मत्स्य पालन विभाग की वर्चुअल चर्चा श्रृंखला में 15 हजार से अधिक मछुआरों की भागीदारी
नई दिल्ली। मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्य पालन विभाग (डीओएफ) द्वारा अप्रैल से सितंबर 2025 तक आयोजित राष्ट्रव्यापी वर्चुअल चर्चा श्रृंखला में 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 15,000 से अधिक मछुआरों और मछली पालकों ने हिस्सा लिया। विभाग के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी के नेतृत्व में आयोजित इस पहल ने हितधारकों को अपनी समस्याएं और अपेक्षाएं सीधे साझा करने का अवसर प्रदान किया।
इस दौरान मछुआरों, मछली पालकों, मत्स्य संघों, सहकारी समितियों, मछली पालक उत्पादक संगठनों (एफएफपीओ), स्टार्टअप्स, आईसीएआर संस्थानों, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य विभागों के प्रतिनिधियों ने देशभर से भागीदारी की।
हितधारकों से मिली अहम प्रतिक्रियाएं
चर्चा के दौरान हितधारकों ने गुणवत्तापूर्ण मछली बीज, ब्रूड बैंक, सस्ता चारा और स्थानीय चारा मिलों के महत्व पर ज़ोर दिया। साथ ही परिवहन, केज कल्चर, मिनी हैचरी, आइस बॉक्स, पॉली शीट, कोल्ड स्टोरेज और सौर ऊर्जा के प्रयोग जैसी सुविधाओं को मज़बूत करने की आवश्यकता बताई।
नवीन प्रौद्योगिकियों जैसे जीवित मछलियों के परिवहन के लिए ड्रोन, सुरक्षा हेतु उपग्रह आधारित सेवाओं और संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र (पीएफज़ेड) संबंधी सलाह को भी अपनाने पर बल दिया गया।
मछुआरों ने सरकार की ओर से जहाजों पर लगाए गए निःशुल्क ट्रांसपोंडर की सराहना की, जिससे उन्हें मौसम संबंधी चेतावनियां, चक्रवात अपडेट और सुरक्षित मार्गदर्शन समय पर प्राप्त हो रहा है। इसके साथ ही ये ट्रांसपोंडर अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करने से भी रोकते हैं।
विपणन और वैकल्पिक आजीविका पर ज़ोर
प्रतिभागियों ने मूल्य श्रृंखला मज़बूत करने के लिए समर्पित मछली बाजारों, कियोस्क और आधुनिक प्रसंस्करण संयंत्रों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) को समुद्री शैवाल, सजावटी मछली और मोती की खेती जैसी वैकल्पिक आजीविकाओं के लिए और अधिक सहयोगी बनाया जाए।
तकनीकी जानकारी, रोग नियंत्रण और प्रबंधन के लिए नियमित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। इसके अलावा जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं की उपलब्धता को जलीय स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण बताया गया।
“फीडबैक बनेगा नीति निर्माण का आधार”
डॉ. अभिलक्ष लिखी ने कहा कि इन फीडबैक सत्रों ने मछुआरों, मछली पालकों और नीति निर्माताओं के बीच एक अहम सेतु का निर्माण किया है। उन्होंने आश्वस्त किया कि प्राप्त विचार विभाग की 5 वर्षीय रोडमैप और विकसित भारत 2047 की दृष्टि के अनुरूप नीति निर्माण में मार्गदर्शन करेंगे।
मछली पालन क्षेत्र की स्थिति
भारत में मछली पालन को ‘उभरता क्षेत्र’ माना जा रहा है, जो लगभग 3 करोड़ लोगों, विशेषकर कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की आजीविका का आधार है।
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भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है।
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वैश्विक मछली उत्पादन में भारत का योगदान 8% है।
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कुल उत्पादन बढ़कर 195 लाख टन तक पहुंच गया है, जबकि वार्षिक वृद्धि दर 8.74% है।
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2023-24 में समुद्री खाद्य निर्यात 60,524 करोड़ रुपये तक पहुंचा।
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सरकार ने 2015 से अब तक विभिन्न योजनाओं में 38,572 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी है।
विभाग ने अब देशभर में 34 मत्स्य उत्पादन एवं प्रसंस्करण क्लस्टरों की अधिसूचना जारी की है और प्रजाति-विशिष्ट क्लस्टर विकास पर काम शुरू किया है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण, घरेलू खपत में वृद्धि, निर्यात संवर्धन और हाशिए पर बसे मछुआरों की आजीविका को मज़बूत करना है।