मौसम की मार से 30% तक घटा बागवानी उत्पादन

समस्तीपुर/गोरौल- वर्ष 2020 से 2025 के बीच मौसम में आए उतार-चढ़ाव ने बिहार सहित पूरे देश की बागवानी फसलों पर गहरा असर डाला है। केला अनुसंधान केंद्र गोरौल के प्रमुख प्रो. (डॉ.) एस.के. सिंह, जो कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पूर्व सह निदेशक अनुसंधान एवं पोस्ट ग्रेजुएट विभागाध्यक्ष (प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमटोलॉजी) भी रहे हैं, ने अपने विस्तृत अध्ययन “मौसम की बदलती चाल और बागवानी फसलों पर उसका गहरा असर” में इन बदलावों को रेखांकित किया है।
मौसमीय प्रवृत्तियां : 2020–2025
डॉ. सिंह के अनुसार पिछले पाँच वर्षों में मौसम की चाल असंतुलित रही।
-
ग्रीष्म ऋतु में तापमान में 1.5 से 2°C तक की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि शीत ऋतु में पाला पड़ने की घटनाएँ बढ़ीं।
-
वर्षा की अनियमितता के कारण कहीं जलजमाव तो कहीं अल्पवर्षा की स्थिति बनी।
-
मानसून के भीतर ही कई बार 15–20 दिनों तक शुष्क कालखंड रहा।
-
आर्द्रता में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखा गया—मानसून में अधिक और गर्मियों में अचानक गिरावट।
-
आंधी, तूफान, चक्रवात और ओलावृष्टि जैसी चरम मौसमीय घटनाओं में इजाफा हुआ।
फल फसलों पर असर
- आम : असमय वर्षा और आर्द्रता बढ़ने से बौर (मंजरी) प्रभावित हुई। परागण बाधित होने से फल सेटिंग घटी। कई किस्मों में फलों का आकार 20–60% तक छोटा रह गया। पाउडरी मिल्ड्यू और एन्थ्रेक्नोज जैसे रोगों का प्रकोप भी बढ़ा।
- लीची : शीत ऋतु की अनियमितता से पुष्पन प्रभावित हुआ। अप्रैल-मई की लू और उच्च तापमान ने झुलसा रोग बढ़ाया। तेज हवाओं और वर्षा ने फलों के झड़ने की दर में वृद्धि की।
- केला : जलजमाव से फ्यूजेरियम विल्ट (TR4) की समस्या गंभीर हुई। उच्च तापमान और नमी ने सिगाटोका रोग फैलाया। शुष्क काल में पौधों की वृद्धि धीमी हुई और गुच्छे छोटे रह गए।
- पपीता : अधिक नमी से फाइटोफ्थोरा ब्लाइट व रूट रॉट की समस्या बढ़ी। असमय वर्षा ने फल सेटिंग घटाई, जबकि उच्च तापमान ने स्वाद व रंग पर असर डाला।
- अमरूद व जामुन : अमरूद में फल फटना और सनबर्न की समस्या बढ़ी। बैक्टीरियल ब्लाइट और फल मक्खी का प्रकोप देखा गया। जामुन में वर्षा और तेज हवाओं से फलों की झड़ने की घटनाएँ अधिक रहीं।
सब्जी फसलों पर असर
-
आलू : बढ़ते तापमान से कंद बनने की अवधि कम हुई। देर से बोई गई फसल की उपज 15–20% घटी। आर्द्र मौसम में लेट ब्लाइट ने फसलों को चौपट किया।
-
टमाटर : असमय वर्षा और नमी से अर्ली व लेट ब्लाइट का प्रकोप बढ़ा। उच्च तापमान ने फलों की गुणवत्ता और भंडारण क्षमता घटाई।
-
प्याज : लंबे शुष्क काल से बल्ब वृद्धि प्रभावित हुई। वर्षा ऋतु में फसल खराब हुई और भंडारण हानि भी बढ़ी।
-
मटर व अन्य शीतकालीन सब्जियां : पाला व ठंडी हवाओं से अंकुरण प्रभावित हुआ। आर्द्र वातावरण में डाउनी व पाउडरी मिल्ड्यू बढ़े।
-
गोभी व फूलगोभी : तापमान और आर्द्रता के उतार-चढ़ाव से ब्लैक रॉट व डाउनी मिल्ड्यू का प्रकोप बढ़ा, जिससे गुणवत्ता प्रभावित हुई।
रोग-कीट प्रकोप
-
अधिक आर्द्रता से फफूंदजनित रोग (ब्लाइट, विल्ट, सिगाटोका) तेजी से फैले।
-

यित्र: प्रतीकात्मक गर्म व शुष्क मौसम में रस चूसक कीट (एफिड, थ्रिप्स, सफेद मक्खी) बढ़े।
-
चक्रवाती वर्षा से फलों व सब्जियों को भौतिक क्षति पहुँची।
किसानों पर प्रभाव
-
उत्पादन में कमी : प्रमुख फलों व सब्जियों में 15–30% तक हानि।
-
गुणवत्ता में गिरावट : आकार, रंग, स्वाद और शेल्फ लाइफ प्रभावित।
-
भंडारण हानि : आर्द्रता व रोगों से कटाई के बाद नुकसान।
-
बाजार पर असर : कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव।
-
आय पर दबाव : लागत बढ़ी, लाभ घटा।
सलाह, इन उपायों से ही होगी बचाव!
-
जल प्रबंधन : खेतों में ड्रेनेज व्यवस्था, वर्षा जल संचयन, ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई।
-
फसल प्रबंधन : मौसम अनुकूल किस्मों का चयन, फसल विविधीकरण, पॉलिहाउस व शेडनेट तकनीक।
-
रोग-कीट नियंत्रण : जैविक और रसायनिक उपाय, रोगरोधी किस्में, निगरानी प्रणाली।
-
नीतिगत कदम : फसल बीमा योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन, किसानों को मौसम आधारित सलाह उपलब्ध कराना, अनुसंधान संस्थानों से टिकाऊ तकनीकों का प्रसार।
सारांश
अध्ययन के अनुसार, 2020 से 2025 के बीच मौसम की अनिश्चितताओं ने बागवानी फसलों की पैदावार और गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित किया। किसानों को आय हानि, रोग-कीट समस्याओं और विपणन संकट का सामना करना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए संरक्षित खेती, जल प्रबंधन, मौसम आधारित सलाह और नीति समर्थन ही भविष्य में किसानों की सुरक्षा का आधार बन सकते हैं।
प्रो. (डॉ.) एस. के. सिंह
विभागाध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान एवं सूत्रकृमि विज्ञान विभाग, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-848125, समस्तीपुर, बिहार sksraupusa@gmail.com / sksingh@rpcau.ac.in