🌱जानें कैसे जैविक खेती बदल रही है किसानों और उपभोक्ताओं की जिंदगी!

स्वास्थ्य व सतत विकास के लिए ऑर्गेनिक फूड

लेखक: श्रद्धा जे. यमकर (संस्थापक -Farmers Pride)

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्वास्थ्यप्रद भोजन का महत्व और भी बढ़ गया है। भोजन केवल पेट भरने का जरिया नहीं, बल्कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की बुनियाद है। यही कारण है कि आजकल लोग अपने खानपान में बदलाव कर प्राकृतिक और रसायनमुक्त भोजन यानी ऑर्गेनिक फूड की ओर रुख कर रहे हैं।

ऑर्गेनिक खेती में न तो रासायनिक खाद, कीटनाशक, खरपतवारनाशी और न ही जीएम (GMO) बीजों का इस्तेमाल होता है। इसके बजाय किसान खेत में उपलब्ध जैविक अवशेष, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, गोबर की खाद, गोमूत्र, स्लरी आदि का उपयोग करते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता, जल की गुणवत्ता, सूक्ष्मजीव व जैव विविधता का संरक्षण होता है और उत्पाद पोषक, स्वादिष्ट व सुरक्षित बनते हैं।

रासायनिक खेती के दुष्परिणाम

रासायनिक कृषि के कारण आज न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण भी संकट में है। भूजल स्तर में गिरावट, मिट्टी व जल प्रदूषण, जैव विविधता का नाश, जलवायु असंतुलन, किसानों पर कर्ज का बोझ, उत्पादन लागत में वृद्धि और उपभोक्ताओं को मिलने वाला कम पोषक व हानिकारक भोजन — ये सब इसके परिणाम हैं।

कई अध्ययनों में पाया गया है कि जीएम फसलों से बने खाद्य पदार्थ पाचन व श्वसन समस्याएं, बांझपन और अन्य बीमारियों का कारण बन रहे हैं। रासायनिक अवशेषों से युक्त भोजन लंबे समय में कैंसर, हार्मोन असंतुलन और प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।

ऑर्गेनिक खेती में परिवर्तन व प्रमाणन प्रक्रिया

भारत में कई किसान रासायनिक खेती छोड़कर ऑर्गेनिक खेती अपना रहे हैं। हालांकि, यह बदलाव आसान नहीं है। पारंपरिक खेती से ऑर्गेनिक खेती में परिवर्तन करने के लिए तीन वर्ष का समय लगता है। इस दौरान फसल को ऑर्गेनिक के रूप में बेचा नहीं जा सकता और किसानों को इसका मूल्य लाभ भी नहीं मिलता।

प्रमाणन की तीन अवस्थाएँ होती हैं —

  • IC1 (पहला वर्ष)

  • IC2 (दूसरा वर्ष)

  • ऑर्गेनिक (तीसरा वर्ष पूर्ण होने पर)

प्रमाणन से यह सुनिश्चित होता है कि उत्पादन में कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक नहीं प्रयोग हुए हैं। प्रमाणन उपभोक्ता तक उत्पाद की विश्वसनीयता और स्रोत की जानकारी पहुंचाने का माध्यम भी है।

वर्तमान में भारत में तीन प्रकार की प्रमाणन प्रणालियाँ प्रचलित हैं —

  • PGS India (Participatory Guarantee System): भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित, घरेलू बाजार हेतु।

  • NPOP (National Programme for Organic Production): वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन, निर्यात हेतु, महंगी लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य।

  • PGSOC (Participatory Guarantee System Organic Council): 18 संगठनों का समूह, जो सामुदायिक स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा देता है।

इन संस्थाओं द्वारा प्रमाणित उत्पादों पर ‘India Organic’ लोगो लगाया जाता है। इसके अलावा FSSAI ने भी ‘Food Safety and Standards (Organic Foods) Regulations’ लागू किए हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिल सके।

ऑर्गेनिक बनाम रासायनिक उत्पाद

ऑर्गेनिक उत्पादों का सेवन करने वाले उपभोक्ताओं ने बेहतर पाचन, भूख नियंत्रित रहने, अम्लता कम होने, त्वचा में निखार आने जैसे सकारात्मक परिणाम साझा किए हैं। अनुसंधानों में पाया गया है कि ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों में एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, विटामिन-C, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि नाइट्रेट, कैडमियम व कीटनाशक अवशेष बहुत कम पाए जाते हैं।

इनमें कैंसररोधी, जीवाणुरोधी व सूजनरोधी गुण भी अधिक होते हैं। स्वाद और सुगंध की दृष्टि से भी ऑर्गेनिक उत्पाद रासायनिक उत्पादों से कहीं बेहतर पाए गए हैं। इस प्रकार यह औद्योगिक खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट विकल्प हैं।

आगे की राह — किसानों के लिए अवसर

भारत में आज दुनिया की सबसे बड़ी ऑर्गेनिक किसानों की आबादी है। कई आदिवासी बहुल गांव आज भी रसायनमुक्त खेती करते हैं। सरकार जैविक इनपुट उत्पादन को प्रोत्साहन दे रही है और किसानों को ऑर्गेनिक खेती अपनाने हेतु प्रोत्साहन राशि भी दे रही है। उत्तराखंड और सिक्किम को पहले ही ऑर्गेनिक राज्य घोषित किया जा चुका है।

हालांकि, जमीन पर स्थितियां अब भी चुनौतीपूर्ण हैं। ऑर्गेनिक में परिवर्तित होने पर शुरुआती वर्षों में उत्पादन घटता है और लागत बढ़ जाती है। किसानों को लागत कम करने, उत्पादन बढ़ाने और उचित मूल्य पाने के लिए मार्गदर्शन की जरूरत है।

Farmers Pride जैसी संस्थाएं किसानों के उत्पाद को उचित मूल्य पर, किसान के नाम और तस्वीर सहित उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। इस तरह के प्रयास विश्वास, पारदर्शिता और संबंध आधारित व्यवसाय मॉडल को बढ़ावा देंगे।

सारांश

ऑर्गेनिक खेती केवल खेती का तरीका नहीं, बल्कि सतत विकास और स्वास्थ्य की कुंजी है। यदि समाज, उपभोक्ता और सरकार मिलकर किसानों का समर्थन करें, तो यह आंदोलन न केवल किसानों की आय बढ़ा सकता है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा भी कर सकता है।

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