मानसून की उम्मीदों से खरीफ सीजन में जोश

खरीफ बुवाई ने पकड़ी रफ्तार, अब तक 89.29 लाख हेक्टेयर में फसल बोई गई

धान, दलहन और तिलहन फसलों के रकबे में उल्लेखनीय वृद्धि; सामान्य से बेहतर मानसून की उम्मीद से किसानों में उत्साह

📍 नई दिल्ली-कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने खरीफ सीजन की प्रगति रिपोर्ट जारी करते हुए 13 जून 2024 तक विभिन्न फसलों के बुवाई क्षेत्र का विवरण साझा किया है। आंकड़ों के अनुसार, देशभर में अब तक कुल 89.29 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुवाई की जा चुकी है। यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में सकारात्मक वृद्धि को दर्शाता है।

इस वृद्धि का मुख्य कारण धान, दलहन और तिलहन फसलों के रकबे में तेजी से हुआ विस्तार बताया गया है। इस वर्ष भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा सामान्य से अधिक मानसून की भविष्यवाणी के चलते किसान खरीफ बुवाई को लेकर आशावान हैं।

👉 धान में तेजी

धान की बुवाई में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है। सामान्य औसत क्षेत्रफल 403.09 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस वर्ष अब तक 4.53 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई है, जबकि पिछले वर्ष इसी समय तक 4.00 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हुई थी। इस प्रकार 0.53 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है।

👉दलहन के फसलों में 

दलहन फसलों का कुल बुवाई क्षेत्र 3.07 लाख हेक्टेयर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 0.47 लाख हेक्टेयर अधिक है। हालांकि विभिन्न दलहनों में मिश्रित परिणाम सामने आए हैं:

  • अरहर में 0.11 लाख हेक्टेयर की गिरावट

  • उड़द दाल में 0.24 लाख हेक्टेयर की वृद्धि

  • मूंग दाल में 0.17 लाख हेक्टेयर की वृद्धि

  • कुल्थी में मामूली 0.02 लाख हेक्टेयर की बढ़त

  • मोठ बीन और नाइजर में कोई बदलाव नहीं

  • अन्य दलहनों में 0.15 लाख हेक्टेयर की वृद्धि

👉 तिलहन फसलों में अच्छा प्रदर्शन

तिलहन फसलों का रकबा 36.6% की वार्षिक वृद्धि के साथ सबसे तेज़ बढ़ोतरी वाला क्षेत्र रहा है। इससे देश की खाद्य तेल आयात पर निर्भरता घटने की संभावना जताई जा रही है।

भारत वर्तमान में लगभग 60% खाद्य तेलों की जरूरत आयात के माध्यम से पूरी करता है, जिसमें पाम, सोया और सूरजमुखी तेल प्रमुख हैं। लेकिन तिलहन उत्पादन में बढ़ोतरी से देश की आत्मनिर्भरता बढ़ सकती है।

👉गन्ना और कपास की स्थिति

  • गन्ना में इस वर्ष अब तक 55.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हुई है, जो पिछले वर्ष से 0.20 लाख हेक्टेयर अधिक है।

  • कपास की बुवाई में 13.19 लाख हेक्टेयर पर काम हुआ है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 0.09 लाख हेक्टेयर कम है।

  • जूट और मेस्टा की फसलों में भी 0.17 लाख हेक्टेयर की कमी देखी गई है।

🌀 खरीफ सीजन का महत्व

खरीफ या मानसून सीजन मई के अंतिम सप्ताह से सितंबर तक चलता है और भारत की कुल फसल पैदावार का लगभग 60% हिस्सा इसी दौरान होता है। धान, मक्का, सोयाबीन, अरहर और कपास जैसी फसलें पूरी तरह मानसूनी वर्षा पर निर्भर होती हैं।

📢 केंद्र सरकार की पहल

सरकार द्वारा हाल ही में “विकसित कृषि संकल्प अभियान” से देशव्यापी जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया, जो 29 मई से 12 जून तक चला। इसका उद्देश्य किसानों को खरीफ सीजन के लिए उन्नत तकनीक, संसाधन और जानकारी से लैस करना था।

🌾 विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञ मानते हैं कि बुवाई क्षेत्र में तेजी से हुई वृद्धि इस बात का संकेत है कि किसान इस खरीफ सीजन को लेकर सकारात्मक हैं। इससे खाद्य मुद्रास्फीति की संभावनाएं भी सीमित रह सकती हैं।

संभावनाएं

यदि मानसून समय पर और अनुकूल बना रहता है, तो आगामी हफ्तों में बुवाई क्षेत्र में और बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं। कृषि विभाग राज्यों के साथ मिलकर स्थिति पर नजर बनाए हुए है।

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