जब किसान स्वयं बनेंगे नवाचार की आवाज़

,Farmers’ Day

किसान दिवस 2025: नवाचार की कमान अब किसानों के हाथ

नई दिल्ली। भारत की कृषि केवल अन्न उत्पादन की व्यवस्था नहीं, बल्कि करोड़ों किसान परिवारों की आजीविका, संस्कृति और आत्मसम्मान की सशक्त आधारशिला है। बदलते समय के साथ भारतीय किसान ने सीमित संसाधनों, जलवायु परिवर्तन और बाजार की जटिलताओं जैसी चुनौतियों को अवसरों में बदला है। आज यह स्पष्ट होता जा रहा है कि खेती के टिकाऊ और लाभकारी भविष्य की कुंजी स्वयं किसान के ज्ञान और नवाचार में निहित है।

डॉ. सी. एच. श्रीनिवास राव, निदेशक, भा.कृ.अनु.प.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली
डॉ राम स्वरूप बाना वरिष्ठ वैज्ञानिक (शस्य विज्ञान), भा.कृ.अनु.प. – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

इसी सोच को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से किसान दिवस–2025 के अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR–IARI), पूसा द्वारा ‘IARI नवोन्मेषी किसान कॉन्क्लेव–2025’ का आयोजन किया जा रहा है। यह कॉन्क्लेव भारतीय कृषि विमर्श में एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ किसान केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि नवाचार और परिवर्तन के केंद्र में हैं।

चौधरी चरण सिंह की विरासत और आज की आवश्यकता

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के सच्चे मसीहा चौधरी चरण सिंह का दृढ़ और अटल विश्वास था कि भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है। वे किसान को केवल श्रमदाता या उत्पादन की एक कड़ी नहीं, बल्कि अनुभव, ज्ञान और विवेक से संपन्न समाज का आधार स्तंभ मानते थे। उनका मानना था कि जब तक किसान को निर्णय-प्रक्रिया, नीति-निर्माण और विकास की मुख्यधारा में सम्मानजनक स्थान नहीं मिलेगा, तब तक राष्ट्रीय प्रगति के दावे अधूरे ही रहेंगे।

आज, जब देश ‘विकसित भारत’ की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, चौधरी चरण सिंह की यह दूरदर्शी सोच पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक और मार्गदर्शक बन जाती है। कृषि को केवल उत्पादन बढ़ाने का माध्यम नहीं, बल्कि किसानों के ज्ञान, नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित विकास मॉडल के रूप में देखने की आवश्यकता है। ‘IARI नवोन्मेषी किसान कॉन्क्लेव–2025’ इसी विचारधारा को आधुनिक संदर्भ में आगे बढ़ाते हुए किसान को नीति, विज्ञान और नवाचार के केंद्र में स्थापित करने का एक सार्थक और समयोचित प्रयास है—जहाँ किसान केवल सहभागी नहीं, बल्कि परिवर्तन की दिशा तय करने वाला प्रमुख सूत्रधार बनता है।

खेतों से निकले नवाचार: अनदेखी शक्ति

देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे असंख्य किसान हैं, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद असाधारण नवाचार किए हैं। कहीं किसानों ने वर्षा आधारित क्षेत्रों में कम लागत वाली जल-संचयन संरचनाएँ विकसित कीं, जिनसे सूखे के वर्षों में भी फसल बची। कहीं देशी बीजों का चयन और संरक्षण कर स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल किस्में तैयार की गईं, जो कम पानी और कम उर्वरक में भी बेहतर उपज देती हैं।

कई किसानों ने फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उनसे मल्चिंग, कम्पोस्ट और पशु आहार के उपयोगी मॉडल विकसित किए। कुछ क्षेत्रों में किसानों ने पारंपरिक फसलों के साथ सब्ज़ी, मसाला और औषधीय पौधों का समन्वय कर आय के नए स्रोत बनाए। महिलाओं के नेतृत्व में स्वयं सहायता समूहों ने बीज उत्पादन, मशरूम, मधुमक्खी पालन और मूल्य संवर्धन जैसे कार्यों से खेती को परिवार-केंद्रित उद्यम में बदला।

ये सभी नवाचार किसी प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि खेत की मिट्टी से जन्मे हैं। समस्या यह रही कि ऐसे अनुभव अक्सर स्थानीय स्तर तक सीमित रह गए। IARI का यह कॉन्क्लेव इन्हीं नवाचारों को राष्ट्रीय मंच देने का प्रयास है।

जब किसान बोलेगा, किसान सीखेगा

इस वर्ष पूसा संस्थान के किसान दिवस की थीम—“भारत में किसानों के नवाचारों को मुख्यधारा में लाना”—भारतीय कृषि विमर्श में एक मौलिक और क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत देती है। यह थीम स्पष्ट रूप से यह स्थापित करती है कि कृषि ज्ञान का प्रवाह केवल वैज्ञानिक से किसान तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि किसान से किसान तक अनुभवों और नवाचारों का आदान–प्रदान उतना ही महत्वपूर्ण, विश्वसनीय और प्रभावी है। यह सोच पारंपरिक “ऊपर से नीचे” वाले विस्तार मॉडल से आगे बढ़कर किसान को ज्ञान के स्रोत और नवाचार के केंद्र के रूप में स्थापित करती है।

