भारत में ऊंट संरक्षण और ऊंटनी दूध उद्योग के विकास के लिए प्रयास तेज़
भारत ऊँटों के संरक्षण और ऊँटनी दूध उद्योग की संभावनाओं को उजागर करने के लिए नई पहलें कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने 2024 को “अंतर्राष्ट्रीय कैमेलिड वर्ष” घोषित किया है, जो ऊँटों और उनके योगदान को सम्मानित करने का वर्ष है। इस अवसर पर, भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने बीकानेर, राजस्थान में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इसका उद्देश्य ऊँटनी दूध की मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना और इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों को सुलझाना था।
कार्यशाला का उद्देश्य और भागीदारी
इस कार्यशाला में 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें राजस्थान और गुजरात के ऊँट पालक, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, सामाजिक उद्यम, और डेयरी उद्योग के विशेषज्ञ शामिल थे। भागीदारों ने ऊँटनी दूध के पोषण और चिकित्सीय लाभों को पहचानने, मूल्य श्रृंखला में सुधार, और ऊँट पालकों की आजीविका को सुदृढ़ बनाने के उपायों पर चर्चा की।
प्रमुख मुद्दे और समाधान
डीएएचडी की सचिव सुश्री अलका उपाध्याय ने भारत में घटती ऊँट जनसंख्या पर चिंता व्यक्त की और इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की। उन्होंने ऊँटनी दूध की मूल्य श्रृंखला के विकास और ऊँट पालने वाले समुदायों को समर्थन देने पर ज़ोर दिया।
पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा ने ऊँटनी दूध के पोषण और चिकित्सीय गुणों पर ध्यान केंद्रित करने और नस्ल सुधार के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग फार्म और ब्रीडर्स सोसाइटी को बढ़ावा देने की बात की।
एफएओ के प्रतिनिधि श्री ताकायुकी हागिवारा ने सतत विकास और खाद्य सुरक्षा के लिए गैर-गोजातीय दूध उद्योग को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि सरकार, अनुसंधान और उद्योग के सहयोग से एक प्रतिस्पर्धात्मक और टिकाऊ ईको-सिस्टम बनाया जा सकता है।
राज्य और उद्योग की भागीदारी
राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव डॉ. समित शर्मा ने ऊँट संरक्षण के लिए राज्य की पहलों पर प्रकाश डाला, जिनमें पशु मेलों, ऊँट प्रतियोगिताओं, पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन और ऊँट उत्पादों को बढ़ावा देना शामिल है।
अमूल, सरहद डेयरी, लोटस डेयरी और अन्य डेयरी उद्यमों के प्रतिनिधियों ने मांग की कि सरकार इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोग करे, जिससे निवेश को प्रोत्साहन मिले।
भविष्य की रणनीतियाँ
कार्यशाला में ऊँटनी दूध के लिए एक विशेष बाज़ार तैयार करने, नस्ल सुधार, उत्पादन बढ़ाने और मूल्य संवर्धन के लिए शोध और विकास की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इसके अलावा, चिकित्सीय गुणों के ठोस प्रमाण हेतु नैदानिक परीक्षण और उत्पाद विविधीकरण पर भी विचार-विमर्श हुआ।
अंतर्राष्ट्रीय कैमेलिड वर्ष 2024 का महत्व
“रेगिस्तान और पहाड़ी इलाकों के नायक: लोगों और संस्कृति का संवर्धन” नारे के तहत, इस आयोजन का उद्देश्य ऊँटों के पोषण, खाद्य सुरक्षा, आजीविका और सांस्कृतिक महत्व को पहचानना है।
समावेशी विकास के लिए आह्वान
ऊँटनी दूध उद्योग के विकास के साथ-साथ ऊँट पालकों की आजीविका और भारत में ऊँटों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए समग्र और समावेशी रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं। यह पहल न केवल सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी बल्कि भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य में ऊँटों की भूमिका को भी पुनर्स्थापित करेगी।
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