जल संकट में खेती को मिलेगी नई दिशा: कम पानी पसंद करने वाली फसलें किसानों के लिए बन रही हैं लाभकारी विकल्प
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के विशेषज्ञ ने दी सलाह

समस्तीपुर, बिहार, बदलते पर्यावरण, बढ़ते जल संकट और अनिश्चित मानसून के बीच परंपरागत खेती करना आज के किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे समय में खेती के ऐसे विकल्पों को अपनाना अनिवार्य हो गया है जो कम जल की आवश्यकता में भी अच्छी उपज दे सकें। इस दिशा में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-समस्तीपुर के प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह, विभागाध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान एवं सूत्रकृमि विज्ञान विभाग ने “कम पानी पसंद करने वाली फसलों” को टिकाऊ कृषि का आधार बताया है।
डॉ. सिंह का कहना है कि खरीफ मौसम (जून से सितंबर) ऐसे पौधों के लिए उपयुक्त होता है, जो कम सिंचाई में भी पनप सकें। जलवायु परिवर्तन और जल की घटती उपलब्धता को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि किसान ऐसी फसलों की ओर ध्यान दें, जो कम जल में भी टिकाऊ उपज दे सकें।
खरीफ मौसम की प्रमुख कम पानी वाली फसलें
प्रो. सिंह ने बताया कि खरीफ के मौसम में कुछ प्रमुख खाद्यान्न, दालें, तेलहन और सब्जियाँ ऐसी हैं जिन्हें कम पानी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
▶ मोटे अनाज (श्री अन्न)
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बाजरा, रागी और कांगनी जैसे मोटे अनाज शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं।
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यह फसलें पोषण में समृद्ध होती हैं और जल की बेहद कम मात्रा में अच्छी उपज देती हैं।
▶ ज्वार (सोरगम)
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यह बहुउपयोगी फसल है जो मानव आहार और पशु चारे दोनों के लिए उपयुक्त है।
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इसकी सूखा सहन करने की क्षमता इसे खरीफ की प्रमुख फसल बनाती है।
▶ मक्का
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मक्के की कई किस्में हैं जो कम पानी में भी पनपती हैं।
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यह भोजन, चारा, औद्योगिक उपयोग, तेल और स्टार्च उत्पादन में प्रयुक्त होती है।
▶ दालें
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मूंग और उड़द जैसी दालें कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं।
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साथ ही, ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं और टिकाऊ कृषि में सहायक हैं।
▶ तेलहन फसलें
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मूंगफली और तिल की गहरी जड़ें मिट्टी से नमी को खींचने में सक्षम होती हैं, जिससे सिंचाई की आवश्यकता घटती है।
सब्जियां जो कम पानी में भी भरपूर पैदावार दें
डॉ. सिंह के अनुसार कई ऐसी सब्जियाँ हैं जो गर्मियों में और कम सिंचाई में भी उगाई जा सकती हैं।
▶ प्रमुख सब्जियां
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टमाटर, भिंडी, बैंगन, खीरा, करेला, तुरई, लौकी, तरबूज और खरबूजा – ये सभी सब्जियाँ कम पानी में उपज देती हैं और पोषण से भरपूर होती हैं।
▶ सूखा सहनशील फलियां
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लोबिया और ग्वार – यह न केवल प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं, बल्कि शुष्क वातावरण में भी अच्छी उपज देती हैं।
▶ पत्तेदार एवं सुगंधित सब्जियां
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पालक, ऐमारैंथ, धनिया, पुदीना, मेथी जैसी सब्जियाँ कम पानी में पनपती हैं और स्वास्थ्यवर्धक भी हैं।
औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती भी है लाभकारी
खरीफ में कई औषधीय पौधे भी कम पानी में उगाए जा सकते हैं, जो किसानों को अतिरिक्त आय देने के साथ-साथ औषधीय उद्योग को भी सहयोग प्रदान करते हैं।
▶ प्रमुख औषधीय पौधे:
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अश्वगंधा, एलोवेरा, सफेद मूसली, ब्राह्मी, नीम, गिलोय, हल्दी, सेन्ना, कोलियस फोरस्कोहली।
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इन फसलों की मांग घरेलू व वैश्विक बाजार में तेजी से बढ़ रही है।
कम पानी वाली खेती के लिए जरूरी तकनीकें
प्रोफेसर एस. के. सिंह ने बताया कि जल संरक्षण की दिशा में किसानों को कुछ व्यावहारिक तकनीकों को अपनाना चाहिए:
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वर्षा जल संचयन: बारिश के पानी को संग्रहित कर सूखे समय में सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है।
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ड्रिप सिंचाई प्रणाली: यह प्रणाली फसलों की जड़ों तक सटीक मात्रा में जल पहुंचाकर जल की बर्बादी को रोकती है।
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मल्चिंग तकनीक: मिट्टी की सतह पर आवरण बिछाकर वाष्पीकरण को रोका जा सकता है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है।
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फसल चक्रण: कम पानी वाली फसलों को फसल चक्रण में शामिल करने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और जल की मांग कम होती है।
सरकारी योजनाएं भी दे रही हैं सहयोग
सरकार द्वारा किसानों को कम पानी वाली फसलों की ओर प्रेरित करने हेतु कई योजनाएं चलाई जा रही हैं:
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बीज, सिंचाई उपकरण और मल्चिंग हेतु सब्सिडी।
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कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम।
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जलवायु अनुकूल खेती के लिए जागरूकता अभियान।
इन पहलों का उद्देश्य किसानों को जल संकट से निपटने के लिए तैयार करना और सतत खेती को बढ़ावा देना है।
सारांश
कम पानी में उगाई जाने वाली फसलें – चाहे खाद्यान्न हों, सब्जियाँ हों या औषधीय पौधे – भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के दौर में एक नया रास्ता दिखा रही हैं। यह फसलें न केवल जल की बचत करती हैं, बल्कि पोषण सुरक्षा, आयवृद्धि और पर्यावरण संरक्षण का भी माध्यम बन रही हैं।
प्रोफेसर एस. के. सिंह का मानना है कि यदि किसान सही फसल चयन, तकनीकी उपायों और सरकारी सहयोग को अपनाएं तो खरीफ मौसम में खेती न केवल संभव, बल्कि लाभकारी भी हो सकती है।
प्रो. (डॉ.) एस. के. सिंह
विभागाध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान एवं सूत्रकृमि विज्ञान विभाग
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-848125, समस्तीपुर, बिहार
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