🌿 “27 प्रतिभागियों को मिला जड़ी-बूटी प्रसारण का वैज्ञानिक प्रशिक्षण”
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में ‘आयुफार्म 2025’ संपन्न
नई दिल्ली। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), जो आयुष मंत्रालय के अधीन स्वायत्त निकाय है, में पाँच दिवसीय ‘सर्टिफिकेट कोर्स – आयुफार्म 2025: आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों की खेती एवं प्रसारण’ का सफल समापन हुआ। यह आयोजन संस्थान के द्रव्यगुण विभाग द्वारा किया गया और यह कार्यक्रम आयुर्वेद दिवस 2025 से जुड़े आयोजनों का हिस्सा रहा।
उद्घाटन सत्र
कोर्स का उद्घाटन उत्तराखंड के प्रिंसिपल चीफ फॉरेस्ट कंजर्वेटर डॉ. समीर सिन्हा (IFS) ने किया। अपने संबोधन में उन्होंने वनीय संसाधनों के संरक्षण और औषधीय पौधों के जिम्मेदार उपयोग पर बल दिया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय औषधीय पादप परिषद (आयुष मंत्रालय) के पूर्व डिप्टी सीईओ डॉ. चंद्रशेखर सांवल (IFS) उपस्थित रहे। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण औषधीय पौधों की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए नीतिगत योजनाएँ तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
समापन सत्र
कार्यक्रम के समापन सत्र को वरिष्ठ आयुर्वेद विद्वान डॉ. मायाराम उनियाल ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि “आयुर्वेद की प्राचीन मेधा को आधुनिक कृषि विज्ञान प्रथाओं के साथ जोड़ना भविष्य की ज़रूरत है।”
देशभर से जुड़े प्रतिभागी
इस सर्टिफिकेट कोर्स में देशभर से कुल 27 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रशिक्षण का संचालन विभिन्न संस्थानों के छह विशेषज्ञों द्वारा किया गया।
-
डॉ. जाह्नवी मिश्रा रावत (ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, देहरादून): प्लांट टिशू कल्चर
-
डॉ. के. हिमा बिंधु (ICAR-IIHR, बेंगलुरू): हाइड्रोपोनिक्स व मृदा रहित खेती
-
डॉ. डी. कलैवनन् (ICAR-IIHR, बेंगलुरू): कोकोपोनिक्स और अच्छी खेती की प्रथाएँ
-
डॉ. कुणाल ए. काले (बजाज कॉलेज ऑफ साइंस, वर्धा): प्रसारण एवं संरक्षण तकनीक
-
डॉ. सरोज कुमार वी. (केरल कृषि विश्वविद्यालय, कोल्लम): वृक्ष आयुर्वेद और प्रसारण विधियाँ
-
श्रीमति एस. प्रेमलता (कृषि विशेषज्ञ): जैविक खेती एवं मृदा स्वास्थ्य
व्यावहारिक प्रशिक्षण
कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों को औषधीय खेती से जुड़ी विभिन्न व्यावहारिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया। इनमें ग्राफ्टिंग, लेयरिंग, मिट्टी की उर्वरक क्षमता की जाँच, जैविक खाद एवं वर्मीकंपोस्ट बनाने की विधियाँ शामिल थीं।
साथ ही, सफल औषधीय पौधों की खेती करने वाले किसानों की कहानियों को भी साझा किया गया, जिससे प्रतिभागियों को प्रेरणा और व्यावहारिक अनुभव मिला।
कार्यक्रम का महत्व
‘आयुफार्म 2025’ केवल एक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह पारंपरिक आयुर्वेदिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का संगम सिद्ध हुआ। इस पहल से उच्च गुणवत्ता वाले औषधीय पौधों की सतत उपलब्धता सुनिश्चित होगी, जिससे आयुर्वेदिक शिक्षा, अनुसंधान और क्लीनिकल प्रैक्टिस को सीधा लाभ मिलेगा।
इसके साथ ही यह आयोजन देश में प्रमाण-आधारित आयुर्वेद (Evidence-Based Ayurveda) की अवधारणा को और मजबूत करने में भी सहायक सिद्ध होगा।