बायोटेक खेती: भारत के किसानों के लिए सुनहरा अवसर!

“आधुनिक खेती का नया युग: जैव प्रौद्योगिकी के कमाल से!”

जैव प्रौद्योगिकी का क्रांतिकारी प्रभाव: जैव प्रौद्योगिकी ने कृषि, जलीय कृषि और पशु विज्ञान में बड़ा बदलाव लाया है। यह फसल सुधार, रोग प्रबंधन और टिकाऊ कृषि के नए तरीके ला रही है। हाल ही में जीनोम एडिटिंग, आणविक प्रजनन और जैव नियंत्रण समाधानों में हुई प्रगति ने खेती की उत्पादकता बढ़ाई है और भारत को इस क्षेत्र में आगे बढ़ाया है।

(Cultivating the Future)

कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका

कृषि जैव प्रौद्योगिकी जीनोमिक्स, प्रोटिओमिक्स, ट्रांसजेनिक और जीन एडिटिंग में उन्नत अनुसंधान के साथ नए मुकाम हासिल कर रही है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग का कृषि जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम नवीन अनुसंधान को प्रोत्साहित कर सतत् कृषि को बढ़ावा दे रहा है।

प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं:

  • क्लाइमेट-स्मार्ट फसलें: “सात्विक (एनसी 9)” नामक सूखा-सहिष्णु चने की एक उन्नत किस्म विकसित की गई है, जिसे केंद्रीय उप-समिति ने स्वीकृति दी है।
  • जीनोम-एडिटेड फसलें: चावल की विभिन्न प्रजातियों में जीनोम एडिटिंग की शुरुआत उन जीनों में उत्परिवर्तन से होने वाले कार्यात्मक नुकसान को ध्यान में रखते हुए की गई थी, जो फसल उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इन प्रजातियों को भारत की लोकप्रिय चावल किस्म एमटीयू-1010 की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में विकसित किया गया है और वे मूल प्रजाति की तुलना में ग्रीनहाउस स्थितियों में अधिक उपज प्रदान करती हैं। विशेष रूप से, डेप1 (डेंस एरेक्ट पेनिकल; एक जी प्रोटीन सबयूनिट) जीनोम-एडिटेड चावल प्रजाति ने अनाज की संख्या और उपज में वृद्धि के साथ बड़े स्पाइक्स का उत्पादन किया है।
  • जीनोटाइपिंग ऐरे: चावल और चने के लिए 90के पैन-जीनोम एसएनपी जीनोटाइपिंग ऐरे विकसित किए गए हैं, जो डीएनए फ़िंगरप्रिंटिंग और आनुवंशिक शुद्धता परीक्षण में मदद करेंगे।
  • ऐमारैंथ जेनेटिक संसाधन: जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने ऐमारैंथ अनाज के पोषण गुणों की जांच के लिए एक विशेष डेटाबेस, नियर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (NIRS) तकनीक और एक 64K SNP चिप विकसित की है। इन संसाधनों की मदद से जांचे गए ऐमारैंथ को उच्च वसा वाले आहार से होने वाले मोटापे की रोकथाम में प्रभावी पाया गया है। यह न केवल खेती के लिए बल्कि ऐमारैंथ के विकास और उपयोग की व्यापक जांच के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल है।
  • फंगल बायोकंट्रोल: टमाटर और अंगूर की फसलों में पाउडर रूपी फफूंदी नियंत्रण के लिए पर्यावरण-अनुकूल नैनो-फॉर्मूलेशन विकसित किया गया है।
  • किसान-कवच: कीटनाशकों से प्रेरित विषाक्तता से बचाव के लिए यह एक उन्नत सुरक्षा उपाय के रूप में विकसित किया गया है।
पशु जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार

भारत दुनिया का सबसे बड़ा पशुपालन क्षेत्र है, जहां दो-तिहाई से अधिक ग्रामीण आबादी की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। पशु जैव प्रौद्योगिकी में हालिया नवाचारों ने पशु चिकित्सा और पशुधन प्रबंधन में सुधार किया है। यह क्षेत्र पशु कल्याण और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

जलीय कृषि और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी

जलीय कृषि और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रम को मछली पालन और समुद्री संसाधनों के उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए लागू किया गया है। इसमें समुद्री संसाधनों का उपयोग करके मूल्यवान उत्पाद और प्रक्रियाएँ विकसित करना भी शामिल है। यह कार्यक्रम खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करके पोषण सुरक्षा को मजबूत करता है और कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विभाग ने जलीय और समुद्री क्षेत्रों के विकास के लिए कई पहलें शुरू की हैं।

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    झींगा आहार: झींगा के आहार में मछली भोजन एक महत्वपूर्ण घटक होता है। हालांकि, इसकी अधिक कीमत और सीमित उपलब्धता के कारण, इसके बेहतर विकल्पों पर शोध किया जा रहा है। आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिश वॉटर एक्वाकल्चर, चेन्नई के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि सोयाबीन को खमीर किण्वन की प्रक्रिया से गुजारने पर उसके पोषक तत्वों की पाचन क्षमता बढ़ती है, जिससे झींगा आहार में इसका उपयोग अधिक प्रभावी हो जाता है। शोध के नतीजों से पता चला कि पी. वन्नामेई झींगा के आहार में सोयाबीन भोजन को 35% तक शामिल किया जा सकता है, जिससे इसकी वृद्धि दर में लगभग 8.5% तक सुधार हुआ है।

  • CIFA-ब्रूड-वैक: मछली के अंडों की मृत्यु दर रोकने के लिए एक नया टीका बनाया गया है, जो जलीय जीवों के स्वास्थ्य की रक्षा करता है। इसके अलावा, कम लागत में पौष्टिक मछली आहार तैयार करने के लिए एक आसान सॉफ्टवेयर, इंटरएक्टिव फिश फीड डिज़ाइनर (IFFD) संस्करण 2, विकसित किया गया है, जो गैर-पारंपरिक सामग्रियों का उपयोग करके बेहतर मछली आहार बनाने में मदद करता है।
निष्कर्ष

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कृषि, जलीय कृषि और पशु विज्ञान में जैव प्रौद्योगिकी का एकीकरण टिकाऊ खाद्य उत्पादन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और उत्पादकता को बढ़ावा दे रहा है। अनुसंधान और व्यावसायीकरण प्रयासों के साथ ये नवाचार भारत के कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बना रहे हैं। भविष्य में, जैव प्रौद्योगिकी खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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