रेशम की चमक: परंपरा, उत्पादन और सरकारी प्रयासों का संगम
शहतूत (Mulberry) की खेती मुख्य रूप से रेशम उत्पादन (Sericulture) के लिए की जाती है। शहतूत की पत्तियां रेशम के कीड़ों (Silkworms) का मुख्य भोजन होती हैं, जो कोकून बनाकर रेशम का उत्पादन करते हैं।
भारत में रेशम केवल एक वस्त्र नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और कला का प्रतीक है। कांचीपुरम की भव्य साड़ियां और बनारसी बुनाई की चमक इस धरोहर का प्रमाण हैं। रेशम शहतूत के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के कोकून से प्राप्त होता है, जिन्हें उबाल कर रेशमी धागों में बदला जाता है और फिर इन्हें कारीगरों द्वारा महीन कपड़ों में बुना जाता है।
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शहतूत की खेती
(क) उपयुक्त जलवायु और मिट्टी:
- शहतूत के पेड़ उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से बढ़ते हैं।
- अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- pH मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
(ख) शहतूत की प्रजातियाँ:
मुख्य रूप से तीन प्रकार की प्रजातियाँ उगाई जाती हैं:
- मोरस अल्बा (Morus Alba) – उत्तर भारत में अधिक प्रचलित
- मोरस नाइग्रा (Morus Nigra) – दक्षिण भारत और अन्य क्षेत्रों में
- मोरस रुब्रा (Morus Rubra) – कम मात्रा में उगाई जाती है
(ग) बुवाई और रोपाई:
- शहतूत की खेती मुख्यतः कलमों (Cuttings) और ग्राफ्टिंग के माध्यम से की जाती है।
- पौधे को 60×60 सेमी की दूरी पर लगाया जाता है।
- रोपाई मानसून या वसंत ऋतु में की जाती है।
(घ) देखभाल और कटाई:
- समय-समय पर सिंचाई और उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक होता है।
- 3-4 महीने में एक बार पत्तियों की कटाई की जाती है ताकि रेशम के कीड़ों को ताजा भोजन मिल सके।
- रेशम उत्पादन (Sericulture)
(क) रेशम के कीड़ों की प्रजातियाँ:
- बॉम्बिक्स मोरी (Bombyx Mori) – सबसे अधिक पालने वाला कीड़ा
- एरी सिल्कवर्म (Eri Silkworm)
- तसर सिल्कवर्म (Tasar Silkworm)
- मुगा सिल्कवर्म (Muga Silkworm)
(ख) रेशम उत्पादन की प्रक्रिया:
- अंडों का प्रजनन – शहतूत के पत्तों पर कीड़ों के अंडे रखे जाते हैं।
- लार्वा पालन – अंडों से निकलने वाले लार्वा (Caterpillars) को 30-40 दिन तक शहतूत की पत्तियां खिलाई जाती हैं।
- कोकून निर्माण – लार्वा अपने चारों ओर कोकून (Cocoon) बुनते हैं, जिससे रेशम प्राप्त किया जाता है।
- रेशम की निकासी – कोकून को गरम पानी या भाप में उबालकर रेशम के धागे निकाले जाते हैं।
- रेशम प्रसंस्करण और बुनाई – प्राप्त धागों से रेशम के कपड़े बनाए जाते हैं।
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शहतूत की खेती और रेशम उत्पादन के लाभ
✅ आर्थिक लाभ – रेशम उद्योग किसानों को अच्छी आय प्रदान करता है।
✅ रोजगार के अवसर – ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है।
✅ पर्यावरणीय लाभ – शहतूत की खेती से हरित क्षेत्र बढ़ता है और मृदा अपरदन कम होता है।
✅ निर्यात की संभावनाएँ – भारतीय रेशम की वैश्विक मांग अधिक है।
रेशम उत्पादन में भारत की भूमिका
भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश में कुल कच्चे रेशम उत्पादन का लगभग 92% हिस्सा शहतूत रेशम से आता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। वहीं, गैर-शहतूत रेशम (वान्या रेशम) का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पूर्वोत्तर राज्यों में होता है।
उत्पादन और निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि
वर्ष 2017-18 में भारत का कच्चा रेशम उत्पादन 31,906 मीट्रिक टन था, जो 2023-24 में बढ़कर 38,913 मीट्रिक टन तक पहुंच गया। इसी अवधि में शहतूत बागानों का क्षेत्रफल 223,926 हेक्टेयर से बढ़कर 263,352 हेक्टेयर हो गया।
वहीं, रेशम और इससे संबंधित वस्तुओं का निर्यात भी बढ़ा है। वर्ष 2017-18 में निर्यात का आंकड़ा 1,649.48 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 2,027.56 करोड़ रुपये हो गया।
2023-24 में देश ने 3348 मीट्रिक टन रेशम अपशिष्ट का निर्यात किया, जो उत्पादन प्रक्रिया के दौरान बचा हुआ कच्चा माल होता है, लेकिन इसका भी पुनः उपयोग किया जा सकता है।
सरकारी योजनाएं बनीं सहारा
सरकार ने रेशम उद्योग के व्यापक विकास के लिए रेशम समग्र योजना शुरू की है, जो अनुसंधान, बीज उत्पादन, बाजार विकास और गुणवत्ता प्रमाणीकरण जैसे चार प्रमुख क्षेत्रों में सहायता प्रदान करती है।
इस योजना का विस्तार रेशम समग्र-2 के रूप में हुआ है, जिसका बजट 4,679.85 करोड़ रुपये (2021-26) निर्धारित किया गया है। इसके तहत अब तक 1,075.58 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता दी गई है, जिससे 78,000 से अधिक लोगों को लाभ मिला है।
राज्यवार समर्थन
रेशम समग्र-2 के अंतर्गत आंध्र प्रदेश को 72.50 करोड़ रुपये और तेलंगाना को 40.66 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी गई है। इसके अतिरिक्त, कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS), राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP) और वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना (समर्थ) जैसे कार्यक्रम भी उद्योग की मजबूती में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
सारांश
शहतूत की खेती और रेशम उत्पादन एक लाभदायक कृषि व्यवसाय है। उचित वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर किसान इस क्षेत्र में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
रेशम समग्र योजनाओं और सरकार की दूरदर्शी नीतियों ने न केवल भारत के रेशम उद्योग को नई ऊंचाई दी है, बल्कि लाखों किसानों और बुनकरों की आजीविका को भी सशक्त बनाया है। यदि इसी गति से प्रयास जारी रहे, तो भारत रेशम उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर हो सकता है।