धान की पैदावार पर नया संकट: बैक्टीरियल पैनिकल ब्लाइट का बढ़ता खतरा!

पूसा, समस्तीपुर। धान भारतीय कृषि की सबसे महत्वपूर्ण फसल है, जिसे करोड़ों किसान अपनी आजीविका का मुख्य आधार मानते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में एक नया रोग “धान की बाली का जीवाणु झुलसा” (Bacterial Panicle Blight – BPB) किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनकर उभरा है। विशेषज्ञों के अनुसार यह रोग धान की बाली को सीधा प्रभावित करता है और पैदावार में भारी गिरावट ला सकता है।
क्या है बैक्टीरियल पैनिकल ब्लाइट?
यह रोग मुख्य रूप से Burkholderia glumae नामक जीवाणु के कारण होता है। कुछ मामलों में Burkholderia gladioli भी जिम्मेदार पाई गई है। ये जीवाणु उच्च तापमान और नमी की स्थिति में तेजी से पनपते हैं।
यह रोगजनक Toxoflavin नामक विष छोड़ता है, जो पौधे की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।
संक्रमण मुख्य रूप से फूल आने और दाना बनने की अवस्था में होता है।
इसका सीधा असर बाली पर पड़ता है और दाने अधूरे या बाँझ रह जाते हैं।
रोग के लक्षण
विशेषज्ञ बताते हैं कि इस रोग की पहचान कई बार कठिन होती है क्योंकि इसके लक्षण फफूंदजनित रोगों या पोषक तत्वों की कमी जैसे लगते हैं।
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दाने अधूरे व फीके दिखाई देते हैं।

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स्वस्थ हरे दाने धीरे-धीरे भूरे या गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं।
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बाली की म्यान में भूरापन और सड़न दिख सकती है।
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गंभीर स्थिति में पूरी बाली झुलस जाती है।
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पौधों में बौना पन और पत्तों का पीला पड़ना भी देखा जाता है।
(ध्यान दें: कई बार किसान इसे फफूंदजनित रोग या पोषक तत्वों की कमी समझकर भ्रमित हो जाते हैं।)
कैसे फैलता है यह रोग?
इस रोग का मुख्य कारण Burkholderia glumae नामक ग्राम-नेगेटिव जीवाणु है। कुछ मामलों में Burkholderia gladioli भी संक्रमण का कारण बनती है। यह जीवाणु विशेष रूप से गर्म और नम परिस्थितियों में तेजी से पनपता है।
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रोगजनक जीवाणु Toxoflavin विष उत्पन्न करता है, जो कोशिकाओं को नष्ट कर देता है।
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संक्रमण बीज से, बारिश की बौछार, हवा और दूषित सिंचाई जल से फैलता है।
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30°C से अधिक तापमान और लगातार नमी रोग को तेजी से बढ़ावा देती है।
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मुख्य प्रकोप धान के फूल आने के समय होता है।
पैदावार पर असर
बैक्टीरियल पैनिकल ब्लाइट उपज को बुरी तरह प्रभावित करता है। अनुसंधानों में 5% से लेकर 75% तक की उपज हानि की सूचना है।रोग के कारण दाने भरने की क्षमता घट जाती है, जिससे अनाज की मात्रा और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं। प्रभावित धान में मिलिंग की गुणवत्ता घटती है और बाजार मूल्य कम हो जाता है। गंभीर वर्षों में यह रोग किसानों के लिए आर्थिक संकट तक उत्पन्न कर सकता है।
बिहार और पूर्वी भारत में बढ़ती चिंता
बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों में धान प्रमुख फसल है। इन क्षेत्रों में—
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लगातार वर्षा, 30–35°C तापमान, और अधिक आर्द्रता
- बिहार में धान की खेती मुख्य रूप से खरीफ मौसम में होती है, जब मानसूनी वर्षा रोग के प्रसार के लिए सबसे अनुकूल समय देती है। इस कारण किसानों को बैक्टीरियल पैनिकल ब्लाइट का प्रकोप अधिक होने की संभावना रहती है। यदि इस रोग का समय पर प्रबंधन नहीं किया गया, तो यह प्रदेश में धान उत्पादन और खाद्य सुरक्षा दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
जैसे हालात रोग के लिए बेहद अनुकूल हैं। कृषि वैज्ञानिक का मानना है कि यदि समय पर प्रबंधन नहीं किया गया तो यह प्रदेश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बन सकता है।
रोग प्रबंधन के उपाय
कृषि प्रबंधन
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केवल प्रमाणित व रोगमुक्त बीजों का प्रयोग करें।
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लगातार धान की खेती न करें, फसल चक्र अपनाएँ।
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खेत की सही जल निकासी व्यवस्था करें।
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संक्रमित पौधों के अवशेष नष्ट कर दें।
रासायनिक उपाय
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कॉपर आधारित छिड़काव आंशिक मदद कर सकता है।
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बीजोपचार से रोग का असर कुछ हद तक घटाया जा सकता है।
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एंटीबायोटिक का सीमित प्रयोग हुआ है, लेकिन इसके दुष्प्रभाव और नियमों को देखते हुए सावधानी जरूरी है।
प्रतिरोधी किस्में
फिलहाल पूरी तरह प्रतिरोधी किस्म उपलब्ध नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक आंशिक प्रतिरोध वाली किस्मों पर काम कर रहे हैं।
जैविक नियंत्रण
कुछ लाभकारी सूक्ष्मजीवों और कवकों द्वारा इस रोग पर नियंत्रण के सफल प्रयोग हुए हैं। भविष्य में यह स्थायी समाधान साबित हो सकता है।
किसानों के लिए त्वरित सुझाव
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प्रमाणित और रोगमुक्त बीज ही बोएँ।
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धान के बाद दलहन या तिलहन फसल लें।
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खेत में जलभराव न होने दें।
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अधिक घनी बुआई से बचें।
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फूल आने की अवस्था में नियमित निरीक्षण करें।
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संक्रमित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट करें।
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बीजोपचार अवश्य करें।
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खेत की सफाई बनाए रखें।
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कॉपर आधारित छिड़काव करें।
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कृषि वैज्ञानिकों से नई किस्मों की जानकारी लेते रहें।
सारांश
कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि धान की बाली का जीवाणु झुलसा एक उभरता हुआ खतरा है। यदि किसान समय रहते सावधानी बरतें और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार प्रबंधन तकनीक अपनाएँ तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
भविष्य में प्रतिरोधी किस्मों और जैविक नियंत्रण तकनीकों पर अनुसंधान इस समस्या से निपटने का नया रास्ता खोलेगा।
सौजन्य
प्रो. (डॉ.) एस.के. सिंह
विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी
पूर्व सह निदेशक (अनुसंधान), डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
📧 संपर्क: sksraupusa@gmail.com