ग्रामीण भारत में महिला स्टार्टअप की लहर
नई दिल्ली: भारत की बढ़ती जनसंख्या और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा रही है। विशेषकर कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में महिला उद्यमियों की भूमिका अब केवल सीमित योगदान तक नहीं रह गई है, बल्कि वे ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और मूल्य संवर्धन में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।
2023 में विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने के बाद भारत की जनसांख्यिकीय संरचना आर्थिक विकास की अपार संभावनाएं प्रस्तुत करती है। इस विकास यात्रा में महिला उद्यमियों की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर कृषि-व्यवसाय (एग्रीबिजनेस) में नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।
महिला उद्यमी खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने, ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और कृषि उत्पादों में मूल्यवर्धन के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का आधार बन रही हैं। कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और विपणन के माध्यम से वे उत्पादों की बाज़ार कीमत और लाभप्रदता को बढ़ा रही हैं। इनकी निरंतर वृद्धि भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
भारत में महिला उद्यमिता: स्थिति और चुनौतियां
भारत में महिला उद्यमी कुल उद्यमियों का लगभग 20% हैं, लेकिन अधिकांश असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं — जैसे कृषि, हस्तशिल्प और सूक्ष्म-उद्यम। 2011 की जनगणना के अनुसार, केवल 13.88% भूमि धारक महिलाएं हैं और NFHS-5 के अनुसार, केवल 23% महिलाओं के पास आवासीय संपत्ति है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भूमि और संपत्ति की सीमित पहुंच महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना और उद्यमिता प्रारंभ करना कठिन बना देती है।
ऐतिहासिक रूप से महिलाओं ने आर्थिक गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई है, परंतु सामाजिक मान्यताओं, संसाधनों की कमी, निर्णय-निर्माण में भागीदारी की कमी, और नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण उनकी क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाया है।
कृषि-व्यवसाय में संभावनाएं
कृषि-व्यवसाय महिलाओं के लिए अनेक अवसर प्रदान करता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इनमें कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं:
-
खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन – अचार, जैम, चटनी, स्वास्थ्यवर्धक बिस्किट आदि का निर्माण।
-
डेयरी और पोल्ट्री पालन – दुग्ध उत्पाद जैसे घी, पनीर और अंडे, चिकन का उत्पादन।
-
मशरूम की खेती – कम पूंजी, कम स्थान और अधिक लाभ वाला व्यवसाय।
-
एग्रीटूरिज्म – फार्म स्टे, पारंपरिक खाना, कृषि शिक्षण कार्यक्रम।
-
उद्यानिकी और पुष्पकृषि – फूल, सजावटी पौधे, सब्जियाँ और फल।
-
मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन – घरेलू और वैश्विक बाजार में मांग वाली गतिविधि।
-
हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग – पारंपरिक कारीगरी को बाज़ार से जोड़ना।
-
एग्रोफॉरेस्ट्री और हर्बल खेती – बांस, औषधीय पौधों की खेती।
-
एग्री-वेस्ट से संपत्ति निर्माण – जैव-उर्वरक, बायोगैस, खाद आदि का निर्माण।
प्रेरणादायक उदाहरण
-
कल्पना सरोज – कमानी ट्यूब्स की चेयरपर्सन, जिन्होंने एक डूबती कंपनी को मुनाफे में बदला।
-
रुमा देवी – राजस्थान की पारंपरिक कढ़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने वाली।
-
चेतना सिन्हा – ‘मन्न देशी महिला सहकारी बैंक’ की संस्थापक।
-
बीना देवी – ‘मशरूम लेडी’ जिनकी पहल से 1500 महिलाओं को आत्मनिर्भरता मिली।
-
कृष्णा यादव – अचार और खाद्य प्रसंस्करण से करोड़ों का व्यवसाय खड़ा करने वाली।
-
पूजा शर्मा – हरियाणा की महिला, जिन्होंने बेकरी व डेयरी से 1000+ महिलाओं को प्रशिक्षित किया।
इन उदाहरणों में सामान्य बातें उभर कर आती हैं — आत्मनिर्भरता, नवाचार, सामूहिक प्रयास, पारंपरिक ज्ञान का उपयोग, वित्तीय समावेशन और सतत विकास की ओर अग्रसरता।
महिलाओं को समर्थन देने वाली योजनाएं
-
स्टैंड-अप इंडिया योजना – ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक बिना गारंटी के ऋण।
-
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP) – महिला किसानों को प्रशिक्षण और बाज़ार तक पहुंच।
-
राष्ट्रीय महिला कोष (RMK) – सूक्ष्म वित्तीय सहायता।
-
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना – ₹10 लाख तक का ऋण महिला उद्यमियों के लिए।
प्रमुख चुनौतियां
-
वित्तीय संसाधनों की कमी
-
सामाजिक-सांस्कृतिक बंधन
-
नेटवर्क और मेंटरशिप की कमी
-
व्यवसाय प्रबंधन प्रशिक्षण की सीमित पहुंच
-
संपत्ति अधिकार और कानूनी बाधाएँ
नीति और व्यवहार के लिए सुझाव
-
वित्तीय समावेशन: मोबाइल बैंकिंग, डिजिटल ऋण जैसे समाधान।
-
क्षमता निर्माण: आधुनिक कृषि तकनीक, विपणन, प्रबंधन में प्रशिक्षण।
-
बाज़ार तक पहुँच: महिला-उन्मुख प्लेटफॉर्म्स की स्थापना।
-
मेंटॉरशिप कार्यक्रम: अनुभव साझा करने के लिए सफल उद्यमियों से जुड़ाव।
निष्कर्ष
भारत में महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में प्रगति हो रही है, परंतु अभी भी जमीनी स्तर पर अनेक चुनौतियाँ मौजूद हैं। संपत्ति, ऋण और बाज़ार तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में सुधार आवश्यक है। सही नीति, सांस्कृतिक बदलाव और संस्थागत समर्थन के साथ, महिलाएं भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विशेष रिपोर्ट
सौजन्य: सुभाश्री साहू, सत्यप्रिया, राम स्वरूप बाना, सुजीत सरकार, गिरिजेश सिंह माहरा, सुकन्या बरुआ, मीशा माधवन एम, सीताराम बिश्नोई, प्रतिभा जोशी