झांसी में दलहन शोध पर विशेषज्ञों की बड़ी बैठक शुरू
झांसी में रबी दलहनों पर 30वां वार्षिक समूह सम्मेलन शुरू, डॉ. एम.एल. जाट ने दिया धान-आधारित प्रणालियों में इंटरक्रॉपिंग पर जोर
झांसी। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RLBCAU), झांसी में आज से अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना (AICRP) के तहत रबी दलहनों पर 30वां वार्षिक समूह सम्मेलन शुरू हुआ। देशभर से आए कृषि वैज्ञानिक, नीति-निर्माता और विशेषज्ञ इस तीन दिवसीय सम्मेलन में दलहन अनुसंधान, उत्पादन और किसानों तक तकनीक पहुंचाने की रणनीतियों पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।
डॉ. एम.एल. जाट का संबोधन
सम्मेलन के मुख्य अतिथि डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (DARE) एवं महानिदेशक (ICAR) ने अपने संबोधन में दलहन की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “दलहन न केवल मिट्टी की उर्वरता और स्वास्थ्य को सुधारते हैं बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत भी हैं। ये फसलें पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभाती हैं।”
डॉ. जाट ने यह भी कहा कि आने वाले समय में दलहन अनुसंधान और विकास को नई गति देने के लिए प्रमुख किस्मों का विकास, नई तकनीकों को अपनाना, फॉस्फोरस उपयोग दक्षता बढ़ाना, प्रभावी खरपतवार प्रबंधन और मशीनीकरण को बढ़ावा देना आवश्यक है। उन्होंने खासतौर पर धान-आधारित खेती प्रणालियों में इंटरक्रॉपिंग और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
उनका कहना था कि यदि धान की खेती में दलहन को सहफसली (Intercropping) पद्धति से जोड़ा जाए तो इससे किसानों को आर्थिक लाभ के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार होगा। साथ ही, उन्होंने कहा कि “भविष्य की योजनाओं और निगरानी में प्रभावी डेटा प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”
सम्मेलन की अध्यक्षता और अन्य वक्ता
इस सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. ए.के. सिंह, कुलपति RLBCAU, झांसी ने की। सह-अध्यक्ष के रूप में डॉ. डी.के. यादव, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), ICAR मौजूद रहे।
विशेष अतिथि के रूप में संजय कुमार अग्रवाल, संयुक्त सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगातार नई योजनाओं और शोध को बढ़ावा दे रही है, जिसमें दलहन की बड़ी भूमिका है।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. संजीव गुप्ता, एडीजी (तिलहन एवं दलहन), ICAR, नई दिल्ली के स्वागत भाषण से हुई। इसके बाद डॉ. जी.पी. दीक्षित, निदेशक, ICAR-IIPR, कानपुर ने “भारत में रबी दलहनों पर अनुसंधान एवं विकास गतिविधियां” विषय पर विस्तृत प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया।
शोध उपलब्धियां और प्रकाशन
डॉ. शैलेश त्रिपाठी, परियोजना समन्वयक (AICRP on Rabi Pulses, ICAR-IIPR, कानपुर) ने रबी दलहन अनुसंधान की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बीते वर्षों में उच्च उत्पादक और रोग प्रतिरोधी किस्मों के विकास से किसानों की आय और दलहन उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई है।
इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों द्वारा कई महत्वपूर्ण शोध प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया।
सम्मेलन का महत्व
यह वार्षिक सम्मेलन न केवल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को एक साझा मंच प्रदान करता है, बल्कि यह नीति-निर्माताओं और किसानों के बीच समन्वय स्थापित करने का भी अवसर है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रस्तुत रणनीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया गया तो आने वाले वर्षों में भारत में दलहन उत्पादन और आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ी प्रगति होगी।
चित्र सौजन्य: सोशल मीडिया ICAR