पूसा विश्वविद्यालय के पौध रोग विज्ञान एवं निमेटोलॉजी विभाग के शोधार्थियों की बड़ी उपलब्धि
पूसा, समस्तीपुर (बिहार)। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पौध रोग विज्ञान एवं निमेटोलॉजी विभाग ने एक और उल्लेखनीय सफलता दर्ज की है। विभाग के बैच 2023-25 के कुल 11 शोधार्थियों ने वाइवा-वॉइस परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की है। इनमें 8 विद्यार्थी पौध रोग विज्ञान और 3 विद्यार्थी निमेटोलॉजी विषय से जुड़े हैं।
उच्च स्तरीय मूल्यांकन
विभाग द्वारा आयोजित यह परीक्षा 27 अगस्त से 15 सितंबर 2025 तक चली। इस दौरान शोधार्थियों ने अपने-अपने शोध कार्यों का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। प्रस्तुतीकरण में शोध पद्धति, प्रायोगिक निष्कर्ष, नवाचार और व्यावहारिक समाधान पर गहन चर्चा की गई। परीक्षा का संचालन विभागीय मानकों और अंतरराष्ट्रीय शोध परंपराओं के अनुरूप किया गया।
मूल्यांकन के लिए विषय विशेषज्ञों और बाहरी परीक्षकों की उच्च स्तरीय समिति गठित की गई, जिसने शोधार्थियों की सैद्धांतिक समझ, शोध दृष्टि, नवाचार और विश्लेषणात्मक सोच का कठोर परीक्षण किया।
विभागाध्यक्ष का संदेश
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) एस.के. सिंह ने सफल शोधार्थियों को बधाई देते हुए कहा—
“आज के ये युवा वैज्ञानिक न केवल कृषि उत्पादन को और सुदृढ़ बनाएंगे, बल्कि सतत और वैज्ञानिक समाधान भी प्रस्तुत करेंगे। इससे न सिर्फ किसानों की समस्याएँ कम होंगी बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि को भी गति मिलेगी।”
उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपने शोध कार्यों को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित करें और कृषि विज्ञान के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करें।
उल्लेखनीय शोध कार्य
इस वर्ष शोधार्थियों ने कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर शोध किया, जिनका सीधा लाभ किसानों तक पहुँच सकता है।
समीक्षा कुमारी ने पपीता रूट रॉट रोग प्रबंधन के लिए जैविक नियंत्रण एजेंट्स का प्रयोग किया।
अंशुमान राउल ने सरसों तना गलन रोग की महामारी विज्ञान और प्राकृतिक खेती के तहत इसके प्रबंधन पर काम किया।
क्रिस्टिना डुपक ने केला-हल्दी मिश्रित खेती में स्थानीय सूक्ष्मजीवों की जैव-नियंत्रण क्षमता पर शोध किया।
हर्षिता ने गन्ने के विल्ट रोग के सतत प्रबंधन की नवीन रणनीतियाँ प्रस्तुत कीं।
स्मृति मन्ना ने गन्ने की रेड रॉट बीमारी में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय खोजे।
ख्याति अग्रवाल ने पपीता रूट रॉट के नियंत्रण में होलोबायोंट की भूमिका पर शोध किया।
आकाश कुमार मिश्रा ने गेहूं में स्पॉट ब्लॉच रोग के लिए ग्रीन नैनोपार्टिकल्स और रोगजनक विविधता का अध्ययन किया।
मनीष दास ने चना में फ्यूजेरियम विल्ट प्रबंधन हेतु चाइटोसान और पीजीपीआर का समन्वित उपयोग किया।
जर्बिन जी. ने फूलगोभी में डायमंडबैक मॉथ नियंत्रण हेतु एंटोमो-पैथोजेनिक निमेटोड्स का मूल्यांकन किया।
शीटल ने वैशाली जिले में केले के पौध परजीवी निमेटोड्स की स्थिति और उनके बायो-रेशनल प्रबंधन की रणनीति पर कार्य किया।
केना तायेंग ने नींबू वर्गीय पौधों पर सिट्रस निमेटोड का प्रभाव और उसके प्रबंधन की तकनीक विकसित की।
विभाग की गौरवपूर्ण परंपरा
इन सभी शोध कार्यों ने न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है बल्कि किसानों की व्यावहारिक समस्याओं का भी समाधान प्रस्तुत किया है। विभागाध्यक्ष ने कहा कि यह उपलब्धि विभाग की उस परंपरा को आगे बढ़ाती है, जिसमें हर वर्ष शोधार्थियों को कृषि विज्ञान में नवाचार और उत्कृष्टता के नए अवसर दिए जाते हैं।
सारांश
पौध रोग विज्ञान एवं निमेटोलॉजी विभाग का यह सफल अध्याय इस बात का प्रमाण है कि पूसा विश्वविद्यालय कृषि अनुसंधान में राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। सफल शोधार्थियों की यह उपलब्धि आने वाले समय में किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए नई उम्मीद और वैज्ञानिक समाधान लेकर आएगी।