केला अनुसंधान केन्द्र गोरौल भ्रमण रिपोर्ट
गोरौल, वैशाली। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के अंतर्गत संचालित केला अनुसंधान केन्द्र (BRC), गोरौल में 22 नवम्बर 2025 को किए गए फील्ड भ्रमण में फसल वृद्धि, अनुसंधान प्रगति तथा फील्ड प्रबंधन की व्यापक समीक्षा की गई। भ्रमण का नेतृत्व पादप रोग विज्ञान एवं नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष तथा केन्द्र के अधिकारी-प्रभारी प्रो. (डॉ.) एस. के. सिंह ने किया।

निरीक्षण का मुख्य उद्देश्य केंद्र में इस वर्ष प्रारंभ की गई दो उच्च मूल्य वाली किस्मों—येलक्की (GI-टैग) और रेड केला—की प्रगति का मूल्यांकन करना था।
येलक्की अपने GI-टैग, विशेष स्वाद और प्रीमियम बाजार मांग के लिए प्रसिद्ध है, जबकि रेड केला अपनी लाल चमकदार छिलका और उच्च पोषक तत्वों के कारण तेजी से लोकप्रिय व्यावसायिक किस्म बन रहा है।
डॉ. सिंह के मार्गदर्शन में इन किस्मों का इसी वर्ष किया गया, ताकि बिहार की जलवायु में उनकी अनुकूलता, व्यावसायिक संभावनाओं और किसानों के लिए प्रशिक्षण मॉडल विकसित किए जा सकें।
फील्ड में मिला सुव्यवस्थित प्रबंधन
पूरे क्षेत्र का लेआउट, पौध व्यवस्था, सिंचाई प्रणाली और अंतर-क्रियात्मक कार्य समयबद्ध और वैज्ञानिक पद्धति से संचालित पाए गए। फसल की स्थिति देखकर स्पष्ट हुआ कि नियमित निगरानी और कुशल प्रबंधन लागू है।
रेड केले का शानदार प्रदर्शन
भ्रमण के दौरान रेड केले की फसल सबसे प्रभावशाली पाई गई। निरीक्षण में— 
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पौधों की मजबूती और समान वृद्धि
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स्यूडोस्टेम का मजबूत विकास
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पत्तियों का संतुलित फैलाव
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तनाव या रोग का कोई लक्षण नहीं
यह संकेत मिला कि पोषक तत्व प्रबंधन और सिंचाई समय पर की गई है। आने वाले महीनों में रेड केले से उत्कृष्ट गुच्छ पैदावार की संभावना है।
इसे किसान प्रशिक्षण और व्यावसायिक प्रमोशन के लिए एक मॉडल प्लांटेशन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
येलक्की केला पीछे रह गया, कारणों की पहचान जरूरी
इसके विपरीत, येलक्की किस्म अपेक्षाकृत कमजोर दिखाई दी। मुख्य चुनौतियाँ थीं—
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धीमी और असमान वृद्धि
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पौधों में कम स्फूर्ति
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ऊंचाई और canopy में अंतर
संभावित कारण बताए गए—
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स्थानीय जलवायु के प्रति अधिक संवेदनशीलता
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प्रत्यारोपण के समय का स्ट्रेस
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सूक्ष्म पोषक असंतुलन
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जड़ क्षेत्र का कमजोर विकास
येलक्की के लिए उन्नत फर्टिगेशन, माइक्रोन्यूट्रिएंट सप्लीमेंट, और विशेष सिंचाई प्रबंधन की आवश्यकता है। विस्तृत वैज्ञानिक मूल्यांकन की अनुशंसा की गई।
कीट एवं रोग स्थिति: राहत की खबर
कीट अवलोकन
कुछ क्षेत्रों में हल्की कीट सक्रियता देखी गई, पर स्थिति नियंत्रण में थी। नियमित निगरानी एवं IPM आधारित उपायों की सलाह दी गई।
रोग स्थिति
पूरे फील्ड में रोगों के कोई लक्षण नहीं मिले। यह केंद्र की स्वच्छता, रोकथाम उपाय और अनुकूल पर्यावरण का परिणाम माना गया।
समग्र मूल्यांकन
निरीक्षण के आधार पर गोरौल BRC में चल रही केले की खेती की स्थिति संतोषजनक और सराहनीय पाई गई।
जहाँ रेड केला उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है, वहीं येलक्की किस्म पर अतिरिक्त वैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
फसल का कुल स्वास्थ्य अत्यंत अच्छा पाया गया।
मुख्य सुझाव
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दोनों किस्मों की पखवाड़ावार वैज्ञानिक निगरानी
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मृदा एवं पोषण विश्लेषण कर प्रबंधन सुधार
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IPM को सुदृढ़ करना
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वृद्धि डेटा एवं फोटोग्राफिक रिकॉर्ड का संकलन
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रेड केले को प्रशिक्षण व प्रदर्शन के लिए उपयोग
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येलक्की के लिए विशेष पोषण व सिंचाई योजना बनाना
सारांश
भ्रमण उपयोगी और महत्वपूर्ण निष्कर्षों वाला रहा। रेड केले ने केंद्र की उम्मीदें बढ़ाईं, जबकि येलक्की किस्म के सुधार के लिए योजना बनाने की आवश्यकता रेखांकित हुई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और बेहतर प्रबंधन के साथ गोरौल का केला अनुसंधान केन्द्र आने वाले समय में उन्नत केले की खेती और ज्ञान प्रसार का प्रमुख केंद्र बनने की क्षमता रखता है।
प्रो. (डॉ.) एस. के. सिंह विभागाध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान एवं नेमेटोलॉजी अधिकारी-प्रभारी, केला अनुसंधान केन्द्र, गोरौल डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा संपर्क: sksraupusa@gmail.com