स्मार्ट-क्रॉप” से किसान होंगे स्मार्ट-एसबीआई फाउंडेशन और आईसीआरआईसैट की नई पहल

एआई और सैटेलाइट तकनीक से फसलों की होगी रियल-टाइम निगरानी। 🚜💡

🌾 किसानों की फसल सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन की दिशा में बड़ा कदम — एसबीआई फाउंडेशन, यूएएस रायचूर और आईसीआरआईसैट ने मिलकर शुरू की “स्मार्ट-क्रॉप” परियोजना 🌿

हैदराबाद, — भारतीय कृषि क्षेत्र को तकनीकी रूप से सशक्त बनाने और किसानों की फसल उपज क्षमता को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षित करने के उद्देश्य से एसबीआई फाउंडेशन, यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (यूएएस) रायचूर, आईसीआरआईसैट (ICRISAT) और एग्रीब्रिज (Agribridge) ने मिलकर एक महत्वाकांक्षी परियोजना “स्मार्ट-क्रॉप” (SMART-CROP) की शुरुआत की है।
इस परियोजना का पूरा नाम है — Sustainable Monitoring and Real-Time Tracking for Crop Resilience and Optimal Practices, यानी फसलों की सतत निगरानी और वास्तविक समय पर फसल लचीलापन बढ़ाने की तकनीक।

🔹 किसानों के जीवन में तकनीक की नई रोशनी

हैदराबाद में आयोजित इस परियोजना के शुभारंभ समारोह में कर्नाटक और तेलंगाना राज्यों के कई जिलों से जुड़े किसान प्रत्यक्ष और वर्चुअल रूप से शामिल हुए। यह कार्यक्रम इस पहल की समावेशी और सहभागी भावना को दर्शाता है।

तीन वर्ष की अवधि वाली यह परियोजना एसबीआई फाउंडेशन के LEAP (Livelihood and Entrepreneurship Accelerator Programme) के तहत चलाई जाएगी। परियोजना का उद्देश्य कर्नाटक के बीदर, कलबुर्गी और रायचूर जिलों तथा तेलंगाना के संगारेड्डी और विकाराबाद जिलों के 8,000 से अधिक छोटे एवं सीमांत किसानों को तकनीक आधारित कृषि समाधान प्रदान करना है।

🔹 सैटेलाइट और एआई तकनीक से फसल की निगरानी

परियोजना के अंतर्गत अत्याधुनिक तकनीकों जैसे सैटेलाइट इमेजिंग, रिमोट सेंसिंग और एआई/एमएल (Artificial Intelligence/Machine Learning) आधारित डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जाएगा।
इससे किसानों को फसलों में तनाव, रोग, कीट प्रकोप और मिट्टी की सेहत से संबंधित जानकारी वास्तविक समय पर प्राप्त होगी, ताकि वे समय रहते उपचारात्मक कदम उठा सकें।

इस डिजिटल निगरानी प्रणाली से किसानों को न केवल फसल नुकसान घटाने में मदद मिलेगी, बल्कि उत्पादन क्षमता और आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

🔹 “तकनीक से सशक्त किसान” – एसबीआई फाउंडेशन

संजय प्रकाश

एसबीआई फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक संजय प्रकाश ने कहा..

“स्मार्ट-क्रॉप परियोजना हमारे किसानों को तकनीक आधारित समाधान से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इससे फसल लचीलापन बढ़ेगा, जलवायु जोखिम कम होगा और किसान आत्मनिर्भर बनेंगे। हमारा लक्ष्य है कि नवाचार किसानों की सुरक्षा और सम्मान का आधार बने।”

🔹 कृषि में साझेदारी की नई परंपरा

इस अवसर पर आईसीआरआईसैट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा.. “भारतीय कृषि की वास्तविक शक्ति साझेदारी और नवाचार में छिपी है। एसबीआई फाउंडेशन और हमारे जैसे अनुसंधान संस्थानों का यह सहयोग जलवायु परिवर्तन, कीट और रोग नियंत्रण, तथा मिट्टी के स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों में ठोस समाधान प्रस्तुत करेगा। यह पहल न केवल खेत स्तर पर जोखिम घटाएगी, बल्कि खाद्य सुरक्षा में अरबों डॉलर की बचत भी कर सकती है।”

वहीं, सुश्री दिव्या देवराजन, आईएएस एवं सीईओ (SERP), ने किसानों को केंद्र में रखकर किए जा रहे नवाचारों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसी परियोजनाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा देंगी और कृषि को तकनीकी दृष्टि से अधिक सक्षम बनाएंगी।

🔹 दलहनी फसलों पर विशेष फोकस

परियोजना के प्रमुख अन्वेषक डॉ. ए.जी. श्रीनिवास (प्रमुख, कीट विज्ञान विभाग, यूएएस रायचूर) और डॉ. ममता शर्मा (प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख रोग विज्ञानी, आईसीआरआईसैट) ने बताया कि स्मार्ट-क्रॉप परियोजना का मुख्य फोकस चना (Chickpea) और अरहर (Pigeonpea) जैसी दलहनी फसलों पर रहेगा।

उन्होंने कहा कि यह परियोजना किसानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपयोगी कृषि सलाह, कीट एवं रोग प्रबंधन तकनीकें और जलवायु अनुकूलन उपाय उपलब्ध कराएगी। साथ ही किसानों की भागीदारी पर आधारित मॉडल अपनाया जाएगा, जिससे नवाचार सीधे खेतों तक पहुंचे।

🔹 तकनीक प्रदर्शन और प्रशिक्षण सत्र

परियोजना के अंतर्गत एग्रीब्रिज के सह-संस्थापक विष्णु गोरंतला और  आदर्श ने टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि इस परियोजना के माध्यम से किसानों को मोबाइल एप्स और डिजिटल डैशबोर्ड के जरिए रियल-टाइम डेटा, मौसम पूर्वानुमान और फसल स्वास्थ्य रिपोर्ट्स उपलब्ध कराई जाएंगी।

इससे किसानों को सही समय पर सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी और कृषि प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ेगी।

🔹 ग्लोबल स्तर पर प्रभाव

स्मार्ट-क्रॉप परियोजना केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर सतत कृषि और जलवायु अनुकूलन का एक मॉडल बन सकती है।
इसका रिप्लिकेबल फ्रेमवर्क अन्य विकासशील देशों में भी अपनाया जा सकता है, जहाँ कृषि मुख्य आजीविका का स्रोत है। यह पहल संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और जलवायु कार्रवाई से भी मेल खाती है।

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