बरसात में अमरूद की फसल पर एन्थ्रेक्नोज़ का कहर, किसान रहें सतर्क

✍🏻 प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह, विभागाध्यक्ष, पादप रोगविज्ञान एवं नेमेटोलॉजी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर
📍 समस्तीपुर, बरसात के मौसम में अमरूद की खेती करने वाले किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। जुलाई से सितंबर के दौरान अमरूद पर एक खतरनाक फफूंदजनित रोग “एन्थ्रेक्नोज़” तेजी से फैलता है, जिससे पौधे, फूल और फल सभी प्रभावित होते हैं। यदि इस पर समय रहते नियंत्रण न किया जाए, तो पूरी फसल बर्बाद हो सकती है।
रोग के लक्षण: कैसे पहचानें एन्थ्रेक्नोज़?
अमरूद में एन्थ्रेक्नोज़ रोग सबसे पहले पौधे की कोमल और नवजात पत्तियों पर चॉकलेट या काले रंग के अनियमित आकार के धब्बों के रूप में दिखाई देता है। धीरे-धीरे ये पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और गिरने लगती हैं। रोग के बढ़ने पर आस-पास की पत्तियां और ऊपरी टहनियां भी प्रभावित होती हैं, जो अंततः काली होकर सूख जाती हैं।
इसके अलावा, यह रोग अमरूद की कलियों और फूलों को भी प्रभावित करता है, जिससे वे पूरी तरह विकसित होने से पहले ही मुरझाकर गिर जाते हैं। रोग यदि फल तक पहुंच जाए, तो उन पर धंसे हुए काले धब्बे बन जाते हैं और फल अंदर से सड़ने लगता है, जिससे उसकी गुणवत्ता और बाजार में बिक्री की संभावना खत्म हो जाती है।
एन्थ्रेक्नोज़ के पीछे कारण
यह रोग कोलेटोट्राइकम ग्लियोस्पोरियोइड्स नामक फफूंद के कारण होता है, जो ठंडे और नम मौसम में अधिक सक्रिय होता है। बरसात के मौसम में वातावरण में नमी की मात्रा अधिक होने के कारण यह रोग तेजी से फैलता है। यदि समय पर रोकथाम न की जाए तो पूरी टहनियां सूख जाती हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
रोकथाम के लिए अपनाएं ये उपाय
1. खेत की साफ-सफाई
अमरूद के पेड़ के नीचे गिरे हुए पत्तों, सड़े गले फलों और संक्रमित टहनियों को हटाकर नष्ट करें। इससे फफूंद के फैलाव को रोका जा सकता है।
2. नियमित छंटाई
पेड़ की उचित छंटाई से हवा और धूप का प्रवाह बेहतर होता है, जिससे नमी कम होती है और रोग फैलने की संभावना घटती है। रोगग्रस्त टहनियों की कटाई के बाद कटे स्थान पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का पेस्ट अवश्य लगाएं।
3. सिंचाई में सावधानी
पत्तियों पर सीधे पानी न डालें। ड्रिप सिंचाई या जड़ों के पास मिट्टी में पानी दें ताकि पत्तियां सूखी रहें और फफूंद को बढ़ावा न मिले।
4. उर्वरकों का संतुलित प्रयोग
एनपीके (19:19:19) की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। यह छिड़काव फूल आने से पहले या फल लगने के बाद करना अधिक प्रभावी होता है।
5. मल्चिंग तकनीक
पेड़ के चारों ओर जैविक मल्च (जैसे सूखी घास या पत्तियां) बिछाकर मिट्टी से फफूंद के बीजाणु पेड़ तक पहुंचने से रोका जा सकता है।
6. प्रतिरोधी किस्मों का चयन
नई बागवानी करते समय एन्थ्रेक्नोज़-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, जो रोग के प्रति अधिक सहनशील होती हैं।
संक्रमण दिखाई दे तो तुरंत करें यह उपाय
अगर पत्तियों या फलों पर रोग के लक्षण दिखने लगें तो तुरंत रोगग्रस्त भागों को काटकर नष्ट करें। इससे रोग फैलने से रोका जा सकता है।
🧪 कवकनाशी (Fungicide) का प्रयोग
> ✅ हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल
2 मिली दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर, 0.5 मिली स्टिकर के साथ मिलाकर दो बार छिड़काव करें—
पहला छिड़काव: फूल आने से 15 दिन पहले
दूसरा छिड़काव: फल पूरी तरह लगने के बाद
> ✅ साफ (Carbendazim 12% + Mancozeb 63%)
3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से रोग की तीव्रता में कमी आती है।
> ⏳ अनुशंसित समय
पहला छिड़काव बरसात से पहले करें, जिससे बरसात के दौरान पौधा सुरक्षित रह सके और सर्दियों की फसल पर इसका प्रभाव न पड़े।
विशेषज्ञ की सलाह
डॉ. सिंह कहते हैं कि रोग का प्रबंधन समय रहते किया जाए तो भारी नुकसान से बचा जा सकता है। रोकथाम उपचार से कहीं अधिक असरदार होती है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नियमित रूप से अपने बागानों का निरीक्षण करें और किसी भी प्रकार के लक्षण दिखने पर तुरंत कृषि विशेषज्ञ से संपर्क करें।
📬 प्रोफेसर (डॉ.) एस.के. सिंह
पूर्व प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर – 848125
📧 sksraupusa@gmail.com sksingh@rpcau.ac.in