भारत सरकार प्राकृतिक मोती की खेती को बढ़ावा देने के लिए कोशिश
नई दिल्ली, भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने प्राकृतिक मोती की खेती (नैचुरल पर्ल फारमिंग) को बढ़ावा देने के लिए कई अहम पहल की हैं। राज्य सरकारों, अनुसंधान संस्थानों और अन्य संबंधित एजेंसियों के सहयोग से यह प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रमुख पहल:
(i) प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 2307 बाइवाल्व कल्टिवेशन इकाइयों (मसल्स, क्लैम्स, मोती आदि) को 461.00 लाख रुपये की कुल लागत से मंजूरी दी गई।
(ii) राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्राकृतिक मोती की खेती और इसके आर्थिक महत्व को उजागर करने के लिए मोती किसानों को सहायता प्रदान की गई।
(iii) मत्स्यपालन एवं जलीय कृषि क्षेत्र में उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों के विकास के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी की गई।
(iv) झारखंड सरकार के सहयोग से हजारीबाग में प्रथम पर्ल क्लस्टर उत्पादन विकास और प्रसंस्करण केंद्र अधिसूचित किया गया।
(v) समुद्री मोती सीप की प्राकृतिक आबादी को बढ़ाने के लिए, आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन क्षेत्र में 1.65 करोड़ हैचरी उत्पादित सीड रैंच किए।

देशभर में बढ़ रही मोती खेती
गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, केरल, राजस्थान, झारखंड, गोवा और त्रिपुरा में प्राकृतिक मोती की खेती की जा रही है। हालांकि, राज्य सरकारों द्वारा राज्यवार उत्पादन के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के अनुसार, झारखंड के हजारीबाग जिले में 1.02 लाख मोती उत्पादित हुए हैं।
मार्केट लिंकेज को मजबूत करने की पहल
मत्स्यपालन विभाग ने प्राकृतिक मोतियों की विपणन व्यवस्था (मार्केट लिंकेज) को सुदृढ़ करने के लिए राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ कई बैठकें आयोजित की हैं।
यह जानकारी आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर के दौरान मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने दी।