उत्तर प्रदेश में बैंगन किसानों के लिए नई उम्मीद बनी IPDM तकनीक, वाराणसी-मिर्जापुर-भदोही में सफल फील्ड परीक्षण
वाराणसी/मिर्जापुर/भदोही। पूर्वांचल के तीन प्रमुख जिलों में किसानों के खेतों पर एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन (IPDM) तकनीक के सफल परीक्षण के बाद यह पद्धति अब बैंगन उत्पादक किसानों के लिए बड़ी राहत बनकर उभर रही है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, IPDM अपनाने से बैंगन की फसल में कीट संक्रमण न केवल नियंत्रित हुआ है, बल्कि उत्पादन एवं गुणवत्ता दोनों में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया गया है।
क्या है IPDM तकनीक की मुख्य विशेषताएँ?
🔸 बीज उपचार व रोपाई पूर्व सुरक्षा
उच्च गुणवत्ता वाले पौधे तैयार करने के लिए ट्राइकोडर्मा से बीज उपचार और कार्बेन्डाजिम + क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल से रूट डिप की प्रक्रिया अपनाई गई, जिससे प्रारंभिक अवस्था में ही रोगों का खतरा कम हुआ।
🔸 नियमित छंटाई से संक्रमण पर नियंत्रण
किसानों को सलाह दी गई कि टहनी नष्ट करने वाले कीटों और प्रारंभिक रूप से संक्रमित फलों की साप्ताहिक छंटाई करें, जिससे रोग का फैलाव रुक सके।
🔸 शूट एंड फ्रूट बोरर के लिए फेरोमोन ट्रैप
ब्रिनजल शूट एंड फ्रूट बोरर नियंत्रण हेतु प्रति हेक्टेयर 25–30 फेरोमोन ट्रैप लगाए गए, जिनसे कीटों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई।
🔸 कीट की सीमा पार होने पर छिड़काव
यदि संक्रमण आर्थिक क्षति स्तर (ETL) 5% से अधिक पाया गया, तो क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल, इमामेक्टिन या फेनप्रोपाथ्रिन का लक्षित छिड़काव किया गया।
🔸 रस चूसक कीटों पर प्रभावी नियंत्रण
व्हाइटफ्लाई और अन्य रस चूसक कीटों से बचाव के लिए थायमेथॉक्साम, फेनप्रोपाथ्रिन या का उपयोग किया गया।
🔸 रोगग्रस्त फलों का नाश
𝗣𝗵𝗼𝗺𝗼𝗽𝘀𝗶𝘀, 𝗦𝗰𝗹𝗲𝗿𝗼𝘁𝗶𝗻𝗶𝗮 से संक्रमित पौधों व फलों को खेत से इकट्ठा कर नष्ट किया गया, ताकि रोग आगे न फैले।
🔸 सर्दियों में फफूंदी नियंत्रण
कोहरे और ठंड के मौसम में आवश्यकता अनुसार कार्बेन्डाजिम का उपयोग कर फफूंदजनित रोगों की रोकथाम की गई।
किसानों को मिलेगा सीधा लाभ
कृषि विभाग का कहना है कि IPDM तकनीक लागत में कमी, रासायनिक दवाओं पर निर्भरता घटाने और पैदावार बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हो रही है। जल्द ही इसे जिले-जिले में प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से व्यापक स्तर पर लागू किया जाएगा।
Source: ICAR, चित्र: प्रतीकात्मक