भविष्य की खेती मतलब स्मार्ट खेती 

दुनिया में खेती-किसानी के सामने कई चुनौती है। इन चुनौतियों को देखते हुए जापान जैसे विकसित देश स्मार्ट खेती को अपना रहे है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक दुनिया की आबादी 9.7 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, और इस बात की चिंता है कि इससे खाद्यान्न की कमी हो जाएगी। इसके अलावा, हाल के वर्षों में, दुनिया भर में चरम मौसम के कारण फसल विफलताओं की रिपोर्ट की गई है, और जलवायु परिवर्तन ने मुख्य फसलों की वृद्धि को प्रभावित किया है, जिससे किसानों के लिए रोपण और कटाई के लिए इष्टतम समय का अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है।

जापान में, बुजर्गों की आबादी है और खेती करने वाले युवाओं की कमी है। इस प्रकार, परित्यक्त कृषि भूमि में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उपज में गिरावट आई है। इस बीच, वैश्विक स्तर पर, कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि प्रत्येक किसान द्वारा खेती की जाने वाली भूमि के बढ़ते औसत क्षेत्र का प्रबंधन करना।

स्मार्ट कृषि से कृषि कार्य को ज़्यादा कुशल बनाया जा सकता है

इससे कम श्रम और जनशक्ति से काम किया जा सकता है

इससे खाद्य उत्पादन लागत कम आ सकती है

इससे नए कृषि श्रमिकों को खेती की तकनीक सीखने में मदद मिलती है

इससे रात में भी काम किया जा सकता है

इससे किसानों को अपने काम के पैमाने को बढ़ाने में मदद मिलती है

स्मार्ट कृषि में डेटा संग्रह का इस्तेमाल खेती की योजनाओं या ट्रेनिंग के लिए किया जा सकता है

दरअसल डिजिटल खेती एक बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है, इसे देखते हुए भारत सरकार कृषि क्षेत्र में तकनीक और नवाचार के इस्तेमाल के जरिए स्मार्ट खेती के तरीकों को अपनाने को बढ़ावा दे रही है ।

सरकार ने एक डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम) लागू किया है, जिसमें भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (आईडीए), किसान डेटाबेस, एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस (यूएफएसआई), नई तकनीक पर राज्यों को वित्त पोषण (एनईजीपीए), महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (एमएनसीएफसी) का पुनरुद्धार, मृदा स्वास्थ्य, उर्वरता और प्रोफाइल मैपिंग शामिल हैं।

 एनईजीपीए कार्यक्रम के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग (एआई/एमएल), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ब्लॉक चेन आदि जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके डिजिटल कृषि परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों को वित्त पोषण दिया जाता है । ड्रोन तकनीक को अपनाया जा रहा है। स्मार्ट खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप को बढ़ावा दे रही है।

 भारत सरकार का ई- नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) चल रहा है, जो एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, ये किसानों के लिए मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों के बीच नेटवर्क बनाता है।

तमिलनाडु जैसे राज्यों में एफ बेसड खेती का सफल प्रयोग हो रहा है। पानी सही मात्रा में ही खेतों में जाएं और बर्बाद ना हो, इसका सही इस्तेमाल हो रहा है। कई स्टार्ट अप भी डिजिटल के जरिए किसानों को मदद कर रहे है।

जलवायु-स्मार्ट कृषि को मुख्य सरकारी नीति, व्यय और नियोजन ढांचे में मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है।प्रभावी होने के लिए सीएसए नीतियों को व्यापक आर्थिक विकास, गरीबी में कमी और सतत विकास लक्ष्यों में योगदान देना चाहिए। उन्हें आपदा जोखिम प्रबंधन रणनीतियों, कार्यों और सामाजिक सुरक्षा जाल कार्यक्रमों के साथ भी एकीकृत किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन, कृषि विकास और खाद्य सुरक्षा से निपटने वाले विभिन्न क्षेत्रों के बीच समन्वय और एकीकरण, सक्षम नीति वातावरण बनाने के लिए एक प्रमुख जरुरत है।

सीएसए को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना, जैसे पर्यावरणीय सेवाओं के लिए भुगतान (पारिस्थितिक सेवा प्रदान करने के लिए भूमि का प्रबंधन), किसानों को जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को अपनाने और प्रारंभिक निवेश बाधाओं को दूर करने के लिए प्रोत्साहित करता है।मूलत स्मार्ट खेती भविष्य की खेती है।

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