सहजन का निर्यात अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका तक पहुंचा

 

सहजन की खेती, कम लागत में ज्यादा मुनाफा

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सहजन की खेती एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सहजन, जिसे मोरिंगा या ‘ड्रमस्टिक’ के नाम से भी जाना जाता है, एक अत्यधिक पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है। इसकी खेती न केवल किसानों की आय बढ़ा रही है, बल्कि ग्रामीण विकास, पोषण सुरक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। सहजन, एक तेजी से बढ़ने वाला और आसानी से उगाया जाने वाला पौधा है, जो भारत के लगभग हर हिस्से में उगाया जा सकता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज सभी उपयोगी होते हैं। यह एक बहुउपयोगी पौधा है, जिसका उपयोग खाद्य पदार्थ, दवाइयां, और औद्योगिक उत्पाद बनाने में किया जाता है।

कृषि उत्पादकता में योगदान

सहजन की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है। यह फसल कम पानी में उगाई जा सकती है, और इसकी खेती कम लागत और अधिक मुनाफे के कारण लोकप्रिय हो रही है।

2. पोषण सुरक्षा में योगदान

सहजन की पत्तियां और फल प्रोटीन, विटामिन, और खनिजों से भरपूर होते हैं। इसे ‘सुपरफूड‘ के रूप में जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह कुपोषण की समस्या को कम करने में मददगार साबित हो रही है।

3. स्वास्थ्य और औषधीय उपयोग

आयुर्वेद में सहजन का उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियों से डायबिटीज, हृदय रोग, और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के इलाज में मदद मिलती है।

सहजन की खेती का महत्व
1. पर्यावरण संरक्षण

सहजन का पौधा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक है। यह बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद करता है।

2. ग्रामीण रोजगार

सहजन की खेती और उससे जुड़े प्रसंस्करण उद्योग ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं।

3. निर्यात के अवसर

भारत से सहजन पाउडर, तेल और अन्य उत्पाद अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका जैसे देशों में निर्यात किए जाते हैं। यह भारत की विदेशी मुद्रा आय में योगदान कर रहा है।

सहजन की खेती की चुनौतियां
  1. ज्ञान और तकनीकी की कमी: किसानों के बीच उचित तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण की कमी है।
  2. प्रसंस्करण और विपणन समस्याएं: सहजन के उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन के लिए मजबूत संरचना की कमी है।
  3. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बदलते मौसम के कारण इसकी खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सहजन की खेती का भविष्य
1. टिकाऊ कृषि का आधार

कम लागत और अधिक लाभ के कारण सहजन की खेती टिकाऊ कृषि के लिए आदर्श है। भविष्य में इसे और व्यापक रूप से अपनाया जाएगा।

2. वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार

सहजन के उपयोग और उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों की आवश्यकता है।

3. सरकारी समर्थन

सरकार सहजन की खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और योजनाएं शुरू कर सकती है। यह छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बना सकती है।अभी बिहार सरकार सहजन की खेती पर 50 फीसदी सब्सिडी देती है।

राजीव कुमार

 

 

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