ग्रामीण महिलाओं की उद्यम क्रांति: दिल्ली में दिखी नई ताकत!

सरस मेला: स्वाद ही नहीं, स्वतंत्रता का भी उत्सव

दिल्ली की सुंदर नर्सरी में 25 राज्यों से पहुंचीं ‘लखपति दीदियाँ’, 500 से अधिक व्यंजन और दर्जनों हस्तशिल्प उत्पादों का प्रदर्शन

दिल्ली, – दिल्ली की सुंदर नर्सरी में दिसंबर की एक ठंडी सुबह सरस फ़ूड फ़ेस्टिवल 2025 ने ऐसा उत्साह जगाया, जिसने देशभर की ग्रामीण महिलाओं की उपलब्धियों और सामूहिक सशक्तिकरण को एक ही मंच पर जीवंत कर दिया। पारंपरिक स्वादों, क्षेत्रीय व्यंजनों और हस्तनिर्मित उत्पादों से सजी यह प्रदर्शनी न केवल भोजन का उत्सव बनी, बल्कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता की प्रेरक मिसाल भी।

मेले में 25 राज्यों से 300 से अधिक ‘लखपति दीदी’ उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाओं और लगभग 500 से अधिक क्षेत्रीय व्यंजनों के साथ हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी ने दिल्लीवासियों को भारत की विविधता और नवभारत की महिला शक्ति दोनों से रूबरू कराया।

पंजाब की वंदना भारद्वाज: फुलकारी से 500 स्वयं सहायता समूहों का नेतृत्व तक की प्रेरक यात्रा

सुंदर नर्सरी के मुख्य प्रवेश द्वार पर लगे एक स्टॉल ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा—यह स्टॉल था मोहाली, पंजाब की श्रीमती वंदना भारद्वाज का।
फुलकारी की रंगीन कढ़ाई जितनी चमकदार थी, उससे कहीं अधिक उजली वंदना की सफलता की कहानी थी।

2018 में दस महिलाओं के एक छोटे स्वयं सहायता समूह से शुरुआत करने वाली वंदना ने घर पर ही फुलकारी की सिलाई से अपना उद्यम खड़ा किया।
धीरे-धीरे उनकी नेतृत्व क्षमता उभरकर सामने आई और उन्होंने अपने ग्राम संगठन में 19 एसएचजी समूहों का नेतृत्व संभाला। कुछ ही वर्षों में वह 25 गांवों के 500 से अधिक स्वयं सहायता समूहों की मुख्य नेता बन गईं—एक ऐसा नेटवर्क जो कई औपचारिक संस्थानों से भी बड़ा है।

सरकारी सहयोग ने वंदना की पहल को नई दिशा दी। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने उन्हें और उनके समूह को सिलाई मशीनें और 30,000 रुपये की कार्यशील पूंजी प्रदान की, जिससे उनकी फुलकारी सिलाई एक घरेलू काम से विकसित होकर एक मजबूत उद्यम में बदल गई।

सरकारी विभाग अब उनके फुलकारी उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों को भेंट करने के लिए खरीदते हैं। उनके उत्पाद विदेशों तक निर्यात करने के लिए भी चुने जाते हैं।

ओडिशा से गुजरात तक—हर स्टॉल एक सफलता की मिसाल

वंदना के स्टॉल के ठीक सामने ओडिशा की ‘माँ एसएचजी’ की सदस्य अपनी खूबसूरत हथकरघा कृतियों की प्रदर्शनी कर रही थीं।
2019 में एसएचजी से जुड़ने से पहले वे स्थानीय बुनकर थीं। समूह में आने के बाद उन्हें सहयोग, आसानी से ऋण सुविधा और सरकारी अधिकारियों का नियमित मार्गदर्शन मिला, जिसने उनके उद्यम को मजबूत किया।

उनकी उपलब्धियों का सबसे बड़ा प्रमाण तब मिला जब एक सरस मेले में उनके समूह ने 5 लाख रुपये की बिक्री दर्ज की। यह मील का पत्थर आज भी उनके लिए प्रेरणा बना हुआ है।

महिलाओं ने इस बार मेले में

  • डिजिटल भुगतान,

  • क्यूआर कोड आधारित लेनदेन,

  • और भाषिणी मोबाइल ऐप के माध्यम से रीयल-टाइम भाषा अनुवाद
    का प्रभावशाली उपयोग कर ग्राहकों से सहज संवाद स्थापित किया।

आंध्र प्रदेश की श्रीमती प्रीति साहू अपने आंध्र शैली के व्यंजनों से ग्राहकों को आकर्षित कर रही थीं।
2012 में 10–15 महिलाओं के साथ एसएचजी सदस्य बनने के बाद उन्हें

