इंटरनेशनल यूनियन के तत्वाधान में भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी नई दिल्ली, इटली कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी नई दिल्ली 4 दिवसीय वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 “खाद्य सुरक्षा से परे मिट्टी की देखभाल:जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं” का आयोजन कर रही है। प्रोफेसर रमेश चंद नीति आयोग के सदस्य, अध्यक्ष, पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण और पूर्व सचिव डीएआरई और महानिदेशक आईसीएआर डॉ त्रिलोचन महापात्रा व सचिव डेयर और महानिदेशक, आईसीएआर और अध्यक्ष आईएसएसएस डॉ हिमांशु पाठक समारोह में उपस्थित थे।
केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संबोधन में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और वैश्विक स्थिरता प्राप्त करने में भारत सरकार की विभिन्न पहलों का उल्लेख करते हुए मृदा स्वास्थ्य पर एक महत्वपूर्ण एवं सम्मोहक संबोधन प्रस्तुत किया। श्री चौहान ने मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को व्यापक जलवायु क्रियान्वयन नीतियों में एकीकृत करने के लिए सरकार के सक्रिय प्रयासों पर प्रकाश डाला। साथ ही जलवायु परिवर्तन को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का समर्थन करने में मिट्टी की अहम भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं तथा चिकित्सकों से मिट्टी की उत्पादकता तथा लचीलापन बढ़ाने तथा कार्रवाई हेतु किसान-केन्द्रित समाधान विकसित करने का भी आग्रह किया। उन्होंने मिट्टी के क्षरण एवं पोषक तत्वों की हानि जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए नवीन तकनीकों का लाभ प्राप्त करने का भी आग्रह किया।
नीति आयोग के सदस्य और वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 के मुख्य अतिथि, डॉ. रमेश चंद ने एक व्यावहारिक संबोधन दिया जिसमें मृदा प्रबंधन प्रथाओं के ऐतिहासिक विकास एवं कृषि उत्पादकता तथा स्थिरता पर उनके गहन प्रभाव को रेखांकित किया। पूर्ववर्ती दृष्टिकोण पर विचार करते हुए, उन्होंने पारंपरिक कृषि प्रथाओं से लेकर आधुनिक तथा प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोणों तक मृदा विज्ञान की यात्रा को गहनता से परखा और इस बात पर प्रकाश डाला कि, कैसे, मृदा प्रबंधन में नवाचारों ने खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने तथा पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ. चंद ने मिट्टी के क्षरण के बढ़ते आर्थिक परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित किया और इसे दूरगामी प्रभावों वाला एक मूक संकट बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि, कैसे, मिट्टी की खराब होती सेहत न केवल कृषि उत्पादकता को कम कर रही है, बल्कि किसानों तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय नुकसान भी पैदा कर रही है। विस्तृत अवलोकनों के माध्यम से, उन्होंने आजीविका, खाद्य सुरक्षा एवं पर्यावरणीय लचीलेपन पर मिट्टी के क्षरण के प्रभावों को समझाया।
सम्मेलन की थीम, “खाद्य सुरक्षा से परे मिट्टी की देखभाल: जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं” पर चर्चा करते हुए, डॉ. चंद ने नीतिगत ढाँचों में मिट्टी स्वास्थ्य अर्थशास्त्र को एकीकृत करने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने हितधारकों से मिट्टी संरक्षण और बहाली में निवेश को प्राथमिकता देते हुए एक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। डॉ. चंद ने इस बात पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकाला कि मिट्टी के क्षरण से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है जिसमें भविष्य की पीढ़ियों के लिए उत्पादकता एवं स्थिरता की रक्षा के लिए नवाचार, अनुसंधान और सहयोग नीति निर्माण शामिल हो।
डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने कृषि प्रगति में मृदा अनुसंधान के महत्वपूर्ण योगदान पर विचार किया। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान को अत्याधुनिक तकनीकों के साथ मिश्रित करने का आह्वान किया ताकि लागत प्रभावी, स्केलेबल अभ्यास तैयार की जा सके, जो मृदा क्षरण को संबोधित करें एवं कृषि उत्पादकता में भी सुधार करे। डॉ. महापात्रा ने कृषि परिदृश्य को स्थायी रूप से बदलने के लिए शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (आईयूएसएस) के अध्यक्ष, डॉ. एडोआर्डो कॉस्टेंटिनी ने मृदा संसाधनों के वैश्विक महत्व और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में उनकी भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने मृदा अनुसंधान एवं नीति निर्माण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा इस क्षेत्र में भारत के नेतृत्व की सराहना की। डॉ. कॉस्टेंटिनी ने आशा व्यक्त की कि यह सम्मेलन टिकाऊ मृदा प्रबंधन के लिए प्रभावशाली वैश्विक साझेदारी तथा अभिनव समाधानों का मार्ग प्रशस्त करेगा