पंजाब में फसल अवशेष प्रबंधन पर कार्यशाला का आयोजन
आईसीएआर–आईआईएमआर, आईसीएआर–सीआईपीएचईटी और सीआईएमएमवाईटी का संयुक्त प्रयास
लुधियाना – पंजाब में पराली जलाने की समस्या और मिट्टी के स्वास्थ्य पर उसके दुष्प्रभाव को ध्यान में रखते हुए आईसीएआर–भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), लुधियाना; आईसीएआर–केंद्रीय पश्च–फसल अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईपीएचईटी), लुधियाना; तथा इंटरनेशनल मक्का एंड व्हीट इम्प्रूवमेंट सेंटर (सीआईएमएमवाईटी) के संयुक्त तत्वावधान में “सस्टेनेबल राइस रेजिड्यू मैनेजमेंट इन पंजाब” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन आईसीएआर–आईआईएमआर, लुधियाना में किया गया। इस कार्यशाला में लगभग 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए फसल अवशेषों का महत्व
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में आईसीएआर–आईआईएमआर के निदेशक डॉ. एच.एस. जाट ने कहा कि धान की फसल के अवशेष मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने पंजाब में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि पराली जलाने की घटनाओं को कम किया जा सके। डॉ. जाट ने किसानों से अपील की कि वे खरीफ मौसम में फसल विविधीकरण की दिशा में कदम बढ़ाएं, जिससे धान–गेहूं प्रणाली के एकाधिकार को समाप्त कर स्थायी खेती की दिशा में अग्रसर हुआ जा सके।
अनुसंधान संस्थानों और उद्योगों के बीच तालमेल की आवश्यकता
आईसीएआर–सीआईपीएचईटी के निदेशक डॉ. एन. कोत्वालीवाले ने कहा कि अनुसंधान संस्थानों, किसानों और उद्योगों के बीच समन्वित प्रयासों से ही व्यावहारिक फसल अवशेष प्रबंधन समाधान विकसित किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल तकनीकी नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी गंभीर है।
विशेषज्ञों ने रखे विचार और प्रस्तुत किए समाधान
डॉ. एच.एस. सिद्धू, पूर्व डीन, कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पीएयू, ने फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकों के बदलते स्वरूप और किसानों द्वारा उन्हें अपनाने में आ रही चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।
डॉ. मनप्रीत सिंह, सहायक प्रोफेसर, पीएयू, ने अवशेषों के कुशल उपयोग हेतु नवीन मशीनरी और तकनीकों पर प्रस्तुति दी।
डॉ. यदविंदर सिंह, पूर्व अध्यक्ष, मृदा विज्ञान विभाग, पीएयू, ने कहा कि अवशेषों का पुनर्चक्रण मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने और कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
डॉ. आशीष मुरई (आईसीएआर–एटारी, लुधियाना) ने कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे किसानों में अवशेष प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ाने और पराली जलाने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।
नवीन तकनीकों का प्रदर्शन
सीआईएमएमवाईटी के तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. मनीष और डॉ. प्रदीप भाटी ने उन्नत अवशेष प्रबंधन मशीनरी और इन-सिटू विघटन तकनीकों का लाइव प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन से प्रतिभागियों को फसल अवशेष प्रबंधन की व्यवहारिक और विस्तार योग्य तकनीकों की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त हुई।
सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल
कार्यशाला के समापन सत्र में यह सर्वसम्मति बनी कि अनुसंधान संस्थानों, कृषि मशीनरी निर्माताओं, सहकारी समितियों, सरकारी विभागों, गैर-सरकारी संगठनों और नीति-निर्माताओं को मिलकर किसानों के लिए व्यावहारिक और पर्यावरण–अनुकूल समाधान तैयार करने होंगे।
इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों ने पंजाब में स्वच्छ वायु, स्वस्थ मिट्टी और टिकाऊ कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु संयुक्त प्रयासों का संकल्प लिया।