सहकारी संगठनों का ग्लोबल उत्सव, भारत की भूमिका अहम

सहकारिता दिवस 2025: सबका साथ, सबका विकास

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस 2025: सहकारिता संगठनों का वैश्विक योगदान और भारत की ऐतिहासिक भूमिका

नई दिल्ली, 5 जुलाई 2025। दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस (International Day of Cooperatives) हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन हर वर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाता है, और इस बार यह विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 (UN International Year of Cooperatives) के अंतर्गत मनाया जा रहा है।

इस वर्ष की थीम: “सहकारी संगठन: एक बेहतर दुनिया के लिए समावेशी और सतत समाधान के वाहक

यह थीम वैश्विक स्तर पर सहकारिता की भूमिका को रेखांकित करती है, जहां यह संगठन आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक समरसता और सतत विकास को भी बढ़ावा दे रहे हैं। यह आयोजन संयुक्त राष्ट्र के उच्चस्तरीय राजनीतिक मंच (High-Level Political Forum) और आगामी द्वितीय विश्व सामाजिक विकास शिखर सम्मेलन (Second World Summit for Social Development) से जुड़ा है। यह स्पष्ट करता है कि सहकारी संस्थाएं अब सिर्फ स्थानीय इकाइयां नहीं, बल्कि एक वैश्विक परिवर्तन की मजबूत कड़ी बन चुकी हैं।

भारत में सहकारिता की जड़ें

भारत में सहकारिता की भावना सदियों पुरानी है। “वसुधैव कुटुंबकम्” की परंपरा और साझा जीवनशैली इस विचार को जन्म देती है। पुराने समय में भारतीय गांवों में जल, भूमि और वन जैसे संसाधनों का सामूहिक प्रबंधन एक स्वाभाविक व्यवस्था थी। यह सहजीवन की भावना सहकारिता के मूल सिद्धांतों के समान ही थी।

आधुनिक सहकारी आंदोलन की शुरुआत

19वीं सदी के अंत में जब भारत मे किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, सूखे, महाजनी कर्ज और भूमि संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, तब सहकारी आंदोलन की नींव पड़ी। किसानों को उचित दर पर ऋण, फसल के लिए बाजार और सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत थी, जिसे सहकारी समितियों ने पूरा किया। इसके परिणामस्वरूप देशभर में सहकारी समितियां बनीं और ग्रामीण भारत में नई उम्मीद जगी।

भारत की प्रमुख सहकारी संस्थाएं

आज भारत में सहकारिता क्षेत्र कई रूपों में कार्य कर रहा है। इनमें प्रमुख हैं:

उपभोक्ता सहकारी संस्थाएं – केंद्रीय भंडार

उत्पादक सहकारी समितियां – APPCO

विपणन सहकारी संस्थाएं – AMUL

क्रेडिट सहकारी संस्थाएं – शहरी सहकारी बैंक

कृषि सहकारी संस्थाएं – कृषि यंत्र, खाद-बीज की आपूर्ति और सामूहिक खेती के लिए

आवास सहकारी समितियां – शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते मकानों की व्यवस्था के लिए

भारत की कुछ अग्रणी सहकारी संस्थाएं जैसे IFFCO (इफ्को), AMUL (अमूल), KRIBHCO (कृभको) और सारस्वत बैंक, न केवल देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे रही हैं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुकी हैं।

सहकारिता आंदोलन का भविष्य

सहकारिता न केवल आर्थिक विकास का साधन है बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और सतत विकास का मजबूत आधार भी है। जलवायु परिवर्तन, बेरोजगारी, गरीबी और असमानता जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में सहकारी मॉडल एक प्रभावी विकल्प के रूप में उभरा है।

भारत सरकार भी सहकारिता मंत्रालय के माध्यम से इस क्षेत्र को मजबूत कर रही है। “सहकार से समृद्धि” के दृष्टिकोण के साथ नई योजनाएं और डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार किए जा रहे हैं ताकि सहकारी आंदोलन को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सके।

सारांश

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस 2025 सिर्फ एक दिवस नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन की पहचान है जो समावेशी, टिकाऊ और न्यायसंगत समाज की ओर बढ़ने का रास्ता दिखाता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में सहकारी संगठनों की भूमिका आने वाले समय में और अधिक महत्वपूर्ण होने वाली है।

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