटाई-छंटाई करें
रोगग्रस्त या सूखी टहनियों की छंटाई से पौधे में पोषक तत्वों का बेहतर वितरण होता है।
👀 7. सतत निगरानी बनाए रखें
फसल की स्थिति पर लगातार नज़र रखें और जैसे ही लक्षण दिखाई दें, तुरंत उपचार शुरू करें।
कृषि विशेषज्ञ की सलाह
“जिंक की कमी यदि समय रहते पहचानी और उसका प्रबंधन नहीं किया गया, तो न केवल उत्पादन बल्कि आम की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। किसान भाई यदि वैज्ञानिक पद्धति से मृदा परीक्षण करें, उर्वरक संतुलन बनाए रखें और पत्तियों पर उचित छिड़काव करें, तो इस समस्या से आसानी से निजात पाई जा सकती है।”
सारांश
आम के बागानों में पत्तियों का पीला पड़ना या वृक्षों का विकास रुकना अब सामान्य बात नहीं मानी जानी चाहिए। यह एक वैज्ञानिक संकेत है कि पौधा आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों से वंचित है। किसानों को चाहिए कि वे अपने खेतों की नियमित निगरानी करें, संतुलित पोषण प्रबंधन अपनाएं और समय पर उपचार करें। तभी ‘फलों के राजा’ की शान और पैदावार दोनों बरकरार रह सकेगी।
चित्र: प्रतीकात्मक