इसी दृष्टिकोण के अनुरूप, इस कॉन्क्लेव में पिछले वर्षों में सम्मानित नवोन्मेषी किसान स्वयं मंच पर आकर अपने अनुभव साझा करेंगे। वे बताएँगे कि किस प्रकार उन्होंने जल संकट से निपटने के लिए स्थानीय जल-संरक्षण संरचनाएँ विकसित कीं, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने हेतु फसल अवशेषों, जैविक खाद और संसाधन-संरक्षण तकनीकों को अपनाया, देशी एवं उन्नत बीजों के विवेकपूर्ण चयन से उत्पादन लागत को कम किया, सीमित साधनों में उपयुक्त यंत्रीकरण के नवाचारी तरीके खोजे तथा बदलते बाजार परिवेश में अपनी उपज को बेहतर मूल्य दिलाने की सफल रणनीतियाँ विकसित कीं।

पूसा संस्थान का यह कदम इसलिए भी क्रांतिकारी है, क्योंकि यहाँ किसान केवल श्रोता नहीं, बल्कि ज्ञान के प्रस्तोता, संवाद के सूत्रधार और परिवर्तन के वाहक हैं। यह किसान-से-किसान सीख की प्रक्रिया भरोसे, व्यवहारिकता और त्वरित अपनाने की क्षमता के कारण अत्यंत प्रभावी सिद्ध होती है और कृषि नवाचारों को ज़मीनी स्तर पर तेज़ी से फैलाने में सहायक बनती है।

वास्तव में, यह पहल किसानों के आत्मविश्वास को नई मजबूती देती है और यह संदेश देती है कि भारतीय कृषि का भविष्य केवल प्रयोगशालाओं या नीतिगत दस्तावेज़ों में नहीं, बल्कि खेतों में जन्म लेने वाले नवाचारों और किसानों के अनुभवजन्य ज्ञान में निहित है। पूसा संस्थान का यह प्रयास भारतीय कृषि को अधिक समावेशी, टिकाऊ और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक नवीन और ऐतिहासिक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए।

नीति, विज्ञान और अनुभव का संगम

यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉन्क्लेव 23–24 दिसंबर 2025 को आयोजित होगा, जिसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के किसान भाग लेंगे। कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (DARE) एवं महानिदेशक, ICAR द्वारा किया जाना इस बात का संकेत है कि अब किसान के अनुभव को नीति विमर्श में गंभीरता से सुना जाएगा 24 दिसंबर को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी का किसानों से सीधा संवाद इस पहल को और प्रासंगिक बनाता है। कॉन्क्लेव के छह तकनीकी सत्र—प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, बागवानी, महिला किसानों का सशक्तिकरण, समूह आधारित उद्यमिता, कृषि यंत्रीकरण तथा किसान नवाचारों के सत्यापन एवं प्रसार—यह स्पष्ट करते हैं कि टिकाऊ कृषि का रास्ता बहुआयामी है

नवाचार का लोकतंत्रीकरण ही भविष्य

‘IARI नवोन्मेषी किसान कॉन्क्लेव–2025’ का सबसे बड़ा और दूरगामी संदेश यह है कि भारतीय कृषि का भविष्य केवल नई तकनीकों के आयात या बाहरी समाधानों पर निर्भर नहीं हो सकता, बल्कि स्थानीय ज्ञान, किसानों के अनुभव और खेतों में विकसित नवाचारों के सम्मान एवं विस्तार में निहित है। जब किसान द्वारा विकसित नवाचारों को औपचारिक पहचान मिलती है, वैज्ञानिक संस्थानों से उनका सत्यापन और तकनीकी समर्थन होता है, और नीति-स्तर पर उन्हें अपनाने के लिए अनुकूल वातावरण बनता है, तभी कृषि वास्तव में लाभकारी, टिकाऊ और आत्मनिर्भर बनती है।

यह कॉन्क्लेव इस बात की स्पष्ट घोषणा करता है कि किसान केवल योजनाओं का लाभार्थी नहीं, बल्कि समाधान का सह-निर्माता है। ऐसे मंच किसानों के आत्मविश्वास को सुदृढ़ करते हैं, नवाचारों को स्थानीय सीमाओं से निकालकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाते हैं और कृषि विकास को अधिक सहभागी एवं समावेशी बनाते हैं। वास्तव में, पूसा संस्थान की यह पहल भारतीय कृषि को खेत से नीति तक जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, जो आने वाले वर्षों में कृषि अनुसंधान, प्रसार और नीति-निर्माण की दिशा को नई सोच और नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

इस किसान दिवस पर यह संकल्प लेना आवश्यक है कि किसान को केवल सहायता का पात्र नहीं, बल्कि परिवर्तन का भागीदार और मार्गदर्शक माना जाए।
क्योंकि जब किसान बोलेगा, तभी खेत बदलेगा; और जब खेत बदलेगा, तभी देश बदलेगा।

लेखक: डॉ. सी. एच. श्रीनिवास राव, और डॉ राम स्वरूप बाना

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