बड़ी चुनौती के मद्देनज़र नवाचार और टिकाऊ कृषि की जरूरत

किसान दिवस विशेष

डॉ राम स्वरूप बाना, वरिष्ठ वैज्ञानिक भा.कृ.अनु.प. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नई दिल्ली
भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद, आज हमारे किसान अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अधिकांश जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, लेकिन किसानों को उनकी मेहनत का समुचित प्रतिफल नहीं मिल पा रहा है। उत्पादन लागत का लगातार बढ़ना, कम आय और आर्थिक अस्थिरता, फसल के उचित दाम न मिलना, बाजार में बिचौलियों का एकाधिकार, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव और कर्ज का बोझ, ये सभी समस्याएँ कृषि क्षेत्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।
राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन (NSSO) और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश किसान खेती को एक लाभकारी व्यवसाय नहीं मानते। कई किसान खेती छोड़ने और अन्य व्यवसाय अपनाने की इच्छा रखते हैं। यह स्थिति न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है, बल्कि उनके मनोबल और आत्मविश्वास को भी कमजोर करती है। ऐसे में, भारतीय कृषि को सशक्त और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक ठोस रणनीति की आवश्यकता है। इस किसान दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि कृषि क्षेत्र को टिकाऊ और लाभकारी बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। इसके लिए निम्नलिखित उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए:
1. उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार
कृषि को लाभकारी बनाने के लिए उत्पादन वृद्धि के साथ गुणवत्ता सुधार पर ध्यान देना आवश्यक है। बायो-फॉर्टिफाइड किस्मों, संतुलित पोषण और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। परंपरागत फसलों के साथ-साथ सब्जियों, मसालों और औषधीय पौधों जैसी उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों को अपनाने की जरूरत है। इससे किसानों को निरंतर आय प्राप्त होगी और देश पोषण सुरक्षा की ओर कदम बढ़ाएगा।
रसायनों के अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करते हुए जैविक और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करना चाहिए। यह उत्पाद की गुणवत्ता सुधारने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग को भी बढ़ाएगा। इसके अतिरिक्त, आय में स्थिरता और जोखिम प्रबंधन के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) को अपनाना समय की मांग है। इस मॉडल में फसल उत्पादन के साथ पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन और कृषि वानिकी को शामिल करके किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है।
2. मजबूत विपणन व्यवस्था
कृषि को लाभकारी बनाने के लिए विपणन तंत्र को सशक्त करना और बिचौलियों के प्रभाव को कम करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों को संगठित करने के लिए अमूल की तर्ज पर सहकारी मॉडल को बढ़ावा देना चाहिए। किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मजबूत किया जाना चाहिए, जिससे वे सीधे बाजार तक पहुंच सकें। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) का किसान हाट मॉडल किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ने का एक प्रभावी तरीका है। इसे देशभर में कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) और कृषि विश्वविद्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से विस्तारित किया जा सकता है। इसके साथ ही, ई-नाम (e-NAM) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके किसान अपनी उपज सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा सकते हैं। सभी सरकारी योजनाओं का लाभ सीधा किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) का व्यापक उपयोग किया जाना चाहिए।
3. जल संरक्षण और सिंचाई प्रबंधन
प्रतीकात्मक फोटो
भारत का लगभग 48% कृषि क्षेत्र अभी भी वर्षा आधारित है। ऐसे में जल संरक्षण और जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सामुदायिक जल संचयन संरचनाएँ, जैसे टैंक, तालाब, खेत तालाब और चेक डैम का निर्माण किया जाना चाहिए। इनसे वर्षा जल को संरक्षित कर रबी फसलों की सिंचाई सुनिश्चित की जा सकती है।
मानसून की अनियमितता से प्रभावित क्षेत्रों में, एक जीवनदायी सिंचाई की व्यवस्था से खरीफ फसलों के नुकसान को कम किया जा सकता है। जलवायु अनुकूल फसलों और सूखा-रोधी किस्मों को बढ़ावा देकर इन क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। साथ ही, माइक्रो इरिगेशन तकनीकें, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, जल उपयोग की दक्षता को बढ़ाने में मददगार हो सकती हैं।
4. तकनीकी नवाचार और टिकाऊ कृषि
कृषि में तकनीकी नवाचार और प्रौद्योगिकी का समावेश अत्यंत आवश्यक है। ड्रोन और सेंसर तकनीक का उपयोग फसल निगरानी, कीटनाशक छिड़काव और उर्वरक प्रबंधन में किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग उपज पूर्वानुमान, विपणन रणनीति और फसल स्वास्थ्य की निगरानी में किया जाना चाहिए।
टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। बिना जुताई के बुवाई, पराली प्रबंधन और मिट्टी की नमी संरक्षण जैसी तकनीकें लागत को कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, छोटे और सीमांत किसानों के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर के माध्यम से सस्ते दरों पर आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध कराना आवश्यक है। सौर ऊर्जा पंप और जैविक खाद के उपयोग से ऊर्जा और उर्वरक पर खर्च को कम किया जा सकता है।
5. वैकल्पिक भूमि उपयोग और कृषि वानिकी
बंजर और अनुपयोगी भूमि के प्रबंधन के लिए कृषि वानिकी, चारा उत्पादन और ऊर्जा फसलों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे न केवल भूमि का बेहतर उपयोग होगा, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय के स्रोत भी मिलेंगे।
निष्कर्ष
कृषि को लाभकारी और टिकाऊ बनाने के लिए सरकार, किसान, वैज्ञानिक, नीति निर्माता और उद्यमियों को मिलकर काम करना होगा। कृषि क्षेत्र में नवाचार, टिकाऊ प्रथाओं और सीधे बाजार तक पहुंच सुनिश्चित कर भारतीय कृषि को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस किसान दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि किसानों की आय बढ़ाने और उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।

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