  • बैंक लिंकिंग,

  • आसान ऋण,

  • और ग्राम-स्तरीय संस्थानों का सहयोग
    मिला, जिसके बल पर उन्होंने अपना उद्यम खड़ा किया।

आज वे प्रति माह 50,000 रुपये से अधिक कमाती हैं, और सरस मेलों में उनकी कुल बिक्री 2 से 2.5 लाख रुपये तक पहुंच जाती है। उनका काउंटर UPI क्यूआर कोड से सजा था और डिजिटल भुगतान लगातार उनके फोन पर आ रहे थे।

बिहार के सहरसा जिले की श्रीमती माया देवी भी अपने मखाना उत्पादों के साथ लोगों में खासा लोकप्रिय रहीं।
2014 में जीविका एसएचजी से मात्र 10 रुपये की साप्ताहिक बचत से शुरुआत करने वाली माया देवी ने आसान ऋण, प्रशिक्षण और संस्थागत सहयोग की बदौलत अपना मखाना व्यवसाय विकसित किया।
आज वे दिल्ली जैसे राष्ट्रीय मंच पर आत्मविश्वास के साथ ग्राहकों को

  • मखाने के उपयोग,

  • डिजिटल पेमेंट प्रणाली
    के बारे में समझा रही थीं।

गुजरात के जूनागढ़ की श्रीमती दक्षा मेहता भी अपने पारंपरिक गुजराती परिधानों के साथ मौजूद थीं।
2022 में एसएचजी से जुड़ने के बाद उन्होंने सरस मेलों के माध्यम से 5 लाख रुपये से अधिक की बिक्री की और फिर अपने उत्पादों को अमेज़न पर सूचीबद्ध कर ई-कॉमर्स में कदम रखा, जिससे उनका ग्राहक आधार पूरे देश में फैल गया।

डीएवाई–एनआरएलएम: महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की सबसे बड़ी ग्रामीण पहल

दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई–एनआरएलएम) ग्रामीण विकास मंत्रालय की वह प्रमुख योजना है, जिसने भारत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को नई दिशा दी है।
यह मिशन गरीब परिवारों को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर

  • उद्यम,

  • कौशल आधारित रोज़गार,

  • किफायती ऋण,

  • और बाज़ार तक सीधी पहुँच
    दिलाने पर केंद्रित है।

5 दिसंबर 2025 तक, डीएवाई–एनआरएलएम के तहत

  • 10.20 करोड़ परिवारों को एसएचजी नेटवर्क में जोड़ा जा चुका है।

  • 2 करोड़ से अधिक ‘लखपति दीदियाँ’ तैयार की जा चुकी हैं।

  • वित्त वर्ष 2024–25 में यह संख्या 2.5 करोड़ तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।

डिजिटल साक्षरता इस परिवर्तन का महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरी है।
महिलाओं ने

  • यूपीआई भुगतान,

  • ऑनलाइन ऑर्डर प्रबंधन,

  • और रीयल-टाइम भाषा अनुवाद तकनीक
    का उपयोग करके उद्यम को आधुनिक रूप दिया है।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजी शाम—उत्सव बना आत्मनिर्भरता का प्रतीक

जैसे-जैसे शाम ढली, मेले का वातावरण लोक संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की रोशनी से जगमगाने लगा।
जहाँ दर्शक इसे स्वाद और संस्कृति का उत्सव मान रहे थे, वहीं ग्रामीण महिलाएँ इसे अपनी आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का उत्सव बता रही थीं।

जिन महिलाओं ने कभी भीड़ में बोलने की कल्पना तक नहीं की थी, वे आज दुनिया भर के ग्राहकों से आत्मविश्वास के साथ

  • संवाद कर रही थीं,

  • डिजिटल भुगतान ले रही थीं,

  • ऑर्डर प्रबंधन कर रही थीं,

  • और अपने उत्पादों को ब्रांड के रूप में स्थापित कर रही थीं।

सारांश

सरस फ़ूड फ़ेस्टिवल 2025 सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की महिलाओं के उद्यम, कौशल, साहस और स्वतंत्रता का जीवंत उदाहरण बन गया है।

यह मंच दिखाता है कि यदि अवसर, प्रशिक्षण और बाज़ार तक पहुँच मिले तो ग्रामीण महिला उद्यमी न केवल अपने परिवारों बल्कि पूरे समुदाय की आर्थिक दिशा बदल सकती हैं।

आज सरस फ़ूड फ़ेस्टिवल स्वाद का उत्सव है—लेकिन इन महिलाओं के लिए यह ‘आज़ादी’ और ‘सशक्तिकरण’ का उत्सव है।

Source:PIB

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