बांस की खेती के है अनेक फायदे

पर्यावरण को भी बांस की खेती से लाभ

 

भारत सरकार बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है। बांस तेजी से बढ़ने वाली फसल है। इसकी फार्मिंग के कई फायदे है। National Bamboo Mission के जरिए किसानों को तकनीकी मदद और सब्सिडी दी जाती है ।

2017 में भारतीय सरकार ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया। इस संशोधन के अनुसार, बाँस कोपेड़की परिभाषा से हटा दिया गया, जिससे अब निजी भूमि पर बांस उगाने और उसे बेचने के लिए किसी प्रकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।

यह कदम किसानों और उद्यमियों को बाँस की खेती और व्यापार में प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया था। बाँस को हरित सोना (Green Gold) भी कहा जाता है क्योंकि यह टिकाऊ विकास, पर्यावरणीय लाभ, और आर्थिक अवसर प्रदान करता है।

बां की खेती के फायदे:

आर्थिक लाभ: बांस तेजी से बढ़ने वाली फसल है और इसकी मांग निर्माण, फर्नीचर, कागज, और हस्तशिल्प उद्योग में अधिक है।

पर्यावरणीय लाभ: बांस मिट्टी का क्षरण रोकता है और अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करता है।

सरकारी योजनाएं: राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) के तहत किसानों को सब्सिडी और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है।

इसलिए, यदि आप बांस की खेती करना चाहते हैं, तो यह न केवल कानूनी है, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी फायदेमंद है।

लेकिन बांस की खेती में चीन के मुकाबले भारत अभी पीछे है।

  1. भारत में बांस की खेती:

बांस की विविधता: भारत में 136 से अधिक बांस की प्रजातियां पाई जाती हैं, जो कुल वैश्विक प्रजातियों का लगभग 13% हैं।

क्षेत्रफल: भारत में लगभग 14 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बांस उगाया जाता है, जो इसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उगाने वाला देश बनाता है (पहला स्थान चीन का है)।

मुख्य बांस उत्पादक राज्य: पूर्वोत्तर राज्य जैसे असम, मिज़ोरम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय बाँस उत्पादन में अग्रणी हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और छत्तीसगढ़ भी प्रमुख योगदानकर्ता हैं।

  1. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति

उपज में दूसरा स्थान: भारत बांस की पैदावार के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

उपज और उत्पादकता: हालाँकि, भारत का उत्पादकता स्तर चीन जैसे देशों की तुलना में कम है। चीन की बाँस उद्योग की उच्च तकनीक और कुशल प्रबंधन के कारण उसकी उपज भारत से लगभग 5 गुना अधिक है।

बाँस निर्यात: भारत बांस का निर्यात तो करता है, लेकिन वैश्विक बाँस निर्यात में चीन का दबदबा है। भारतीय बाँस उद्योग अब तक उच्च गुणवत्ता वाले प्रसंस्कृत उत्पादों और वैश्विक ब्रांडिंग में पीछे रहा है।

वैश्विक माँग: बाँस की वैश्विक बाजार में उच्च माँग है, खासकर कंस्ट्रक्शन, फर्नीचर, कागज, टेक्सटाइल, और जैविक चारकोल जैसे उद्योगों में।

  1. भारत की चुनौतियां

प्रसंस्करण उद्योग का अभाव: बांस का कच्चा माल उपलब्ध होने के बावजूद, भारत में उच्च गुणवत्ता वाले बाँस उत्पादों का प्रसंस्करण और ब्रांडिंग कमजोर है।

तकनीकी अंतर: चीन की तुलना में भारत में बाँस खेती और प्रसंस्करण में आधुनिक तकनीक का कम उपयोग होता है।

लॉजिस्टिक्स और बाजार पहुंच: पूर्वोत्तर राज्यों में बांस का प्रचुर उत्पादन है, लेकिन बाजारों तक परिवहन महंगा और जटिल है।

नीति और जागरूकता: कई किसानों और उद्यमियों को बांस खेती के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं और सब्सिडी के बारे में जानकारी नहीं है।

  1. भारत की संभावनाएं और पहल

राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission):

 

भारत सरकार ने बांस उपज और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए इस मिशन की शुरुआत की है। इसके तहत किसानों को सब्सिडी, प्रशिक्षण, और बाजार संपर्क उपलब्ध कराया जाता है।

वन अधिनियम में संशोधन (2017):
बांस को “पेड़” की परिभाषा से बाहर करके इसे किसानों के लिए अधिक लाभकारी बनाया गया। अब किसान निजी भूमि पर बाँस उगाकर उसे स्वतंत्र रूप से बेच सकते हैं।

वैश्विक अवसर:
बांस से बने टिकाऊ उत्पादों की वैश्विक माँग तेजी से बढ़ रही है, जैसे कि बांस के फर्श, फर्नीचर, डिस्पोजेबल कटलरी, और टेक्सटाइल। ये भारतीय उत्पादकों को एक बड़ा बाजार प्रदान करता है।

निर्यात के लिए प्रोत्साहन:
भारत सरकार बांस निर्यात को बढ़ाने के लिए योजनाएँ बना रही है, खासकर यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में।

  1. आगे का रास्ता

तकनीकी सुधार: बांस उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए नई तकनीकों और मशीनों को अपनाना आवश्यक है।

वैश्विक साझेदारी: अन्य देशों से साझेदारी करके बाँस उद्योग के लिए नई तकनीक और निवेश लाया जा सकता है।

बाज़ार विस्तार: भारतीय बांस उत्पादों की ब्रांडिंग और प्रमोशन को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

 

राजीव कुमार

 

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