डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और बामेती की संयुक्त पहल: सतत् केला उत्पादन पर तीन दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण का सफल आयोजन

समस्तीपुर/वैशाली। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (आरपीसीएयू), पूसा और बिहार कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान (बामेती) की संयुक्त पहल पर केला अनुसंधान केन्द्र, गोरौल, वैशाली में तीन दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का विषय था – “सतत् केला उत्पादन हेतु गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री”।
प्रशिक्षण का उद्देश्य
भारत में केला खेती एक प्रमुख आजीविका का साधन है। बिहार के लाखों किसान इस फल से अपनी जीविका चलाते हैं। मगर अक्सर किसानों को रोगग्रस्त पौध, कीट आक्रमण और कमजोर किस्म की पौध सामग्री के कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
इस प्रशिक्षण का उद्देश्य किसानों और कृषि प्रसार कर्मियों को गुणवत्तापूर्ण पौध उत्पादन, रोग-कीट प्रबंधन, ऊतक संवर्धन, पौध संगरोध और प्रमाणन जैसी आधुनिक तकनीकों की जानकारी देना था। साथ ही, उन्हें यह भी सिखाया गया कि कैसे पौधारोपण और संरक्षण की सही विधियाँ अपनाकर सतत् उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
प्रतिभागियों का चयन
इस प्रशिक्षण में समस्तीपुर, वैशाली, सिवान, मुजफ्फरपुर और सारण जिलों से कुल 20 प्रतिभागी शामिल हुए।
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प्रत्येक जिले से 4 प्रतिभागियों का चयन किया गया, जिनमें एक प्रखंड तकनीकी प्रबंधक (BTM), एक सहायक तकनीकी प्रबंधक (ATM) और दो प्रगतिशील किसान शामिल थे।
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प्रतिभागियों का चयन इस आधार पर हुआ कि उन्होंने पहले इस विषय पर कोई प्रशिक्षण न लिया हो, ताकि नई और प्रासंगिक जानकारी सीधे उनके पास पहुँचे और वे अपने क्षेत्र में इसका प्रचार-प्रसार कर सकें।
प्रशिक्षण की प्रमुख झलकियां
तीन दिनों तक चले इस आवासीय प्रशिक्षण में व्याख्यान, समूह चर्चा, प्रयोगशाला प्रदर्शन और फील्ड विज़िट जैसी गतिविधियों का आयोजन किया गया।
प्रतिभागियों को जिन प्रमुख विषयों पर प्रशिक्षित किया गया, उनमें शामिल थे –
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गुणवत्तापूर्ण पौध चयन और नर्सरी प्रबंधन
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रोग एवं कीट मुक्त पौध तैयार करने की तकनीकें
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ऊतक संवर्धन एवं माइक्रोप्रोपेगेशन आधारित पौध उत्पादन
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पौध संगरोध और गुणवत्ता प्रमाणन प्रक्रिया, वैज्ञानिक पौधारोपण और संरक्षण उपाय ,पोषण एवं जल प्रबंधन द्वारा सतत् उत्पादन
विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने इन विषयों को सरल भाषा और व्यावहारिक उदाहरणों के साथ समझाया। प्रतिभागियों को खेत और प्रयोगशाला दोनों स्तर पर प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किया गया।
कार्यक्रम की विशेषताएं
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यह प्रशिक्षण पूर्णतः आवासीय रहा, जिससे प्रतिभागियों को लगातार आपसी संवाद और अनुभव साझा करने का अवसर मिला।
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प्रतिभागियों की सूची 8 अगस्त तक बामेती पोर्टल पर अपलोड कर दी गई थी और उन्हें ई-मेल से भी सूचना भेजी गई।
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कार्यक्रम के दौरान प्रत्येक दिन सुबह और शाम व्याख्यान एवं व्यावहारिक कक्षाएँ आयोजित हुईं।
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फील्ड विज़िट और लैब प्रदर्शन ने किसानों और प्रसार कर्मियों को वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को प्रत्यक्ष देखने और समझने का अवसर दिया।
अपेक्षित लाभ
प्रशिक्षण समाप्ति के बाद प्रतिभागियों से अपेक्षा है कि वे अपने-अपने जिलों में इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करेंगे।
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प्रगतिशील किसान आधुनिक तकनीकों को अपनाकर केले की पैदावार और गुणवत्ता दोनों में सुधार करेंगे।
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प्रसार कर्मी किसानों को वैज्ञानिक संदेश और तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराएँगे।
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स्थानीय स्तर पर पौध उत्पादन केंद्रों की स्थापना को बढ़ावा मिलेगा, जिससे क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण पौध सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल न केवल सतत् केला उत्पादन प्रणाली को मजबूत करेगी, बल्कि किसानों की आय दोगुनी करने और आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली को विकसित करने में भी अहम भूमिका निभाएगी।
विश्वविद्यालय और बामेती की संयुक्त पहल
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आरपीसीएयू, पूसा और बामेती, पटना की संयुक्त पहल का हिस्सा था। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तकनीकी विषयों को किसानों की समझ के अनुसार सरल भाषा में प्रस्तुत किया, वहीं बामेती ने प्रतिभागियों के चयन और प्रशिक्षण के संचालन में सहयोग दिया।
इस प्रकार यह आयोजन किसानों और कृषि प्रसार कर्मियों को वैज्ञानिक खेती की दिशा में सशक्त बनाने का उत्कृष्ट उदाहरण बन गया।
डॉ. एस.के. सिंह, हेड, केला अनुसंधान केन्द्र, गोरौल एवं विभागाध्यक्ष, पौधा एवं सूत्रकृमि विभाग, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, sksraupusa@gmail.com / sksingh@rpcau.ac.in